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Friday 11 August 2023

गुलिक का तिलिस्म - २

 गुलिक का तिलिस्म

भाग - २  


अपने पिछले पोस्ट में मैने गुलिक साधन के बारे में विस्तार से बताया था ।  उसके बाद से ही कई जिज्ञासुओं ने मुझसे गुलिक के बारह भावों में फल जानने के लिए प्रश्न किये। आज अपने गुलिक संबंधी दूसरे पोस्ट के माध्यम से मैं उन सभी जिज्ञासुओं के साथ साथ जनसामान्य के ज्ञानवर्धन के उद्देश्य से गुलिक पर विस्तृत और संपूर्ण पोस्ट साझा कर रहा हूँ।





ज्योतिष शास्त्र में सात पिंड ग्रहों के अलावा, 6अप्रकाश ग्रह 9 उपग्रह  2 छाया ग्रह, इस प्रकार 17 गणितीय बिंदुओं की कल्पना की गई है। कहीं कहीं ग्रंथों में मांदी और गुलिक को अलग अलग ग्रह मान कर उनको अलग अलग स्पष्ट करने का तरीका भी बताया गया है। लेकिन वास्तव में गुलिक और मांदी अलग अलग नहीं बल्कि एक ही हैं। मांदी ही गुलिक है, मांदी और गुलिक को अलग अलग समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।


वैद्यनाथ दीक्षित अपने जातक पारिजात नामक ग्रंथ में नव उपग्रहों का इस प्रकार परीचय देते है-

काल परिधि घूमार्द्ध प्रहरा ह्वयाः। 

यमकंटक कोदंड मान्दि पातोपकेतवः।। 

अर्थात- सूर्यादि नव ग्रहों के क्रमशः काल, परिधि, धूम, अर्धयाम, यमघंट, कोदंड, मांदि, पात तथा उपकेत- ये नौ उपग्रह हैं। 

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रं में इन उपग्रहों को ‘अप्रकाश ग्रह’ कहा गया है। वहाँ इनके अलावा धुमादि 6 ग्रहों की और गिनती की गई है। जिनमे से पाँच को सूर्य का दोष बताया गया है । 

आचार्य मंत्रेश्वर ने ‘फलदीपिका’ के पच्चीसवें अध्याय के प्रथम श्लोक में उपर्युक्त नव उपग्रहों को प्रणाम करते हुए मांदि अथवा गुलिक के विभिन्न भावों में स्थित फल की चर्चा की है। 

उन्होंने लिखा है - 

गुलिकस्य तु संयोगे दोषान्सर्वत्र निर्दिशेत्' 

अर्थात्- गुलिक के संयोग से सर्वत्र दोष ही होते हैं | 

नोट - छठे और ग्यारहवें भाव में दोष कुछ कम होता है। 


गुलिक स्पष्ट करना  

किसी भी स्थान के दिनमान या रात्रिमान में 8 का भाग दे कर प्रत्येक भाग में एक-एक उपग्रह की स्थिति मानी गयी है। आठवें  को निरीश माना गया है। जिस खंड का अधिपति शनि होता है, उसी में मांदि की स्थिति मानी गयी है। प्रत्येक दिन के इन भागों के अधिपतियों की गणना उस दिन के वारेश से की जाती है। रात्रि के प्रथम खंड के अधिपति का निर्धारण उस वार के वाराधिपति से पंचम ग्रह से करना चाहिए। वार संख्या और अष्टमांश को गुणा करने पर प्राप्त  इष्ट काल से लग्न साधन की प्रक्रिया के अनुसार जो लग्न निकलेगा वह गुलिक खंड के अंतिम बिंदु का लग्न स्पष्ट होगा। इस संदर्भ में बृहतपाराशरहोराशास्त्रम् का निम्न श्लोक विशेष रूप से दृष्टव्य है: 

गुलिकारम्भ काले यत् स्फुटं यज्जन्म कालिकम्। 

गुलिकं प्रोच्यते तस्ताम् जातकस्य फल वदेत्।। 

अर्थात्- गुलिक लग्न का निर्णय गुलिक काल के प्रारंभ बिंदु को गुलिक का इष्ट काल मान कर गुलिक इष्ट की गणना करनी चाहिए। 

गुलिक लग्न साधन के सन्दर्भ में मेरा सम्बद्ध पोस्ट देखें

गुलिक साधन - Facebook लिंक

गुलिक साधन - Website लिंक

पहले भाव में गुलिक का फल

पहले भाव में गुलिक की उपस्थिति में जातक क्रूर स्वभाव का होता है उसके अन्दर दया नही होती है,उसकी आदत के अन्दर चोरी करना छुपाकर बात करना और कठोर भाषा का बोलना और मंद बुद्धि का फ़ल देता है। सन्तान सुख उसे नही के बराबर ही मिलता है या तो सन्तान होती  ही नही है और होती भी है तो बुढापे में छीछालेदर करने वाली होती है,ऐसा जातक धर्म कर्म को नही मानता है और जितना हो सकता है भौतिकता पर अपना बल देता है। यदि गुलिक लग्न में हो, तो जातक कृश, चोर, क्रूर, विनयरहित, क्रोधी, मूर्ख और भीरु प्रकृति का होता है। ऐसा जातक शास्त्र विरोधी, विषय वासना में लिप्त तथा लंपट स्वभाव का होता है।


दुसरे भाव में गुलिक का फल

दूसरे भाव वाला जातक झूठ बोलने की कला में माहिर होता है,उसे शान्ति कभी अच्छी नही लगती है केवल कलह करने से उसे सन्तोष मिलता है,धन की भावना बिलकुल नही होती है केवल किसका मुफ़्त में मिले और उसका प्रयोग करने के बाद फ़िर से कोई दूसरा शिकार तलासना उसका काम होता है। ऐसा जातक कभी भी एक स्थान पर नही बैठता है हमेशा दर दर का भटकाव उसके जीवन में मिलता है। इस प्रकार के जातकों की जुबान का कोई भरोसा नही होता है,वे आज कुछ बोलते है और कल क्या बोलने लगें कोई भरोसा नही होता है। जन्मकुंडली में मांदि यदि द्वितीय स्थान में हो, तो जातक कटुभाषी तथा व्यर्थ का वाद-विवाद करने वाला होता है। जातक के पास धन-धान्य की कमी रहती है तथा वह प्रायः घर से दूर रहता है।

जिस जातक के दूसरे भाव में गुलिक हो वह जल्दी जल्दी भोजन करने वाला और कठोर व रुखी बोली बोलने वाला होता है। यह जातक एसिडिटी से परेशान रहता है, और लीवर संबंधी समस्याएँ इसे घेरे रहती हैं। युवावस्था में ही इसके नेत्र कमजोर और शरीर शिथिल हो जाते हैं तथा सर खल्वाट्(गंजा) हो जाता है।


तीसरे भाव में गुलिक का फल

तीसरे भाव के गुलिक वाला जातक क्रोधी होता है,उसे घमंड कूट कूट कर भरा होता है,इसके अलावा वह हमेशा लालच करने वाला होता है।किसी सभा समाज से वह नफ़रत करता है,एकान्त मे रहना और शराब कबाब के भोजन करना उसकी शिफ़्त होती है। अक्सर इस प्रकार के जातक जुआरी भी होते है। यदि गुलिक तीसरे घर में हो, तो जातक घमंडी, क्रोधी और लोभी होता है। ऐसे व्यक्ति को भाई-बहन का सुख बहुत कम मिलता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः अकेले रहना पसंद करता है तथा अत्यंत मद प्रिय (घमंडी, अथवा व्यसनी, अथवा दोनों) होता है। 


चौथे भाव में गुलिक का फल

चौथे भाव के गुलिक वाला जातक हमेशा अपने घर वालों से शत्रुता किये रहता है उसे अपने ही भाई बहिनो से दुश्मनी और क्षोभ रहता है। अक्सर इस गुलिक वाले जातक को कभी भी वाहन का सुख नही मिलता है। जिसकी जन्मकुंडली में मांदि चतुर्थ भाव में स्थित हो, वह व्यक्ति प्रायः बंधु एवं धनहीन होता है।


पांचवे भाव में गुलिक का फल

पांचवे भाव के गुलिक वाले जातक को संतान का सुख नही मिल पाता है,और अक्सर उनकी पत्नी और पत्नी के परिवार वालों से सामजस्य नही बैठ पाता है। अपनी ही संतान के द्वारा वह अपमानित होता है और अपनी ही सन्तान उसकी मौत का कारण बनती है। यदि गुलिक पांचवें घर में हो, तो जातक दृढ़ बुद्धि होता है। उसके निर्णय क्षण-क्षण बदलते हैं तथा वह किसी एक बात पर दृढ़ नहीं रह पाता। ऐसे व्यक्ति की नैतिक मूल्यों पर भी आस्था नहीं होती तथा वह अल्प संतान वाला होता है। 


छठे भाव में गुलिक का फल

जातक के अन्दर काम करने में आलस होता है वह बैठा रह सकता है लेकिन कोई भी दैनिक काम करने के लिये उसकी आदत नही होती है,यहाँ तक कि वह रोजाना मलमूत्र त्याग और रोजाना के नहाने धोने के कार्यों से भी दूर रहता है। इसके साथ ही शमशान सिद्धि और भूत प्रेत वाली बातों में अपना लगाव भी रखता है। अक्सर इस प्रकार के जातकों का नाम उसके पुत्र करते है और वे आगे से आगे बढने वाले होते हैं। जिसके छठे घर में गुलिक हो, वह बहुत शूरवीर होता है तथा उसके शत्रु उससे प्रायः पराजित ही रहते हैं। ऐसा व्यक्ति भूत विद्या का शौकीन होता है। जो व्यक्ति डाकिनी, शाकिनी, यक्षिणी, भूत-प्रेत आदि की आराधना कर उनसे काम निकालते हैं, उन्हें भूत विद्या का प्रेमी कहा जाता है


सातवें भाव में गुलिक का फल

पति या पत्नी में आपस में शत्रुता और कभी भी एक दूसरे के विचारों का नही मिलना,इसके साथ ही अगर इस प्रकार का जातक किसी के साथ भी काम करता है तो साझेदारी की पूरी की पूरी हिस्सेदारी वह चालाकी से खा जाने वाला होता है। हर किसी से उसे लडाई करने में मजा आता है और जहां भी लडाई होती है वह वहां जाकर अपना भाव जरूर प्रदर्शित करता है। एक से अधिक जीवन साथी बनाना उसकी आदत में होता है। यदि गुलिक सातवें घर में हो, तो जातक कलह प्रिय तथा समाज से द्वेष करने वाला होता है। ऐसा जातक अनेक स्त्रियों से संबंध स्थापित करता है। वह कामी और कृतध्न दोनों ही होता है।


आठवें भाव में गुलिक का फल

आठवें भाव के गुलिक वाला जातक ठिगने कद का होता है। उसके बचपन में उसकी आंख में आघात होता है,अक्सर इस प्रकार के जातक हकलाने वाले भी होते है,अधिक खर्च करना और अपनी पत्नी या पति के स्वभाव से व्यथित रहना भी मिलता है। इस प्रकार के जातकों का धन अधिकतर मामलों में पुत्री धन ही बनता है,पुत्र संतान या तो होती नही है और अगर होती भी है तो परिवार से दूर चली जाती है,पुत्रियों की राजनीति से घर में विद्रोह पैदा होता है।यदि गुलिक अष्टम् भाव में हो, तो जातक का शरीर छोटा होता है। चेहरे तथा नेत्रों में कोई अस्वाभाविकता होती है। तात्पर्य यह है कि ऐसे जातक के शरीर मेें कोई दोष, अथवा विकलांगता अवश्य होती है।


नवें भाव में गुलिक का फल

नवे भाव के गुलिक वाला जातक भाग्य हीन होता है और वह अधिकतर अपने ही परिवार से हमेशा के लिये दूर हो जाता है,भाग्य और धर्म के मामलों मे वह जाना नही चाहता है और अगर जाता भी है तो वह उनके अन्दर कोई ना कोई दखल ही देता है। यदि किसी कुंडली के नवम भाव में गुलिक स्थित हो, तो जातक अपने गुरु तथा पुत्र से हीन होता है। यहां गुरु का तात्पर्य पिता से भी है।


दसवें भाव में गुलिक का फल

जातक पापी अधर्मी और धार्मिक स्थानों का तिरस्कार करने वाला होता है,धर्म की ओट में वह कमाकर बेकार के बुरे कर्मों को करने में तथा ऐयासी में खर्च करने वाला होता है।यदि दशम घर में गुलिक हो, तो जातक अशुभ कर्म करने वाला होता है। उसके हाथ एवं शरीर से दान, धर्म, यज्ञादि जैसे शुभ कार्य नहीं होते। 


ग्यारहवें भाव में गुलिक का फल

इस भाव के गुलिक का फ़ल जातक के लिये साहसी बनाने वाला होता है,और अधिकतर मामलों में वह न्याय वाले काम करता है।एकादश भाव का गुलिक जातक को सुखी, धनी, अति तेजस्वी तथा कांतिवान बनाता है। उसे पुत्र सुख भी प्राप्त होता है। 


बारहवें भाव में गुलिक का फल

इस भाव के गुलिक वाला जातक परदेश में रहने वाला और मलिन स्थानों में निवास करने वाला था अपव्ययी होता है,अक्सर इस प्रकार के जातकों का निवास किसी शमशान या मुर्दा स्थान के आसपास होता है।यदि मांदि द्वादश भाव में हो, तो जातक व्यर्थ भ्रमण करने वाला, अपव्ययी तथा व्यसनी होता है। ऐसा जातक विषय सुख से रहित तथा दीन और निर्धन होता है। 


अपने अगले पोस्ट गुलिक का तिलिस्म - भाग 3 में गुलिक के सम्बंध में और भी कई रोचक जानकारियाँ तथा अपना अनुभव लेकर आऊंगा । साथ ही गुलिक के दोष शांति हेतु शास्त्रीय उपाय भी बताउँगा।


अपने कुंडली में गुलिक के सम्पूर्ण जांच पड़ताल कराने हेतु सम्पर्क करें 


To be Continued...

पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान

Mob. - +91 9341014225.

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