Search This Blog

Wednesday, 3 April 2019

जानिए क्या है सनातनीय नववर्ष का महत्त्व


आप सभी लोगों को सनातनीय नववर्ष 2076 की बहुत बहुत मंगलकामना....

सनातनीय नववर्ष आदि काल से चैत्रशुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता रहा है। वैदिशिक प्रभाव में आकर वर्तमान भारतीय पीढ़ी 1 जनवरी को ही अपना नववर्ष समझती है । परन्तु हमें यह बात अवश्य ध्यान रखनी चाहिए कि जो अपना इतिहास भूला देता है उसका नाश निश्चित है। अपनी संस्कृति, संस्कार, परम्परा, धर्म, व्यवस्था आदि हमारे पूर्वजों की थाती हैं, धरोहर हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इसे निभाएँ, इसे जीवित रखें और अपनी पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने में अपनी भूमिका पूरी करें।

चैत्रशुक्ल प्रतिपदा नववर्ष के वैशिष्ट्य-

1. ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्ट्यारंभ किया था।
2. यह दिन सृष्टि, कल्प और युग के आरम्भ की दिन है।
3.भगवान विष्णु का प्रथम अवतार भी इसी दिन माना जाता है।
4. राजा विक्रमादित्य ने अपना संवत प्रवर्तन इसी दिन से किया था।
5. वासन्तिक नवरात्र का आरम्भ इसी दिन से होता है।
6. हमारे परम आराध्य भगवान श्रीरामचन्द्र जी का जन्म चैत्र मास में ही हुआ है।
7. इस समय पूरी प्रकृति लहलहाती, जगमगाती है।
8. वर्ष के राजा व सभासदों का निर्धारण इसी दिन के वार से होता है।
9. हम परंपरागत रुप से इस त्यौहार को मनाते ही हैं। साल संवत काट कर होली खेल कर पूर्व वर्ष की विदाई करते हैं, और नवरात्र व्रत रामनवमी पूजन के साथ नए वर्ष का शुभारम्भ करते हैं।
10. चैत्र मास को मधु मास भी कहा जाता है, इस समय मौसम भी समशीतोष्ण रहता है।
11. चैत्रशुक्लप्रतिपदा उत्तर भारत में नववर्ष के नाम से, दक्षिण भारत में गुड़ी-पड़वा के नाम से और सिन्धक्षेत्र में श्रीझूलेलाल जयन्ती के नाम से मनाया जाता है।

इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात् सनातन नववर्ष 6 अप्रैल 2019 को है। इसी दिन विक्रम संवत 2076 प्रारंभ होगा | इस वर्ष पूरे वर्षभर परिधावी संवत्सर रहेगा।
इस वर्ष राजा-शनि, मंत्री-सूर्य, सस्येश-बुध हैं। राजा व मन्त्री के परस्पर विरोधीग्रह होने से समाज व शासन में परस्पर तारम्यता व सामंजस्य का अभाव परिलक्षित होगा। बहुत से मायनों में यह वर्ष निर्णायक साबित होगा।

इस दिन क्या करें???
1. आज के दिन संहिता ज्यौतिष के विद्वान  वर्षा की मात्रा अल्पवृष्टि, अनावृष्टि आदि जानने के लिए वायुपरीक्षण करते हैं।

2. आयुर्वेद के विद्वान कुछ महत्वपूर्ण औषधियों के पूजन, संग्रहण व निर्माणारम्भ का कार्य करते हैं।

3. मत्स्यपुराण में कहा गया है, चैत्रमास में मधु रहित दुध-दही-गुड़-घी का मिश्रण, वस्त्र, सुवर्ण आदि से गौरी माता की प्रसन्नता के लिए जो पत्नी सहित ब्राह्मण का पूजन करता है, वह भवानी के लोक को प्राप्त करता है। यह व्रत गौरी व्रत कहलाता है। यथा-

वर्जयित्वा मधौ यस्तु दधिक्षीरघृतैर्युतम्,
दद्याद्वस्त्राणि सूक्ष्माणि सर्ववर्णयुतानि च ।
संपूज्य विप्रमिथुनं गौरी में प्रियतामिती,
एतद् गौरीव्रतं नाम भवानी लोकदायकम् ।।


4. भविष्योत्तर पुराण के अनुसार चैत्र मास में जो व्यक्ति तीन दिनों तक केवल रात्रि को भोजन करते हुए नक्तव्रत करके चौथे दिन किसी नदि में स्नान करके पाँच दूध देने वाली बकरियों का दान किसी गरीब परिवार को करे तो वह जीवन के इस आवागमन से मुक्त हो जाता है। यथा-

चैत्रे त्रिरात्रं नक्ताशी नद्यां स्नात्वा ददाति यः,
अजाः पञ्च पयस्विन्यो दरिद्राय कुटुम्बिने।
न जायते पुनरसौ जीवलोके कदाचन ।।


5. वामन पुराण में बताया गया है कि चैत्रमास में भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए ब्राह्मणों को वस्त्र और शय्या का दान करना चाहिए। यथा-

चैत्रे मासि विचित्राणि शयनान्यशनानि च।
विष्णोः प्रीत्यर्थमेतानि देयानि ब्राह्मणेश्वथ ।।


6.चैत्र शुक्ल पक्ष में 15 दिनों तक नीम की गोलियों का सेवन करने वाला व्यक्ति वर्षभर सभी रोगों से मुक्त रहता है।

7. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन तैलाभ्यंग(शरीर में तेल मलकर) स्नान करना चाहिए । वृद्ध वशिष्ठ ने कहा है कि जो इस दिन तैलाभ्यङ्ग स्नान नहीं करता वह नरक को जाता है। यथा-

वत्सरादौ वसन्तादौ बलिराज्ये तथैव च।
तैलाभ्यङ्गमकुर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते ।।

8. इस दिन पञ्चाङ्ग श्रवण का विशेष फल प्राप्त होता है ।

9. आज के दिन अपने अपने घरों में ध्वजारोपण(झंण्ड़ा लगाना) और वर्षपति का पूजन किया जाता है।

10. मुख्य रुप से इस दिन तीर्थ या नदिक्षेत्र में तैलाभ्यंग स्नान, दान आदि करना चाहिए। अपने माता-पिता, गुुरुजन व पितरों व ब्राह्मणों का आशीर्वाद लेना चाहिए। सूर्य भगवान को अर्ध्य और सूर्यरश्मि स्नान करना चाहिए। पक्वान्न खाना चाहिए । पंचांग फल का श्रवण करना चाहिए। अपने घरों की साफ-सफाई करके वन्दनवार लगाना चाहिए। ध्वजारोपण व वर्षपति का पूजन करना चाहिए। अपने मित्रों व परिजनों से पुराने गिले शिकवे भुलाकर नववर्ष की बधाई देते हुए उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए मेल मिलाप करना चाहिए।

11. आज से ही नवरात्र व्रत का भी आरम्भ होता है, इसके अन्तर्गत लोग कलशस्थापना पूर्वक दुर्गापाठ या रामचरितमानस का पाठ अपने घरों में कराते हैं ।

12. चैत्रमास की तृतीया और पूर्णिमा तिथियाँ  मन्वादि तिथियाँ कही गई है, इस दिन पिण्ड़रहित श्राद्ध व तर्पण का बहुत महत्व है ।
मत्स्यपुराण में कहा गया है कि मन्वादि युगादि तिथियों में विधिपूर्वक श्राद्ध करने से दो हजार वर्षों तक पितरों की तृप्ति होती है। यथा-

कृतं श्राद्धं विधानेन मन्वादिषु युगादिषु।
हायनानि द्विसाहस्रं पितृणां तृप्तिदं भवेत्।।







© पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
         B.H.U., वाराणसी।
इस वर्ष का राशिफल/वर्षफल जानने व
जन्मकुण्ड़ली के उत्कृष्ट फलादेश हेतु
सम्पर्क करें।

No comments:

Post a Comment