जी हाँ आपको सुनने में यह बात आश्चर्यजनक लग सकती है कि मध्यान्ह या मध्यरात्रि में जन्म लेना ज्योतिष में राजयोग की निशानी है।
लेकिन आज हम आपको इस महत्वपूर्ण तथ्य से अवगत कराने आए हैं, वो भी पुख्ता शास्त्रीय प्रमाण और पर्याप्त अनुभव के साथ।
तो चलिए इसपर शास्त्रीय पक्ष का अध्ययन करते हैं। साथ ही कुछ उदाहरण कुंड़लियों के माध्यम से भी इस नियम को परखते हैं और उसके बाद इसकी समीक्षा भी करेंगे।
#शास्त्रीय_प्रमाण:-
वृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय 36 श्लोक 13-
#दिनार्धाच्चनिशार्धाच्चपरंसार्धंद्विनाड़िका ।
#शुभावेलातदुत्पन्नोराजास्यात्तत्समोऽपिवा ।।
अर्थात्- स्थानीय मध्यान्ह या मध्यरात्रि अर्थात दिनमान के आधे या मिश्रमान के बराबर इष्टकाल हो या उसके 2-2 घड़ी आगे पीछे इष्टकाल हो अर्थात् स्थानीय मध्यान्ह या मध्यरात्रि से 48 मिनट इधर-उधर के भीतर जन्म हो तो व्यक्ति राजा या राजसदृश होता है।
उत्तर कालामृत अध्याय 4 श्लोक 30-
#रात्र्यर्धाद्द्युदलात्परंयदिभवेज्जातो_द्विनाड्यात्मके
#कालेस्यान्नृृपतिर्जितारिरनिशंस्वाचारविद्यान्वितः।
अर्थात्- स्थानीय मध्यान्ह या मध्यरात्रि या उसके 2-2 घड़ी आगे पीछे इष्टकाल हो अर्थात स्थानीय मध्यान्ह या मध्यरात्रि से 48 मिनट इधर-उधर के भीतर जन्म हो तो वह एक राजा बन जाता है जो अपने सभी दुश्मनों पर विजय प्राप्त करता है, जो परंपरागत आचार संहिता देखता है, और जो विद्यायुक्त होता है।
#उदाहरण-
1.नाम- श्रीमोरारजी देसाई
जन्मतिथि- 29/02/1986
जन्मसमय-12:58pm
जन्मस्थान- Bilimora (Gujrat)
2.नाम- श्रीलालबहादुर शास्त्री
जन्मतिथि- 2/10/1904
जन्मसमय-11:40am
जन्मस्थान-Varanasi.
3.नाम- मिश्र के राजा फारुख
जन्मतिथि- 11/02/1920
जन्मसमय- 10:18pm
जन्मस्थान- Cairo, Egypt.
4.नाम- श्री पी. वी. नरसिम्हा राव
जन्मतिथि- 28/06/1921
जन्मसमय- 01:00pm
जन्मस्थान- karimnagar (A.P.)
5.नाम- श्री ज्योतिबसु
जन्मतिथि- 08/07/1914
जन्मसमय- 11.00a.m
जन्मस्थान- kolkata
कुंडली संकलन व अध्ययन के लिए मैने Astrosage.com<Celebrity Horoscope<Politition पर जाकर कुंडलियों को देखा और पाया ज्यादातर सफल और प्रसिद्ध राजनेताओं का जन्म 12:00 बजे या उसके आसपास हुआ है।
आप सब को यह ज्ञात ही है कि भगवान श्रीरामचन्द्र जी का जन्म मध्यान्ह और भगवान श्रीकृष्णचन्द्र जी का जन्म मध्यरात्रि में हुआ है और इस राजयोग से भगवान राम अयोध्या के व भगवान कृष्ण द्वारिका के राजा बने।
#योगकीसमीक्षा-
यदि जन्म मध्यान्ह के समय हो तो सूर्य दशम भाव में होता है मध्यान्ह से कुछ पहले जन्म हो तो एकादश भाव में और मध्यान्ह से कुछ बाद जन्म हो तो नवम भाव में सूर्य रहता है।
यदि मध्यरात्रि में जन्म हो तो सूर्य चतुर्थ भाव में मध्यरात्रि से कुछ पहले जन्म हो तो सूर्य पञ्चम भाव में और मध्यरात्रि से कुछ बाद जन्म हो तो सूर्य तृतीय भाव में होता है।
इस योग में प्रधान रूप से राजपद की प्राप्ति के लिए सूर्य की महत्ता दर्शाई गई है। सूर्य ग्रहों का राजा है राजकीय पद और राजसम्मान का कारक ग्रह माना जाता है । चतुर्थ स्थान समाज का द्योतक है और दशम स्थान राज्य, कीर्ती आदि के लिए जाना है। इसलिए इनभावों में स्थित सूर्य राजपद प्रदान करता है। इनके अलावा मध्यान्ह या मध्यरात्रि से 48 मिनट आगे पीछे जन्म होने पर सूर्य एकादश या नवम तथा पञ्चम व तृतीय भाव में रह सकता है। नवम स्थान भाग्य स्थान माना जाता है, एकादश भाव सभी प्रकार के लाभ का द्योतक है जिनमें राज्यलाभ भी शामिल है, पञ्चम स्थान त्रिकोण स्थान है इससे राज्यहानी और पदावनति का विचार किया जाता है। तीसरे भाव से पराक्रम व बाहुबल का विचार किया जाता है। इसप्रकार इन भावों का संबंध भी राज्य से बनने के कारण इनमें स्थित सूर्य भी राज्यप्रदान कराने में सक्षम है।
चमत्कार चिन्तामणि में तृतीयस्थ सूर्य रहने पर राजकीय पक्ष से लाभ, चतुर्थस्थ सूर्य रहने पर प्रतिष्ठित पद प्राप्ति, दशमस्थ सूर्य रहने पर राजतुल्य सुख, एकादशस्थ सूर्य होने पर राजकोष से धन और कदाचित् उच्चपद की प्राप्ति कही गई है। नवम व पञ्चम भावस्थ सूर्य के फल में यहाँ राजसंबंध नहीं लिखा गया है। भावप्रकाश नामक ग्रन्थ में नवमभावस्थ सूर्य का फल लोकपूजित बताया गया है।
#फलादेशहेतुयुक्तियाँ-
1. मेरी सम्मति से मध्यान्ह और मध्यरात्रि में अथवा उसके 48 मिनट आस पास में जन्म हो और सूर्य दशम या चतुर्थ में हो तो राज्यप्राप्ति/राजसुख प्राप्ति की प्रबल संभावना बन जाती है उच्चस्तर का राजयोग बनता है । अन्य भावों मे सूर्य रहने पर सामान्य स्तर का राजयोग है ऐसा जानना चाहिए लेकिन राजयोग है जरूर यदि 48 मिनट आगे पीछे जन्म है तो।
2. इन योगों के अलावा और भी प्रबल राजयोग का निर्माण होने पर ही ये योग पूर्णतः फलित होगा अन्यथा अल्पशः फलित होगा।
3.सूर्य को दशम भाव में ज्यादा दिग्बल प्राप्त होता है सूर्य दशमभाव का कारक भी है अतः दशमभाव के सूर्य रहने पर राजसंबंध प्रबल रूप से होता है।
4. सूर्य के उच्च, नीच, स्वगृही, मूलत्रिकोण, राशि/भावसन्धिगत होने पर तदनुसार ही फल में उतार चढ़ाव भी देखने को मिलेगा।
5. जो धूमादिअप्रकाशग्रह नाम से सूर्य के पाँच दोष बताए गए हैं उनके साथ स्थित सूर्य भी प्रबल रोजयोग नहीं फलित कर पाएगा।
6.सभी भावों से बनने वाले अपने भावगुणानुरुप ही राज्य या पद प्राप्ति अर्थात राजयोग फलित भिन्न भिन्न तरीके से करेंगे ।
- पं ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
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