तुला राशि का वार्षिक फलादेश वर्ष 2023
(लब्धस्वर्णपदक)
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तुला तुलाराशि जातको हेतु वर्ष अधिकांश रुप
से सकारात्मक रहेगा। बाधित कार्य पूर्ण होगें स्थायी सम्पत्ति का लाभ, समाजिक मान-प्रतिष्ठा में
वृद्धि होगी। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा परन्तु वित्तिय लेन देन में सतर्कता
आवश्यक है। शत्रुपक्ष तथा स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सचेत रहे। जीवन साथी का सहयोग
प्राप्त होगा। विवाह के इच्छुक लोगों को जीवनसाथी के चयन में सफलता प्राप्त होगी।
घर में मांगलिक कृत्य सम्पन्न होगे। सेवा क्षेत्र में पदवृद्धि की सम्भावना है।
वर्षारम्भ में धनागम
के क्षेत्र में बाधा उपस्थित होगी। भूमि-भवन वाहन प्राप्ति की दिशा में चल रहे
प्रयास सफल होंगे। सन्ततिसुख प्राप्ति में उपस्थित विघ्न बाधायें दूर होगी। विद्यार्थीयो
हेतु वर्ष उन्नतिकारक होगा। विद्यार्थियों को अपने-अपने दिशा में किए गये प्रयास
सफल होंगे, लेकिन आलस्य एवं प्रमाद से बचें, प्रतियोगिता परीक्षा से जुड़े
परीक्षार्थी समय का सदुपयोग करें। परिश्रम से सफलता मिलेगी। खाद्य पदार्थ जनित
आकस्मिक गुप्त रोग उत्पन्न हो सकते हैं। माता पिता के स्वास्थ्य में भी बाधा होगी।
कृषिक्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को लाभ होगा। नौकरी में उन्नति के योग हैं। वर्षान्त
में दाम्पत्य जीवन में कटुता संभव है, अनावश्यक विवाद एवं कलह संभव है। वर्ष 2023 के
जनवरी, मई, जुलाई तथा सितम्बर मास अशुभ हैं।
गोचर विचार में सबसे महत्वपूर्ण होता है शनि
का विचार करना। इस वर्ष 17 जनवरी 2023 से शनि कुम्भ राशि में गोचर कर चुके हैं और वर्षपर्यन्त इसी राशि में
रहेंगे। कुम्भ राशि तुला से पाचवीं राशि है। फलदीपिका नामक ग्रन्थ में मन्त्रेश्वर
ने जन्मराशि से पाचवीं राशि में शनिगोचर का फल द्रविणसुतमतिप्रच्युतिं[1] कहा है। अर्थात् जन्म राशि से
पंचम राशि में शनि गोचर करता हो तो धन की कमी या धनहानि होती है। साथ ही सन्तानकष्ट
और बुद्धिनाश अर्थात् मन में शांति न रहना, नाना प्रकार की चिन्ताओं तथा उद्वेगों
से मन अशांत रहना आदि फल होते हैं।
गोचर विचार के दौरान शनि के बाद दूसरा सबसे
महत्वपूर्ण ग्रह होता है बृहस्पति। क्योंकि शुभफलों की पुष्टता के लिए बृहस्पति को
उत्तरदायी बताया गया है। इस वर्ष बृहस्पति मीन राशि में 21 अप्रैल 2023 तक और उसके
बाद वर्षभर मेष राशि में रहेंगे।[2] यह दोनों राशियाँ क्रमशः तुला
से छठी और सातवीं है। मंत्रेश्वर ने फलदीपिका में जन्मराशि से छठी राशि में बृहस्पति
गोचर का अशुभफल और सातवीं राशि में बृहस्पति गोचर का शुभफल बताया है।
षष्ठे
मन्त्रिणि पीडयन्ति रिपवः स्वज्ञातयो व्याधयः ॥[3]
अर्थात् - यदि बृहस्पति जन्मराशि से छठी राशि में गोचर
करे तो अपने दायदों (चचेरे भाई आदि ) तथा शत्रुओं से पीड़ा एवं दुःसाध्य रोग आदि अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
यात्रा
शोभनहेतवे वनितया सौख्यं सुताप्ति स्मरे ॥[4]
अर्थात् - यदि बृहस्पति जन्मराशि से सातवीं राशि में गोचर
करे तो किसी शुभ कार्य से यात्रा, अपनी स्त्री से सुख तथा पुत्र
प्राप्ति आदि शुभफल प्राप्त होते हैं।
वार्षिक राशिफल विचार में आधुनिक ज्योतिर्विद् राहु को भी विशेष
महत्व देते हैं। अतः राहु का विचार भी तुला राशि के वार्षिक राशिफल के सन्दर्भ में
प्रस्तुत करते हैं। राहु इस वर्ष मेष एवं मीन राशियों में रहेंगे। अक्टूबर तक राहु की स्थिति मेष राशि में रहेगी उसके बाद नवम्बर
में राहु राशि परिवर्तन करके मीन राशि में आएँगे।[5] मेष
राशि तुला से सप्तम है और मीन राशि षष्ठ है। गोचर विचार ग्रन्थ में जगन्नाथ भसीन
जी ने यवानाचार्य का मत हिमगोः पूजमसादेर्धनम् का कट्पयादि विधि से अर्थ
करते हुए राहु के सप्तम भाव में गोचर करने पर शुभफल प्रदाता तथा षष्ठ भाव के
गोचरगत राहु को अशुभफल प्रदाता बताया है।
गोचर विचार में जगन्नाथ भसीन ने राहु
का चन्द्रलग्न से सप्तम भाव में गोचर का फल बताते हुए लिखा है –
राहु चन्द्र लग्न से सप्तम भाव में
जब गोचरवश आता है तो अचानक व्यापार में वृद्धि करता है। यात्रादि से धन लाभ होता
है। राज्य की ओर से कृपा रहती है, मित्रों
से सहायता मिलती है। शरीर में पित्त अथवा वायु दोष के कारण साधारण कष्ट होता है,
मन में क्लेश रहता है।
गोचर विचार में जगन्नाथ भसीन ने राहु का चन्द्रलग्न से सप्तम भाव
में गोचर का फल बताते हुए लिखा है –
राहु चन्द्र लग्न से छठे भाव में जब
गोचरवश आता है तो दीर्घकालीन रोगों की उत्पत्ति करता है, मामाओं को बीमार करता है।
मानहानि भी करवाता है। इस समय धन की हानि भी होती है तथा आय में कमी आ जाती है।
आँखों में कष्ट रहता है और जातक कई प्रकार से व्यसन ग्रस्त हो जाता है।
इस प्रकार निष्कर्ष रुप में वार्षिक राशि फल को तीन भागों में बाँटे तो राहु, शनि
एवं गुरु के कारण 70% अशुभता और 30% शुभता रहेगी ।
निष्कर्ष रुप में
निम्नलिखित महत्वपूर्ण सावधानियाँ हैं -
·
वित्तिय लेन देन में सतर्कता आवश्यक है।
·
अनावश्यक विवाद एवं कलह संभव है।
·
वर्षान्त में दाम्पत्य जीवन में कटुता संभव है।
·
आलस्य एवं प्रमाद से बचें।
·
रोजमर्रा के कार्यों में भी कुछ-कुछ विघ्न उपस्थित
होंगे।
·
धर्म से मन भटकेगा दृढ़तापूर्वक मन को धर्म में जोड़े
रखें।
अशुभ फलों के
निराकरण हेतु सर्वसामान्य उपाय का निर्देश किया जा रहा है –
Ø अशुभफलों
के उपशमनार्थ शनि राहु तथा केतु का जप कराएँ
Ø शनि राहु तथा केतु के तत्तत्
पदार्थों का दान करें
Ø विष्णुसहस्त्रनाम
स्तोत्र का पाठ श्रेयस्कर होगा।
Ø शमी वृक्ष
लगाने तथा वृद्धों व रोगियों की सेवा से कल्याण होगा।
Ø ओपल रत्न
6 कैरट या उस से अधिक वजन का धारण करें।
Ø एकादशी का
व्रत करें ।
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[1]
फलदीपिका गोपेश कुमार
ओझा अ.26 श्लो.22 पृष्ठ सं.635 मोतीलाल बनारसीदास
[2]
श्रीजगन्नाथपञ्चाङ्गम् संवत् २०८०, प्रो.मदनमोहन पाठक, पृ.सं. 37
[3]
फलदीपिका गोपेश
कुमार ओझा अ.26 श्लो.19 पृष्ठ सं.633 मोतीलाल बनारसीदास
[4]
फलदीपिका गोपेश
कुमार ओझा अ.26 श्लो.19 पृष्ठ सं.633 मोतीलाल बनारसीदास
[5]
Mishra’s Indian
Ephemeris 2023, Dr. Suresh Chandra Mishra, Page no. 114
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