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Sunday 13 August 2023

गुलिक का तिलिस्म - 3


 गुलिक का तिलिस्म

भाग-3


आप इससे पूर्व गुलिक से सम्बंधित मेरे दो पोस्ट पढ़ चुके हैं । जिनमें आपने गुलिक का परिचय प्राप्त किया, गुलिक साधन करना सीखा साथ ही गुलिक के भावफल का विस्तार से अवगाहन किया। मुझे विश्वास है की आपने गुलिक के महत्व को समझा है और बहुत रूचिपूर्वक आप इस तीसरे पोस्ट पर पधार रहे हैं । जो लोग सीधे ही इस पोस्ट में आ गए है उनसे मेरा निवेदन है की कृपया पिछले दोनों पोस्ट पढ़कर ही इस पोस्ट को पढ़ें तो आपके लिए यह पोस्ट ज्यादा लाभकर सिद्ध होगा। मैं उन दोनों पोस्टस् के लिंक आपके साथ साझा कर रहा हूँ । 


गुलिक का तिलिस्म भाग - १

गुलिक का तिलिस्म भाग - २




गुलिक के बारे में अन्य विचार

  • प्रमाण गुलिक - गुलिक स्पष्ट के ठीक 6 राशि आगे स्थित राशि में गुलिक स्पष्ट के समान अंश कला-विकला में भी गुलिक जैसे ही दुष्प्रभावों की स्थिति मानी गयी है। इसे भारतीय ज्योतिष में प्रमाण गुलिक कहा गया है। गुलिक तथा प्रमाण गुलिक दोनों के ही राश्याधीश एवं नवांशपति अपनी-अपनी महादशाओं तथा अंतर्दशाओं में अशुभ एवं मारक फल देने वाले माने गये हैं। 

  • गुलिक जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है वह कितना ही कारक जीवन के लिये होता उसे बेकार कर देता है। ग्रह के कारकत्व को समाप्त करने में गुलिक की मुख्य भूमिका होती है।

  • गुलिक अगर त्याज्य काल में हो तो व्यक्ति राजा के घर में भी पैदा हो फ़िर भी वह दरिद्री होता है।




गुलिक के साथ अन्य ग्रहों की युति का फल 

  • सूर्य के साथ मिलने से पिता की अल्पायु और पुत्र की बरबादी का कारण होता है आंखों में रोग देता है और अन्धत्व के कारणों मे ले जाता है। 
  • चन्द्रमा के साथ होने पर वह माता का सुख नही देता है और पानी वाले रोग तथा बेकार के छली लोगों से छला जाता है। माता भी अल्पायु होती है। 
  • मंगल के साथ होने से जातक को भाइयों का सुख नही मिलता है और भाई ही उसकी सम्पत्ति का विनास कर देते है,भाई भी अल्पायु के होते हैं। 
  • बुध के साथ होने से जातक को दौरे पडने की बीमारी देता है और पागल पन की बीमारी भी देता है। जातक लगातार बोलने का आदी होता है,और उसकी बडे भाई की पत्नी या पति के बडे भाई से सम्बन्ध बना होता है जिससे अवैद्य सन्तान का पैदा होना और पितृ दोष की उत्पत्ति का कारण भी माना जाता है। 
  • गुरु के साथ धर्म से अलग होना शिक्षा का पूरा नही होना। 
  • शुक्र के साथ होना बहु स्त्री या बहु पुरुष का भोगी,अधिकतर नीच स्त्रियों का समागम करना या नीच पुरुषों के साथ कामसुख की प्राप्ति करना माना जाता है। 
  • गुलिक का शनि के साथ होने से अधिकतर कोढ होना देखा गया है,राहु के साथ होने से जातक को खून की बीमारी और जातक की मौत जहर खाने से होती है। 
  • गुलिक का राहु-केतु के साथ होना जातक को अग्नि सम्बन्धी कारकों से मृत्यु को सूचित करता है। 


गुलिक और आयुर्दाय

 जातक की आयु गणना के लिए सूर्य, चंद्र, गुलिक एवं लग्न से प्राण, देह तथा मृत्यु स्फुट निकालें और फिर प्राण तथा देह स्फुट का योग करें। यह योग यदि मृत्यु स्फुट से अधिक हो, तो जातक को दीर्घायु जानना चाहिए। यदि मृत्यु स्फुट देह एवं प्राण स्फुट के योग से अधिक हो, तो जातक की अकाल एवं अनायास मृत्यु जाननी चाहिए।

प्राण, देह एवं मृत्यु स्फुट निम्नलिखित प्रकार से निकालें -

प्राण स्फुट = लग्न स्पष्टांश × 5गुलिक स्पष्ट ।

देह स्फुट = चंद्र स्पष्टांश × 8 गुलिक स्पष्ट ।

#मृत्यु स्फुट = गुलिक स्पष्ट × 7 सूर्य स्पष्टांश ।

 

उदहारण - स्व. इंदिरा गांधी की कुंडली में मृत्यु देह और प्राण स्फुट के योग से अधिक था, इसलिए उनकी अप्रत्याशित मृत्यु हुई थी। 



 गुलिक प्रदत्त राजयोग 

 गुलिक का राश्याधीश अथवा नवांशपति अथवा दोनों यदि जन्मकुंडली के केन्द्र अथवा त्रिकोण में हों, स्वराशि अथवा उच्चराशि के हों तो गुलिक प्रदत्त दोष के साथ ही प्रबल राजयोग भी फलित होता है। 


गुलिक पर मेरा अनुभव

1. गुलिकेश और गुलिक नवांशेश का रत्न धारण करना बहुत घातक परिणाम देता है।

2. गुलिकेश या गुलिक नवांशेश की दशा के दौरान लंबे समय तक चलने वाला रोग व्यक्ति को परेशान रखता है।

3.यदि नवम-दशम भाव अथवा भावेश या सूर्य के साथ गुलिक बैठा हो तो भयंकर पितृदोष की सूचना देता है।

4.यदि राहु के साथ गुलिक षष्ठ भाव मे बैठा हो तो जातक अभिचार कर्म से बहुत ज्यादा पीड़ित रहता है।

5.यदि सूर्य के साथ राहु कुम्भ राशि या नवमांश में हो जातक को पितासुख कम मिलता है। पिता के साथ संबंध अच्छे नहीं रहते।

6. गुलिक अकेला ही "महापुरुष" जैसे योग को भी निर्बल करने मे  सक्षम है।


गुलिक दोष हेतु उपचार

अरिष्ट की निवृत्ति एवं इष्ट की प्राप्ति के लिए भारतीय ज्योतिष में अनेक प्रकार के उपाय एवं उपचार बताये गये हैं। गुलिक के उपचार के लिए महर्षि पराशर लिखते हैं -

1. ‘दीपो शिवालये भक्त्या गोघृतेन प्रदापयेत’ अर्थात् भगवान शिव के मंदिर में सायं गो घृत का दीपक जलाएं। 

2. गुलिक दोष की शान्ति के लिए गर्ग-पराशरादि मुनियों के द्वारा बताई गई शास्त्रीय पद्धति पर आधारित हमारा त्रिदिवसीय गुलिक शान्ति पूजन कराएँ । गुलिक शान्ति पूजन कराने के लिए हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान से सम्पर्क करें ।  

3. अन्य उपायों में सूर्य तथा विष्णोपासना भी गुलिक प्रदत्त दोषों को शांत करती है। 

4. यदि गुलिकेश या गुलिक नवांशेश की दशा के दौरान कोई लम्बे समय तक चलने वाला रोग हो तो उसके लिए मेरे शोध पर आधारित "रोगविनाशक हनुमन्प्रयोग" नामक एक वर्षीय साधना करें।


अपने कुण्डली में गुलिक के सम्पूर्ण विश्लेषण के लिए हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान  से अभी सम्पर्क करें। 


पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान

Mob.- +91 9341014225.

Fb-@ptbrajesh.

Friday 11 August 2023

जिज्ञासु के प्रश्न ज्यौतिषाचार्य पं. ब्रजेश पाठक जी का उत्तर

 जिज्ञासु के प्रश्न ज्यौतिषाचार्य पं. ब्रजेश पाठक जी का उत्तर 






प्रश्न - गूलिक को D9 में भी देखना चाहिए ?

उत्तर - जरूर देखना चाहिए। गुलिक नवांशेश और गुलिकेश दोनों बहुत खतरनाक होते हैं। गुरुजी ने तो हर जगह इन दोनों के रत्न पहनने की सख्त मनाही की है। देखें - उपाय भाग्योदय, किस्मत के अनमोल रतन आदि।


प्रश्न - कोई ऐसा भाव है जहां गुलिक का प्रभाव कम या अच्छा होता है ?

उत्तर - 3, 6, 11 भाव है। आप मेरा लेख पढें जो गुलिक पर लिखा गया है।


प्रश्न - गुलिक से सप्तम भाव में कोई बिन्दु होता है, उसका नाम क्या है ? 

उत्तर - आपने पूछा है गुलिक से सप्तम भाव में कोई बिन्दु होता है उसका नाम क्या है ? उसका नाम प्रमाण गुलिक है। गूगल पर प्रमाण गुलिक लिखकर सर्च करेंगे तो इस पर लिखा मेरा लेख आसानी से मिल जाएगा।


प्रश्न - अगर किसी ग्रह पर गुलिक की दृष्टि नहीं है और साथ नहीं है तो उस पर गुलिक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ?

उत्तर - किसी ग्रह का गुलिक को देखना उस ग्रह को प्रभावित नहीं करता बल्कि गुलिक को प्रभावित करता है।


प्रश्न - Will planets sitting with gullik effect more in their dasha antarsha ?

उत्तर - ऐसे कहना ठीक नहीं रहेगा। बात वही है पर करेक्ट फोर्म में कहेंगे तो कभी कन्फ्यूजन नहीं होगा। गुलिक अपना प्रभाव अपने साथ बैठे ग्रहों की दशा में दिखाएगा अथवा अपनी राशीश की दशा में दिखाएगा। यह जो प्रभाव है वो उस ग्रह का नहीं है बल्कि गुलिक का है।


ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान

Mob. - +91 9341014225.


गुलिक का तिलिस्म - २

 गुलिक का तिलिस्म

भाग - २  


अपने पिछले पोस्ट में मैने गुलिक साधन के बारे में विस्तार से बताया था ।  उसके बाद से ही कई जिज्ञासुओं ने मुझसे गुलिक के बारह भावों में फल जानने के लिए प्रश्न किये। आज अपने गुलिक संबंधी दूसरे पोस्ट के माध्यम से मैं उन सभी जिज्ञासुओं के साथ साथ जनसामान्य के ज्ञानवर्धन के उद्देश्य से गुलिक पर विस्तृत और संपूर्ण पोस्ट साझा कर रहा हूँ।





ज्योतिष शास्त्र में सात पिंड ग्रहों के अलावा, 6अप्रकाश ग्रह 9 उपग्रह  2 छाया ग्रह, इस प्रकार 17 गणितीय बिंदुओं की कल्पना की गई है। कहीं कहीं ग्रंथों में मांदी और गुलिक को अलग अलग ग्रह मान कर उनको अलग अलग स्पष्ट करने का तरीका भी बताया गया है। लेकिन वास्तव में गुलिक और मांदी अलग अलग नहीं बल्कि एक ही हैं। मांदी ही गुलिक है, मांदी और गुलिक को अलग अलग समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।


वैद्यनाथ दीक्षित अपने जातक पारिजात नामक ग्रंथ में नव उपग्रहों का इस प्रकार परीचय देते है-

काल परिधि घूमार्द्ध प्रहरा ह्वयाः। 

यमकंटक कोदंड मान्दि पातोपकेतवः।। 

अर्थात- सूर्यादि नव ग्रहों के क्रमशः काल, परिधि, धूम, अर्धयाम, यमघंट, कोदंड, मांदि, पात तथा उपकेत- ये नौ उपग्रह हैं। 

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रं में इन उपग्रहों को ‘अप्रकाश ग्रह’ कहा गया है। वहाँ इनके अलावा धुमादि 6 ग्रहों की और गिनती की गई है। जिनमे से पाँच को सूर्य का दोष बताया गया है । 

आचार्य मंत्रेश्वर ने ‘फलदीपिका’ के पच्चीसवें अध्याय के प्रथम श्लोक में उपर्युक्त नव उपग्रहों को प्रणाम करते हुए मांदि अथवा गुलिक के विभिन्न भावों में स्थित फल की चर्चा की है। 

उन्होंने लिखा है - 

गुलिकस्य तु संयोगे दोषान्सर्वत्र निर्दिशेत्' 

अर्थात्- गुलिक के संयोग से सर्वत्र दोष ही होते हैं | 

नोट - छठे और ग्यारहवें भाव में दोष कुछ कम होता है। 


गुलिक स्पष्ट करना  

किसी भी स्थान के दिनमान या रात्रिमान में 8 का भाग दे कर प्रत्येक भाग में एक-एक उपग्रह की स्थिति मानी गयी है। आठवें  को निरीश माना गया है। जिस खंड का अधिपति शनि होता है, उसी में मांदि की स्थिति मानी गयी है। प्रत्येक दिन के इन भागों के अधिपतियों की गणना उस दिन के वारेश से की जाती है। रात्रि के प्रथम खंड के अधिपति का निर्धारण उस वार के वाराधिपति से पंचम ग्रह से करना चाहिए। वार संख्या और अष्टमांश को गुणा करने पर प्राप्त  इष्ट काल से लग्न साधन की प्रक्रिया के अनुसार जो लग्न निकलेगा वह गुलिक खंड के अंतिम बिंदु का लग्न स्पष्ट होगा। इस संदर्भ में बृहतपाराशरहोराशास्त्रम् का निम्न श्लोक विशेष रूप से दृष्टव्य है: 

गुलिकारम्भ काले यत् स्फुटं यज्जन्म कालिकम्। 

गुलिकं प्रोच्यते तस्ताम् जातकस्य फल वदेत्।। 

अर्थात्- गुलिक लग्न का निर्णय गुलिक काल के प्रारंभ बिंदु को गुलिक का इष्ट काल मान कर गुलिक इष्ट की गणना करनी चाहिए। 

गुलिक लग्न साधन के सन्दर्भ में मेरा सम्बद्ध पोस्ट देखें

गुलिक साधन - Facebook लिंक

गुलिक साधन - Website लिंक

पहले भाव में गुलिक का फल

पहले भाव में गुलिक की उपस्थिति में जातक क्रूर स्वभाव का होता है उसके अन्दर दया नही होती है,उसकी आदत के अन्दर चोरी करना छुपाकर बात करना और कठोर भाषा का बोलना और मंद बुद्धि का फ़ल देता है। सन्तान सुख उसे नही के बराबर ही मिलता है या तो सन्तान होती  ही नही है और होती भी है तो बुढापे में छीछालेदर करने वाली होती है,ऐसा जातक धर्म कर्म को नही मानता है और जितना हो सकता है भौतिकता पर अपना बल देता है। यदि गुलिक लग्न में हो, तो जातक कृश, चोर, क्रूर, विनयरहित, क्रोधी, मूर्ख और भीरु प्रकृति का होता है। ऐसा जातक शास्त्र विरोधी, विषय वासना में लिप्त तथा लंपट स्वभाव का होता है।


दुसरे भाव में गुलिक का फल

दूसरे भाव वाला जातक झूठ बोलने की कला में माहिर होता है,उसे शान्ति कभी अच्छी नही लगती है केवल कलह करने से उसे सन्तोष मिलता है,धन की भावना बिलकुल नही होती है केवल किसका मुफ़्त में मिले और उसका प्रयोग करने के बाद फ़िर से कोई दूसरा शिकार तलासना उसका काम होता है। ऐसा जातक कभी भी एक स्थान पर नही बैठता है हमेशा दर दर का भटकाव उसके जीवन में मिलता है। इस प्रकार के जातकों की जुबान का कोई भरोसा नही होता है,वे आज कुछ बोलते है और कल क्या बोलने लगें कोई भरोसा नही होता है। जन्मकुंडली में मांदि यदि द्वितीय स्थान में हो, तो जातक कटुभाषी तथा व्यर्थ का वाद-विवाद करने वाला होता है। जातक के पास धन-धान्य की कमी रहती है तथा वह प्रायः घर से दूर रहता है।

जिस जातक के दूसरे भाव में गुलिक हो वह जल्दी जल्दी भोजन करने वाला और कठोर व रुखी बोली बोलने वाला होता है। यह जातक एसिडिटी से परेशान रहता है, और लीवर संबंधी समस्याएँ इसे घेरे रहती हैं। युवावस्था में ही इसके नेत्र कमजोर और शरीर शिथिल हो जाते हैं तथा सर खल्वाट्(गंजा) हो जाता है।


तीसरे भाव में गुलिक का फल

तीसरे भाव के गुलिक वाला जातक क्रोधी होता है,उसे घमंड कूट कूट कर भरा होता है,इसके अलावा वह हमेशा लालच करने वाला होता है।किसी सभा समाज से वह नफ़रत करता है,एकान्त मे रहना और शराब कबाब के भोजन करना उसकी शिफ़्त होती है। अक्सर इस प्रकार के जातक जुआरी भी होते है। यदि गुलिक तीसरे घर में हो, तो जातक घमंडी, क्रोधी और लोभी होता है। ऐसे व्यक्ति को भाई-बहन का सुख बहुत कम मिलता है। ऐसा व्यक्ति प्रायः अकेले रहना पसंद करता है तथा अत्यंत मद प्रिय (घमंडी, अथवा व्यसनी, अथवा दोनों) होता है। 


चौथे भाव में गुलिक का फल

चौथे भाव के गुलिक वाला जातक हमेशा अपने घर वालों से शत्रुता किये रहता है उसे अपने ही भाई बहिनो से दुश्मनी और क्षोभ रहता है। अक्सर इस गुलिक वाले जातक को कभी भी वाहन का सुख नही मिलता है। जिसकी जन्मकुंडली में मांदि चतुर्थ भाव में स्थित हो, वह व्यक्ति प्रायः बंधु एवं धनहीन होता है।


पांचवे भाव में गुलिक का फल

पांचवे भाव के गुलिक वाले जातक को संतान का सुख नही मिल पाता है,और अक्सर उनकी पत्नी और पत्नी के परिवार वालों से सामजस्य नही बैठ पाता है। अपनी ही संतान के द्वारा वह अपमानित होता है और अपनी ही सन्तान उसकी मौत का कारण बनती है। यदि गुलिक पांचवें घर में हो, तो जातक दृढ़ बुद्धि होता है। उसके निर्णय क्षण-क्षण बदलते हैं तथा वह किसी एक बात पर दृढ़ नहीं रह पाता। ऐसे व्यक्ति की नैतिक मूल्यों पर भी आस्था नहीं होती तथा वह अल्प संतान वाला होता है। 


छठे भाव में गुलिक का फल

जातक के अन्दर काम करने में आलस होता है वह बैठा रह सकता है लेकिन कोई भी दैनिक काम करने के लिये उसकी आदत नही होती है,यहाँ तक कि वह रोजाना मलमूत्र त्याग और रोजाना के नहाने धोने के कार्यों से भी दूर रहता है। इसके साथ ही शमशान सिद्धि और भूत प्रेत वाली बातों में अपना लगाव भी रखता है। अक्सर इस प्रकार के जातकों का नाम उसके पुत्र करते है और वे आगे से आगे बढने वाले होते हैं। जिसके छठे घर में गुलिक हो, वह बहुत शूरवीर होता है तथा उसके शत्रु उससे प्रायः पराजित ही रहते हैं। ऐसा व्यक्ति भूत विद्या का शौकीन होता है। जो व्यक्ति डाकिनी, शाकिनी, यक्षिणी, भूत-प्रेत आदि की आराधना कर उनसे काम निकालते हैं, उन्हें भूत विद्या का प्रेमी कहा जाता है


सातवें भाव में गुलिक का फल

पति या पत्नी में आपस में शत्रुता और कभी भी एक दूसरे के विचारों का नही मिलना,इसके साथ ही अगर इस प्रकार का जातक किसी के साथ भी काम करता है तो साझेदारी की पूरी की पूरी हिस्सेदारी वह चालाकी से खा जाने वाला होता है। हर किसी से उसे लडाई करने में मजा आता है और जहां भी लडाई होती है वह वहां जाकर अपना भाव जरूर प्रदर्शित करता है। एक से अधिक जीवन साथी बनाना उसकी आदत में होता है। यदि गुलिक सातवें घर में हो, तो जातक कलह प्रिय तथा समाज से द्वेष करने वाला होता है। ऐसा जातक अनेक स्त्रियों से संबंध स्थापित करता है। वह कामी और कृतध्न दोनों ही होता है।


आठवें भाव में गुलिक का फल

आठवें भाव के गुलिक वाला जातक ठिगने कद का होता है। उसके बचपन में उसकी आंख में आघात होता है,अक्सर इस प्रकार के जातक हकलाने वाले भी होते है,अधिक खर्च करना और अपनी पत्नी या पति के स्वभाव से व्यथित रहना भी मिलता है। इस प्रकार के जातकों का धन अधिकतर मामलों में पुत्री धन ही बनता है,पुत्र संतान या तो होती नही है और अगर होती भी है तो परिवार से दूर चली जाती है,पुत्रियों की राजनीति से घर में विद्रोह पैदा होता है।यदि गुलिक अष्टम् भाव में हो, तो जातक का शरीर छोटा होता है। चेहरे तथा नेत्रों में कोई अस्वाभाविकता होती है। तात्पर्य यह है कि ऐसे जातक के शरीर मेें कोई दोष, अथवा विकलांगता अवश्य होती है।


नवें भाव में गुलिक का फल

नवे भाव के गुलिक वाला जातक भाग्य हीन होता है और वह अधिकतर अपने ही परिवार से हमेशा के लिये दूर हो जाता है,भाग्य और धर्म के मामलों मे वह जाना नही चाहता है और अगर जाता भी है तो वह उनके अन्दर कोई ना कोई दखल ही देता है। यदि किसी कुंडली के नवम भाव में गुलिक स्थित हो, तो जातक अपने गुरु तथा पुत्र से हीन होता है। यहां गुरु का तात्पर्य पिता से भी है।


दसवें भाव में गुलिक का फल

जातक पापी अधर्मी और धार्मिक स्थानों का तिरस्कार करने वाला होता है,धर्म की ओट में वह कमाकर बेकार के बुरे कर्मों को करने में तथा ऐयासी में खर्च करने वाला होता है।यदि दशम घर में गुलिक हो, तो जातक अशुभ कर्म करने वाला होता है। उसके हाथ एवं शरीर से दान, धर्म, यज्ञादि जैसे शुभ कार्य नहीं होते। 


ग्यारहवें भाव में गुलिक का फल

इस भाव के गुलिक का फ़ल जातक के लिये साहसी बनाने वाला होता है,और अधिकतर मामलों में वह न्याय वाले काम करता है।एकादश भाव का गुलिक जातक को सुखी, धनी, अति तेजस्वी तथा कांतिवान बनाता है। उसे पुत्र सुख भी प्राप्त होता है। 


बारहवें भाव में गुलिक का फल

इस भाव के गुलिक वाला जातक परदेश में रहने वाला और मलिन स्थानों में निवास करने वाला था अपव्ययी होता है,अक्सर इस प्रकार के जातकों का निवास किसी शमशान या मुर्दा स्थान के आसपास होता है।यदि मांदि द्वादश भाव में हो, तो जातक व्यर्थ भ्रमण करने वाला, अपव्ययी तथा व्यसनी होता है। ऐसा जातक विषय सुख से रहित तथा दीन और निर्धन होता है। 


अपने अगले पोस्ट गुलिक का तिलिस्म - भाग 3 में गुलिक के सम्बंध में और भी कई रोचक जानकारियाँ तथा अपना अनुभव लेकर आऊंगा । साथ ही गुलिक के दोष शांति हेतु शास्त्रीय उपाय भी बताउँगा।


अपने कुंडली में गुलिक के सम्पूर्ण जांच पड़ताल कराने हेतु सम्पर्क करें 


To be Continued...

पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान

Mob. - +91 9341014225.

Thursday 10 August 2023

गुलिक का तिलिस्म - १

 

गुलिक का तिलिस्म 

भाग - १

गुलिक साधन

ज्यौतिष शास्त्र में प्रत्यक्ष ग्रहों के अलावा कुछ अप्रकाश ग्रह भी महर्षि पाराशर ने बताए हैं। उनमें गुलिक सबसे खतरनाक माना जाता है। ये अकेले ही बड़े बज़े राजयोगों को पानी पिलाने सक्षम देखा गया है। गुलिकेश और गुलिक नवांशेश की दशा बहुत खतरनाक रहती है। व्यक्ति दशा पर्यन्त अस्वस्थ रहता है। गुलिकेश या गुलिक नवांशेश का रत्न बहुत हानिकारक होता है। इसलिए गुलिकेश ग्रह का रत्न कभी नहीं पहनना चाहिए फिर चाहे वो लग्नेश ही क्यों न हो। आइए आज आपको गुलिक साधन प्रक्रिया उदाहरण के साथ  समझाता हूँ।





परिभाषा

दिनमान/रात्रिमान के  अष्टमांश को सूर्योदय/सूूर्यास्त में लगातार जोड़ने पर प्राप्त शनिवारखण्ड का नाम गुलिक है।

गुलिक के लिए वार गणना दिन में जन्म होने पर उसी वार से और रात्रि में जन्म होने पर पाँचवें वार से प्रारम्भ करें और शुक्रवार तक गिनें।


गुलिक साधन सूत्र

दिन में जन्म होने पर -

1.(सूर्यास्त-सूर्योदय)=दिनमान।

2.दिनमान÷8=अष्टमांश

3.अष्टमांश x वारसंख्या=शनिखण्ड़।

4. सूर्योदय+शनिखण्ड=गुलिक-काल


अब इस गुलिक काल का लग्नसाधन प्रक्रिया द्वारा लग्नसाधन करें अथवा कुण्डली सोफ्टवेयर में समय ड़ालकर लग्न जान लें यही गुलिक लग्न हुआ।


रात्री में जन्म होने पर -

1. सूर्यास्त - सूर्योदय=दिनमान।

2. 24 घं.-दिनमान= रात्रिमान।

3.रात्रिमान÷8= अष्टमांश

4.अष्टमांशxवारसंख्या= शनि खण्ड।

5.सूर्यास्त+शनिखण्ड=गुलिक काल।


अब इस गुलिक काल का लग्नसाधन प्रक्रिया द्वारा लग्नसाधन करें अथवा कुण्डली सोफ्टवेयर में समय ड़ालकर लग्न जान लें यही गुलिक लग्न हुआ।


गुलिक साधन का उदाहरण

१. दिन में जन्म का उदाहरण -

D.O.B - 20/03/1997; 

T.O.B - 11:20A.M;  

P.O.B - Bokaro (Jharkhand).

सूर्योदय - 05:51

सूर्यास्त - 05:54 (17:54)

जन्मदिन - गुरुवार ।

  • जन्म दिन में होने के कारण वार गणना गुरुवार से ही शुरु होगी। गुरुवार से शुरुकर शुक्रवार तक गिनने पर वार संख्या = 2।

सूत्रानुसार

(1) 17:54 - 05:51 = 12:03, 

(2) 12:03 ÷ 08 = 1:30 

(3) 1:30 x 2 = 2:60

                 =3:00

(4) 05:51 + 3:00 = 08:51.


  • अब 20/03/1997 को 8:51 बजे का सोफ्टवेयर के माध्यम से लग्न निकालने पर लग्न = वृष और नवमांश = मकर प्राप्त हो रहा है। इसलिए शुक्र गुलिकेश और शनि गुलिक नवांशेश हुए।


२. रात्रि में जन्म का उदाहरण -

D.O.B - 28/02/1991.

T.O.B - 00:45.

P.O.B - Delhi.

सूर्योदय - 6:50

सूर्यास्त - 6:17 (18:17)

जन्मदिन - बुधवार।

  • जन्म रात्रि में होने के कारण वार गणना बुध से पाँचवें अर्थात रविवार से होगी। रविवार से शुक्रवार तक गिनने पर प्राप्त वार संख्या= 6।


सूत्रानुसार

(1) 18:17 - 06:50 = 11:27.

(2) 24:00 - 11:27 = 12:33.

(3)12:33 ÷ 8 = 1:34

(4)1:34 x 6 = 9:24

(5)18:17 + 09:24 = 27:41.


  • अब 28/02/1991 को 27:41(03:41A.M) बजे का सोफ्टवेयर के माध्यम से लग्न निकालने पर लग्न=धनु और नवमांश कन्या प्राप्त हुआ। इसलिए गलिकेश गुरु और गुलिक नवांशेश शनि हुए।
नोट - गणना के लिए Web jyotishi के Astrology & horoscope सोफ्टवेयर का सहारा लिया गया है।


  • ऐप का लिंक -

Astrology and Horoscope सॉफ्टवेर डाउनलोड करें |


  • Astrology and Horoscope ऐप को प्रयोग करना सीखने के लिए यह वीडियो देखें -

Best app for Kundali - Watch Video



कुण्डली विश्लेषण में गुलिक बहुत महत्वपूर्ण रोल निभाता है। मैं तो कभी भी बिना गुलिक के कुण्डली विश्लेषण करता ही नहीं हूँ। लैपटाप में पाराशर लाइट सोफ्टवेयर अथवा जगन्नाथ होरा सोफ्टवेयर के जरिए आप गुलिक जान सकते हैं। 

मोबाइल पर ज्योतिष ऐप  नाम का एक ऐप है जिसका लिंक इस प्रकार है - 

Download Jyotisha App

इस ऐप से भी आप गुलिक जान सकते हैं। गुलिक आप स्वयं भी निकाल सकते हैं। 


  • गुलिक पर हिन्दी भाषा में मेरे तीन लेख हैं। जिसमें गुलिक निकालना उनका फल कहना आदि सब बताया गया है। क्रमशः उनको  शेयर करुँगा, यह उनमें से पहला लेख है। 
  • गुरुजी की ज्योतिष गहरे पानी पैठ में गुलिक पापग्रह शिरोमणि नामक लेख है। 
  • Charting the Astrologucal Ocean में भी है।
  •  थोडी बहुत जानकारी जन्मपत्री स्वयं देखिए में भी दी गई है।
  • Predictive Applications Of Sensitive Points पुस्तक में भी गुलिक के बारे में गुरुजी ने बहुत कुछ लिखा है।
  • प्राचीन ग्रन्थों में बृहत्पाराशर, फलदीपिका एवं जातकपारिजात आदि ग्रन्थों में गुलिक पर प्रचूर सामग्री मिलती है।

To be Continued...

पं. ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य (लब्धस्वर्णपदक)

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान 

मो.- +91 9341014225.

Friday 4 August 2023

संतानगोपाल प्रयोग

 संतानगोपाल प्रयोग


संतान गोपाल प्रयोग अत्यंत तीक्ष्ण प्रयोग है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग इसकी विधि ठीक से नहीं जानते। कुछ लोग मात्र एक दो महीना प्रयोग करते हैं  और परिणाम चाहते हैं। कुछ लोग अनेक तरह के पापकर्म यथा भ्रष्टाचार, दुराचार, अनाचार भी करते हैं और चाहते हैं कि केवल मंत्र जप से संतान हो जाए। सन्तान की प्राप्ति तो पूर्व जन्म के प्रारब्ध से ही होनी है। लेकिन उस प्रारब्ध को भी कभी कभी हम क्रियमाण कर्मों के द्वारा प्रतिबन्धित कर देते हैं। वह क्रियमाण कर्म कभी तन में कभी मन में तो कभी धन में विकृति लाता है जिसके कारण हम संतान सुख से वंचित रह जाते हैं। कभी कभी तो संतान सुख में कुछ सामान्य या निर्बल प्रारब्ध हेतु होते हैं। इस प्रकार संतान प्रतिबन्धक प्रबल प्रारब्ध से रहित सात्विक भगवद्भक्त लोगों के लिए सनत्कुमारोक्त संतानगोपाल प्रयोग की विधि का उद्धाटन किया जा रहा है। वैसे तो संतान गोपाल के कई मंत्र प्रचलित हैं और सभी प्रभावी हैं लेकिन अपनी गुरुपरम्परा से प्राप्त सनत्कुमारोक्त संतानगोपाल मंत्र की विधि का ही मैं यहाँ उल्लेख करुँगा। 






साधन - इस प्रयोग को करने के लिए आपको गीताप्रेस से प्रकाशित #संतानगोपालस्तोत्र ग्रन्थ क्रय कर लेनी चाहिए। इस ग्रन्थ का निःशुल्क pdf प्राप्त करने के लिए आप हमारे हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान के नं. पर What's app कर सकते हैं। 


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भगवान_का_स्वरुप_या_चित्र

सनत्कुमारोक्त संतानगोपाल मंत्र की विधि में जिस ध्यान मंत्र का उल्लेख करते हुए कहा गया है -

शङ्खचक्रगदापद्मं_धारयन्तं_जनार्दनम् । 

अङ्के_शयानं_देवक्याः_सूतिकामन्दिरे_शुभे ॥ 

एवं_रूपं_सदा_कृष्णं_सुतार्थं_भावयेत्_सुधीः ॥

अर्थात् - उत्तम बुद्धिवाला साधक पुत्रकी प्राप्तिके लिये सदा ऐसे रूपवाले जनार्दन भगवान् श्रीकृष्णका चिन्तन करे, जो मंगलमय सूतिकागारमें शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये देवकीके अंकमें शयन करते हैं ।





नोट_1- पूजन के लिए भगवान के उक्त स्वरुप का प्रयोग एवं ध्यान करना चाहिए। बीच बीच में भगवान् के जन्म की कथा बार बार सुननी चाहिए। भगवान् का सूतिकागार तो जेल ही है जहाँ भगवान का जन्म हुआ था। अंक मतलब गोद, देवकी के गोद में भगवान जेल में ही थे बाद में तो यशोदा के पास चले गए। संतान गोपाल के चार प्रयोग हैं सभी में इसी स्वरुप का ध्यान करने को कहा गया है।


नोट_2- भगवान के इस स्वरुप का छायाचित्र निःशुल्क प्राप्त करने के लिए आप हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान के  नं. पर What's app कर सकते हैं।





अनुष्ठान_विधि


* ध्यान रहे यह प्रयोग एक वर्ष का है, अतः निर्विघ्नता पूर्वक एकवर्ष पर्यन्त इसका अनुष्ठान करें।


* पति पत्नी दोनों वर्षपर्यन्त सात्विक दिनचर्या अपनाएँ सदाचार पूर्वक रहें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। 


* स्त्रियाँ मासिक धर्म के नियमों का पूर्णतः पालन करें।


* पति या पत्नी दोनों में से कोई भी इस अनुष्ठान को कर सकते हैं।


* स्त्री अपने पति से अनुमति लेकर ही इस अनुष्ठान को करे। जब अनुष्ठान के दौरान मासिक चक्र के कारण अवरोध हो उस दौरान पति इसे पूरा करे। 


* इस प्रयोग में पहले संतान गोपाल मंत्र का 10 माला जप करना चाहिए।


* इसलिए पहले जप विधि बता रहे हैं। जप विधि संतानगोपालस्तोत्र ग्रन्थ के पेज नं. 18 में दी हुई है। 


* सिर्फ एक पृष्ठ की विधि है, उसको ही करना है। उसके अगले पेज पर उद्यापन की विधि है, वह प्रयोग तो जब उद्यापन करेंगे तब करना है। 


* सर्वप्रथम भगवान को जल, चन्दन, पुष्प या पुष्पमाला, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करें।


* उसके बाद विनियोग मंत्र पढ़ कर जमीन या किसी प्लेट पर जल गिराएँ। 


* स्त्रियों को अंगन्यास करने की आवश्यकता नहीं है। 


* इसके बाद ध्यान करें ।


* ध्यान करने के बाद 10 माला जप करें, मंत्र ग्रन्थ में लिखा है। 


* जप के लिए तुलसी, मोती, स्फटिक आदि मालाएँ प्रयोग कर सकते हैं।


* जप के बाद जप भगवान को समर्पित करें।


* फिर संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें। जो ग्रन्थ के पृष्ठ संख्या 22 से 40 में वर्णित है।


* जप से पूर्व अखण्ड दीप जला लें जो पूरे प्रयोग तक जलता रहे।


* अन्त में आरती करें, क्षमा याचना, प्रदक्षिणा करें, प्रणाम करें।


- ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान

Mob.- +91 9341014225.



Wednesday 2 August 2023

कुण्डली में संतान विचार का उदाहरण

कुण्डली में संतान विचार का उदाहरण



* पञ्चमभावस्थ नक्षत्र से छठे नक्षत्र में बृहस्पति होने संतान प्राप्ति में विलंब।


* पञ्चम भावस्थ नक्षत्र में पापग्रह सूर्य है। यह संतान प्राप्ति में प्रबल प्रधान बाधाकारक है।


* कई कारणों से शुक्र (निर्बल पंचमेश) संतान प्राप्ति में गौण बाधाकारक है।


* संतान भाव में अमावस्या तिथि का होना संतान सुख का अभाव दर्शा रहा है।  


* काल नवमांश में पंचमस्थ तीनों ग्रह का होना प्रबल संतान बाधा दर्शा रहे हैं।


* चर पुत्रकारक भी शुक्र ही है जो निर्बल होकर संतान सुख की प्रबल हानि कर रहा है।


* कुंडली में संतान प्राप्ति के अचूक योगों का नितान्त अभाव है।


* हस्तरेखा में भी संतान सुख की प्रबल रेखाएँ विद्यमान नहीं हैं।


* लग्न में आर्द्रा नक्षत्र तथा गुरुवार जन्म का संयोग संतान प्राप्ति में कुछ शारीरिक अक्षमता को दर्शाता है।


* आपके अंगलक्षण, हाव-भाव एवं स्वास्थ्य संबंधी बातें जो आपने बताईं उनसे भी संतान प्राप्ति के लिए अपेक्षित शारीरिक क्षमता का ह्रास सुस्पष्ट है।


* सूर्य-शुक्र-गुरु और पंचमेश स्फुट जीवन के आखरी पड़ाव में संतान प्राप्ति दर्शा रहा है।


* क्षेत्रस्पष्ट के अनुसार गर्भाशय के पुष्टता की पुष्टि हो रही है।


* क्षेत्रस्पष्ट का प्रजाढ्य राशि में होना संतान प्राप्ति के लिए एक सकारात्मक बात है।





* सप्तमांश कुंडली के अनुसार एक पुत्र का थोड़ा बहुत सुख मिलेगा ऐसा समझ में आता है।






निष्कर्ष


* बहुत उपायों के बाद ही संतान होगी।


* उपाय क्रमानुसार करने होंगे और लम्बे समय तक करने होंगे।


* किसी संतान को गोद लेने पर भी आपलोग विचार कर सकते हैं।


नोट - आयु परीक्षण किया। प्राप्त परिणामों के अनुसार कुंडली में दीर्घायु योग हैं। इसी हिसाब से आखरी पड़ाव में संतान पर विचार करना होगा।





संतानप्रद बृहस्पति गोचर


2 - कुम्भ

5 - वृष

7 - कर्क

9 - कन्या

11 - वृश्चिक


संतान कारक अन्तर्दशाएँ


* शनि-बुध - 27 अप्रैल 2026 से  05 जनवरी 2029 तक। नोट - यह समय बहुत प्रबल है क्योंकि इसमें गुरु तथा शनि का गोचर भी शुभ है।


* शनि-शुक्र - 13 फरवरी 2030 से 15 अप्रैल 2033 । नोट - यह समय बहुत प्रबल है क्योंकि इसमें गुरु तथा शनि का गोचर भी शुभ है।


* शनि-मंगल - 27 अक्टूबर 2035 से 05 दिसम्बर 2036 तक।


* शनि-गुरु - 12 अक्टूबर 2039 से 24 अप्रैल 2042 तक।





आपकी कुंडली विवेचना के अनुसार सन्तान प्राप्ति में अत्यंत सहायक उपाय


* सूर्य के बाधकत्व को दूर करने के लिए हरिवंश पुराण का श्रद्धापूर्वक समर्पण भाव से पारायण करें।


* तुलाजननशान्ति कराएँ।


* सूर्य को नियमित अर्ध्य दें।


* गौण बाधक शुक्र के सर्वसामान्य उपाय करते रहें। दुर्गा माँ की विशेषरूप से आराधना करते रहें।


* पंचम भाव में अमावस्या तिथि के दोष निवारण के लिए भागवत् जी का मूलपाठ करा ले।


* काल नवमांश में स्थित ग्रहों के दोष निवारण के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ करा लें।


* संतान सुख की कमी को दूर करने के लिए एकवर्ष तक संतानगोपाल प्रयोग करें।


* अपने खान-पान, दिनचर्या, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें स्वयं को सुदृढ़ करें। 


* ये सब उपाय करने के बाद उचित काल आने पर संतान प्राप्ति के लिए प्रयास करें। संतान प्राप्ति की प्रबल भावना रहने पर ईश्वर संतान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।


- ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य

          (लब्धस्वर्णपदक)

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान

Mob.- +91 9341014225.

Tuesday 1 August 2023

मीन राशि का वार्षिक फलादेश वर्ष 2023

 

मीन राशि का वार्षिक फलादेश वर्ष 2023

-        ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य

(लब्धस्वर्णपदक)

Mob.- +91 9341014225.

मीन राशि के जातक इसी वर्ष 17 जनवरी 2023 से शनि के कुम्भ राशि में गोचर करते ही शनि की साढेसाती के प्रभाव में आ चुके हैं।[1] जब जन्मराशि से 12वें भाव में शनि गोचरवश आता है तब साढे़साती प्रारम्भ होती है तथा शनि के जन्मराशि तथा उससे दूसरे भाव से निकलकर तीसरे भाव में आ जाने तक रहती है। इस प्रकार शनि जन्मराशि सहित तीन राशियों (बारहवें, चन्द्र लग्न और द्वितीय) में 7.5 वर्ष भ्रमण कर लेता है।[2] साढेसात वर्ष तक जन्मराशि को प्रभावित करने के कारण ही इसे साढेसाती कहा जाता है। मीन राशि वालों के ऊपर साढेसाती अपने प्रथम चरण में चल रही है। वर्तमान में शनि उनकी राशि से बारहवें अर्थात् कुम्भ में गोचर कर चुके हैं।[3] अतः साढेसाती अभी पुरे 7.5 वर्ष  शेष है। हाँलाकि साढेसाती का प्रभाव दशा के आधार पर एवं अष्टकवर्ग में प्राप्त शुभरेखा के आधार पर अलग-अलग जातक के ऊपर भिन्न-भिन्न दिखाई पड़ता है। लेकिन सामान्यतया मीन राशि के जातकों के लिए वर्ष 2023 कैसा रहेगा इसका विवरण अर्थात् मीन राशि वालों का वार्षिक राशिफल साढेसाती के आलोक में प्रस्तुत किया जा रहा है। शनि की साढ़ेसाती की उग्रता के कारण इस वर्ष के ज्यादातर फल अशुभता लिए हुए होंगे। दुर्घटना अथवा अनावश्यक वाद विवाद होना संभावित है। वर्ष का पूर्वार्द्ध विशेषरूप से संघर्षों से भरा हुआ रहेगा। व्यवसाय में अवनति सम्भव है। मानसिक कष्ट देने वाली परिस्थितियाँ तो अनेकशः उपस्थित होंगी। निरर्थक यात्रा तथा चोट-चपेट की सम्भावना बनी ही रहेगी। नौकरी पेशा वाले जातकों को प्रचुर कार्यभार के कारण मानसिक दबाव तो रहेगा, लेकिन कार्यक्षेत्र में स्थानान्तरण से कुछ सफलता मिलेगी। आकस्मिक रूप से परिवार के समक्ष कुछ विकट समस्याएँ आयेंगी। आपके कार्यक्षेत्र में उतार-चढ़ाव होता रहेगा, इसलिए सन्देह वाले किसी भी कार्य को करने से बचना चाहिए। गुप्त शत्रुओं के प्रति सावधानी बरतना आवश्यक है। पारिवारिक मतभेद बढ़ेंगे, जिन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता है, यदि स्थिति नियंत्रण से बाहर लगे तो मौन का ही आश्रय लेना ठीक है। न्यायालय से सम्बन्धित कार्यों में कुछ सफलता मिलेगी। माता-पिता को कष्ट होगा और सन्तान के प्रति भी चिन्ता बढ़ेगी। मीन राशि के जातक को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना बहुत आवश्यक है। मुख्यतया रक्त विकार की सम्भावना है। मीन राशि के विद्यार्थियों को अध्ययन क्षेत्र में ज्यादा मेहनत करने पर ही सफलता मिलेगी। वाहन-मकान आदि खरीदने के सामान्य योग हैं। अप्रैल, अगस्त और सितम्बर  माह विशेष रूप से कष्टदायक रहेंगे।





फलदीपिका नामक ग्रन्थ में मन्त्रेश्वर ने जन्मराशि से बारहवीं राशि में शनिगोचर का फल इस प्रकार कहा है -

विश्रान्तिं व्यर्थ कार्याद्वसुहृतिमरिभिः स्त्रीसुतव्याधिमन्त्ये  [4]

अर्थात् -  जब शनि चन्द्र राशि से बारहवीं राशि में हो तो अनावश्यक कार्यों में वृथा लगे रहने के कारण व्यर्थ का परिश्रम होता है, अर्थात् उद्योग सिद्धि या सफलता न मिलने के कारण केवल कष्ट प्राप्ति होती है। शत्रुओं द्वारा धन का हरण कर लिया जाता है और स्त्री और पुत्रों को (व्याधि) रोगपीड़ा होती है । इसलिए इन तीन विषयों को लेकर मुख्यरुप से सावधान रहने की आवश्यकता है।

गोचर विचार के दौरान शनि के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रह होता है बृहस्पति। क्योंकि शुभफलों की पुष्टता के लिए बृहस्पति को उत्तरदायी बताया गया है। इस वर्ष बृहस्पति मीन और मेष राशि में रहेंगे। यह दोनों राशियाँ क्रमशः मीन से प्रथम और द्वितीय हैं। मंत्रेश्वर ने फलदीपिका में जन्मराशि से द्वितीय को बृहस्पति का शुभ गोचरस्थान बताया है।[5] इस प्रकार बृहस्पति के पक्ष से तो मीन राशि वालों के लिए वर्ष 2023 में शुभता की अधिकता ही पुष्ट हो रही है।

वार्षिक राशिफल विचार में आधुनिक ज्योतिर्विद् राहु को भी विशेष महत्व देते हैं। अतः राहु का विचार भी मीन राशि के वार्षिक राशिफल के सन्दर्भ में प्रस्तुत करते हैं। राहु इस वर्ष मेष एवं मीन राशियों में रहेगा। अक्टूबर तक राहु की स्थिति मेष राशि में रहेगी उसके बाद नवम्बर में राहु राशि परिवर्तन करके मीन राशि में आएँगे।[6] मीन राशि मीन से प्रथम ही है और मेष राशी मीन से द्वितीय है। गोचर विचार ग्रन्थ में जगन्नाथ भसीन जी ने यवानाचार्य का मत हिमगोः पूजमसादेर्धनम् का कट्पयादि विधि से अर्थ करते हुए राहु के प्रथम भाव में गोचर करना शुभफल प्रदाता और द्वितीय भाव में अशुभफल प्रदाता बताया है।

गोचर विचार में जगन्नाथ भसीन ने राहु का चन्द्रलग्न से प्रथम भाव में गोचर का फल बताते हुए लिखा है –

राहु चन्द्र लग्न में यदि गोचरवश आ जावे तो मान में वृद्धि हो, धन सम्पत्ति बढ़े, पुत्रों के धन में वृद्धि हो। चूँकि राहु चन्द्र का शत्रु है, अतः मानसिक व्यथा भी हो।[7]

गोचर विचार में जगन्नाथ भसीन ने राहु का चन्द्रलग्न से प्रथम भाव में गोचर का फल बताते हुए लिखा है –

राहु चन्द्र लग्न से द्वितीय भाव में जब गोचरवश आ जाए तो धन की अकस्मात् हानि हो। कुटुम्ब वालों से अनबन रहे विद्या में रुचि न हो। शत्रु अधिक बन जाए। आँख में कष्ट हो।[8]

यह भी ध्यान रखना बहुत आवश्यक है की गुरु और राहु की युति बहुत भीषण परिणाम देती है, अतः आपकी राशि में ही होने वाली ये युति समृद्धि का नाश, गृहनाश, कलंक, कठिन रोग आदि प्रदान कर सकती है।

 

इस प्रकार निष्कर्ष रुप में वार्षिक राशि फल को तीन भागों में बाँटे तो राहु एवं गुरु के कारण 33% शुभता और राहु, शनि एवं बृहस्पति के कारण 66% अशुभता रहेगी।

निष्कर्ष रुप में निम्नलिखित महत्वपूर्ण सावधानियाँ हैं -

* दुर्घटना को लेकर सावधान रहें।

* धन एवं संचित सम्पदा के नाश को लेकर सावधान रहें।

* पत्नी-पुत्र एवं परिवार के स्वास्थ्य को लेकर सावधान रहें।

* मानसिक अशान्ति को लेकर बहुत ज्यादा सावधान रहें।

* धैर्य के साथ इस बुरे समय के व्यतीत होने की प्रतीक्षा करें आगे जीवन में कई शुभ फलों की प्राप्ति होनी है।

अशुभ फलों के निराकरण हेतु सर्वसामान्य उपाय का निर्देश किया जा रहा है -

* प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर शनिदशनाम का पाठ करें।[9]

* प्रतिदिन स्नान के बाद दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।[10]

* शनिवार को शनि दीपदान करें।[11]

* शनिवार को अश्वत्थस्तोत्र[12] का पाठ करते हुए पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा करें।

* प्रतिदिन विष्णुसहस्रनामस्तोत्र का पाठ करें।[13]

 

 

 

 

 



[1] https://www.drikpanchang.com/planet/transit/shani-transit-date-time.html

[2] गोचर विचार जगन्नाथ भसीन अ.4 पृष्ठ सं. 45, रंजन पब्लिकेशन्स

[3] विद्यापीठ-पञ्चाङ्ग पृष्ठ सं. 45, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय

[4] फलदीपिका गोपेश कुमार ओझा अ.26 श्लो.23 पृष्ठ सं.635 मोतीलाल बनारसीदास

[5] फलदीपिका गोपेश कुमार ओझा अ.26 श्लो.07 पृष्ठ सं.625 मोतीलाल बनारसीदास

[6] Mishra’s Indian Ephemeris 2023, Dr. Suresh Chandra Mishra, Page no. 114

[7] गोचर विचार जगन्नाथ भसीन अ.1 पृष्ठ सं. 26, रंजन पब्लिकेशन्स

[8] गोचर विचार जगन्नाथ भसीन अ.1 पृष्ठ सं. 26, रंजन पब्लिकेशन्स

[9] कोणस्थ पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णः रौद्रान्तको यमः, शौरी शनिश्चरो मन्दः पिप्पलाश्रयः संस्तुतः।

   एतानि  दश  नामानि  प्रातरुत्थाय यो पठेत् शनिश्चरो कृता पीड़ा न कदाचित् भविष्यति।।

[10] https://www.bhaktibharat.com/mantra/dashratha-shani-sotra

[11]https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=579770947498176&id=100063958274060&mibextid=Nif5oz

[12] नित्यकर्म पूजाप्रकाश, श्रीलालबिहारी मिश्र, स्तुति प्रकरण, पृष्ठ सं. 336, गीताप्रेस गोरखपुर

[13] नित्यकर्म पूजाप्रकाश, श्रीलालबिहारी मिश्र, स्तुति प्रकरण, पृष्ठ सं. 322, गीताप्रेस गोरखपुर