चन्द्र ग्रहण 16 जुलाई
चंद्रग्रहण - 16-17 जुलाई 2019
ग्रहण प्रारम्भ : रात्रि 1:31 AM
ग्रहण मध्य : रात्रि 3:01 AM
ग्रहण समाप्ति: रात्रि 4:31AM
सूतक प्रारम्भ: सायं 4:31PM
यह खण्ड़ग्रास चन्द्रगहण पुरे भारत में दिखाई देगा !
गुरुपूर्णिमा वाले दिन लगने वाला यह चंद्रग्रहण 180 मिनट तक रहेगा !
इस दौरान जप -तप और दान का विशेष महत्व होगा !
नोट :- इस दिन गुरुपूर्णिमा का उत्सव एवं सम्बन्धित गुरु -पूजन इत्यादि ग्रहण के सूतक प्रारम्भ (4:31PM) से पहले ही संपन्न कर लेना चाहिए !
सिध्दपीठों व मंदिरों के कपाट शाम 4:31pm से बंद कर दिया जायेंगे, अतः समय से पहले ही दर्शन-पूजन कर लें ।
ग्रहण सूतक- धर्मशास्त्रों के अनुसार चन्द्रग्रहण में ग्रहण से 9 घण्टे पहले और सूर्यग्रहण में ग्रहण से 12 घण्टे पहले ग्रहण सूतक लगता है। इसमें शिशु, अतिवृद्ध और गम्भीर रोगी को छोड़कर अन्य लोगों के लिए भोजन और मल-मूत्र त्याग वर्जित है। कहा भी गया है-
सूर्यग्रहे तु नाश्नीयात् पूर्वं यामचतुष्टयम्।
चन्द्रग्रहे तु यामास्त्रीन् बालवृद्धातुरैर्विना।।
सभी सनातनियों के धर्मशास्त्रिय आदेश का पालन करते हुए, सूतक के समय से ही ग्रहण के सभी नियमों का पालन करना चाहिए।
विभिन्न राशियों पर ग्रहण का प्रभाव-
1. मेष- सन्ततिचिन्ता ।
2. वृष- सुख ।
3.मिथुन- स्त्रीकष्ट ।
4. कर्क- मृत्युभय ।
5. सिंह- माननाश ।
6. कन्या- सुख ।
7. तुला- लाभ ।
8.वृश्चिक- हानि ।
9. धनु- निधन ।
10.मकर- क्षति ।
11. कुम्भ- श्रीप्राप्ति ।
12. मीन- व्यथा ।
जिन राशियों के लिए अनिष्ट फल कहा गया है, उन्हें ग्रहण नहीं देखना चाहिए । अनिष्टप्रद ग्रहण फलों के निवारण के लिए स्वर्ण निर्मित सर्प कांसे के बर्तन में तील, वस्त्र एवं दक्षिणा के साथ श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करना चाहिए । अथवा अपनी शक्ति के अनुसार सोने या चाँदी का ग्रहबिम्ब बनाकर ग्रहण जनित अशुभ फल निवारण हेतु दान करना चाहिए। ग्रहण दोष निवारण के लिए विशेषकर गौ, भूमि अथवा सुवर्ण का दान दैवज्ञ के लिए करना चाहिए।
दान करते समय ये श्लोक पढ़ें-
तमोमय महाभीम सोम सूर्य विमर्दन,
हेमनाग प्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव।
विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहाकानन्दनाच्युताम्,
दानेनानेन नागस्य रक्षमां वेधनाद्भयात्।।
इस प्रकार दान करने से निश्चय ही ग्रहण जनित अशुभ से अशुभ फलों का भी शमन हो जाता है और उसके दुष्प्रभावों से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है।
ग्रहण के समय क्या करें क्या न करें ?
1. चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है।
2. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी लें। ऐसा करने से वे मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर ही भोजन करना चाहिए।
4. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। इसलिए घर में रखे सभी अनाज और सूखे अथवा कच्चे खाद्य पदार्थों में ग्रहण सुतक से पूर्व ही तुलसी या कुश रख देना चाहिए। जबकि पके हुए अन्न का अवश्य त्याग कर देना चाहिए। उसे किसी पशु या जीव-जन्तु को खिलाकर, पुनः नया भोजन बनाना चाहिए।
5. ग्रहण वेध के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्थात् सूतक काल में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक तो बिलकुल भी अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
6.ग्रहण के समय एकान्त मे नदी के तट पर या तीर्थो मे गंगा आदि पवित्र स्थल मे रहकर जप पाठ सर्वोत्तम माना गया है ।
7. ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद तीर्थ में स्नान का विशेष फल है। ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए।
8. ग्रहण समाप्ति पर स्नान के पश्चात् ग्रह के सम्पूर्ण बिम्ब का दर्शन करें, प्रणाम करें और अर्ध्य दें। उसके बाद सदक्षिणा अन्नदान अवश्य करें।
9. ग्रहण समाप्ति स्नान के पश्चात सोना आदि दिव्य धातुओं का दान बहुत फलदायी माना जाता है और कठिन पापों को भी नष्ट कर देता है। इस समय किया गया कोई भी दान अक्षय होकर कई गुना फल प्रदान करता है।
10. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।
11. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
12. ग्रहण काल मे सोना मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन – ये सब कार्य वर्जित हैं।
13. ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।
14. ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)
15. गर्भवती महिलाओं तथा नवप्रसुताओं को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। सुतक के समय से ही ग्रहण के यथाशक्ति नियमों का अनुशासन पूर्वक पालन करना चाहिए।उनके लिए बेहतर यही होगा कि घर से बाहर न निकलें और अपने कमरे में एक तुलसी का गमला रखें।
16. ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएँ श्रीमद्भागवद् पुराणोक्त गर्भरक्षामन्त्र का अनवरत मन ही मन पाठ करती रहें।
गर्भरक्षामन्त्र-
पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते ।
नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम्।।
17. भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। इसी प्रकार गंगा स्नान का फल भी चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना होता है।
18. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
19. ग्रहण के दौरान भगवान के विग्रह को स्पर्श न करे।
20. ग्रहण के समय ईष्टमन्त्रों की सरलता से सिद्धि प्राप्त हो जाती है, अतः अपने गुरु से अपने अभिष्ट मन्त्र लेकर उनके सानिध्य में ग्रहण के दौरान मन्त्र-सिद्धि भी कर सकते हैं। शाबर मन्त्र ग्रहण के दौरान गंगातट पर 10,000 जपने से सिद्ध हो जाते हैं।
21. रविवार के दिन सूर्यसंक्रान्ति और सूर्य अथवा चन्द्रग्रहण में रविवार होने पर उस दिन पुत्रवान गृहस्थ को पारण एवं उपवास नहीं करना चाहिए।
ग्रहण को कैसे देखें ?
ज्योतिषियों, खगोलशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के अलावा सामान्य जनमानस में भी ग्रहण को देखने की विशेष जिज्ञासा रहती है। खासकर छात्रों में यह उत्कण्ठा विशेषरूप से देखने को मिलती है। तो आइए जानते हैं कैसे हम 16-17 जुलाई को लगने वाले खण्ड़ग्रास चन्द्रग्रहण का आनन्द ले सकते हैं।
1. चन्द्रग्रहण को देखने के लिए किसी विशेष सुरक्षा उपकरण की जरूरत नहीं होती। आप खुले आँखों से चन्द्रग्रहण का दीदार कर सकते हैं।
2. बस टकटकी लगाकर ग्रहण न देखें, पलकें झपकातें रहें।
3. खुले मैदान में साफ आसमान के नीचे खड़े होकर आप ग्रहण देख सकते हैं।
4. गणित ज्योतिष् के अध्येता और एस्ट्रोनामि के विद्यार्थी और खगोल वैज्ञानिक ग्रहण को विशेष तौर पर आब्जर्व करते हैं।
5. पतराटोली, लोहरदगा(झारखंड) में स्थित हमारे "भास्कर एस्ट्रो एसोसिएशन" नामक विज्ञान प्रसार संस्था द्वारा स्वनिर्मित टेलिस्कोप से चन्द्रग्रहण देखने की विशेष व्यवस्था रहेगी।
- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
B.H.U, वाराणसी।
Mob.- 7004022856.
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