गुलिक का तिलिस्म
भाग-3
आप इससे पूर्व गुलिक से सम्बंधित मेरे दो पोस्ट पढ़ चुके हैं । जिनमें आपने गुलिक का परिचय प्राप्त किया, गुलिक साधन करना सीखा साथ ही गुलिक के भावफल का विस्तार से अवगाहन किया। मुझे विश्वास है की आपने गुलिक के महत्व को समझा है और बहुत रूचिपूर्वक आप इस तीसरे पोस्ट पर पधार रहे हैं । जो लोग सीधे ही इस पोस्ट में आ गए है उनसे मेरा निवेदन है की कृपया पिछले दोनों पोस्ट पढ़कर ही इस पोस्ट को पढ़ें तो आपके लिए यह पोस्ट ज्यादा लाभकर सिद्ध होगा। मैं उन दोनों पोस्टस् के लिंक आपके साथ साझा कर रहा हूँ ।
गुलिक का तिलिस्म भाग - १
गुलिक का तिलिस्म भाग - २
गुलिक के बारे में अन्य विचार
- प्रमाण गुलिक - गुलिक स्पष्ट के ठीक 6 राशि आगे स्थित राशि में गुलिक स्पष्ट के समान अंश कला-विकला में भी गुलिक जैसे ही दुष्प्रभावों की स्थिति मानी गयी है। इसे भारतीय ज्योतिष में प्रमाण गुलिक कहा गया है। गुलिक तथा प्रमाण गुलिक दोनों के ही राश्याधीश एवं नवांशपति अपनी-अपनी महादशाओं तथा अंतर्दशाओं में अशुभ एवं मारक फल देने वाले माने गये हैं।
- गुलिक जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है वह कितना ही कारक जीवन के लिये होता उसे बेकार कर देता है। ग्रह के कारकत्व को समाप्त करने में गुलिक की मुख्य भूमिका होती है।
- गुलिक अगर त्याज्य काल में हो तो व्यक्ति राजा के घर में भी पैदा हो फ़िर भी वह दरिद्री होता है।
गुलिक के साथ अन्य ग्रहों की युति का फल
- सूर्य के साथ मिलने से पिता की अल्पायु और पुत्र की बरबादी का कारण होता है आंखों में रोग देता है और अन्धत्व के कारणों मे ले जाता है।
- चन्द्रमा के साथ होने पर वह माता का सुख नही देता है और पानी वाले रोग तथा बेकार के छली लोगों से छला जाता है। माता भी अल्पायु होती है।
- मंगल के साथ होने से जातक को भाइयों का सुख नही मिलता है और भाई ही उसकी सम्पत्ति का विनास कर देते है,भाई भी अल्पायु के होते हैं।
- बुध के साथ होने से जातक को दौरे पडने की बीमारी देता है और पागल पन की बीमारी भी देता है। जातक लगातार बोलने का आदी होता है,और उसकी बडे भाई की पत्नी या पति के बडे भाई से सम्बन्ध बना होता है जिससे अवैद्य सन्तान का पैदा होना और पितृ दोष की उत्पत्ति का कारण भी माना जाता है।
- गुरु के साथ धर्म से अलग होना शिक्षा का पूरा नही होना।
- शुक्र के साथ होना बहु स्त्री या बहु पुरुष का भोगी,अधिकतर नीच स्त्रियों का समागम करना या नीच पुरुषों के साथ कामसुख की प्राप्ति करना माना जाता है।
- गुलिक का शनि के साथ होने से अधिकतर कोढ होना देखा गया है,राहु के साथ होने से जातक को खून की बीमारी और जातक की मौत जहर खाने से होती है।
- गुलिक का राहु-केतु के साथ होना जातक को अग्नि सम्बन्धी कारकों से मृत्यु को सूचित करता है।
गुलिक और आयुर्दाय
जातक की आयु गणना के लिए सूर्य, चंद्र, गुलिक एवं लग्न से प्राण, देह तथा मृत्यु स्फुट निकालें और फिर प्राण तथा देह स्फुट का योग करें। यह योग यदि मृत्यु स्फुट से अधिक हो, तो जातक को दीर्घायु जानना चाहिए। यदि मृत्यु स्फुट देह एवं प्राण स्फुट के योग से अधिक हो, तो जातक की अकाल एवं अनायास मृत्यु जाननी चाहिए।
प्राण, देह एवं मृत्यु स्फुट निम्नलिखित प्रकार से निकालें -
प्राण स्फुट = लग्न स्पष्टांश × 5गुलिक स्पष्ट ।
देह स्फुट = चंद्र स्पष्टांश × 8 गुलिक स्पष्ट ।
#मृत्यु स्फुट = गुलिक स्पष्ट × 7 सूर्य स्पष्टांश ।
उदहारण - स्व. इंदिरा गांधी की कुंडली में मृत्यु देह और प्राण स्फुट के योग से अधिक था, इसलिए उनकी अप्रत्याशित मृत्यु हुई थी।
गुलिक प्रदत्त राजयोग
गुलिक का राश्याधीश अथवा नवांशपति अथवा दोनों यदि जन्मकुंडली के केन्द्र अथवा त्रिकोण में हों, स्वराशि अथवा उच्चराशि के हों तो गुलिक प्रदत्त दोष के साथ ही प्रबल राजयोग भी फलित होता है।
गुलिक पर मेरा अनुभव
1. गुलिकेश और गुलिक नवांशेश का रत्न धारण करना बहुत घातक परिणाम देता है।
2. गुलिकेश या गुलिक नवांशेश की दशा के दौरान लंबे समय तक चलने वाला रोग व्यक्ति को परेशान रखता है।
3.यदि नवम-दशम भाव अथवा भावेश या सूर्य के साथ गुलिक बैठा हो तो भयंकर पितृदोष की सूचना देता है।
4.यदि राहु के साथ गुलिक षष्ठ भाव मे बैठा हो तो जातक अभिचार कर्म से बहुत ज्यादा पीड़ित रहता है।
5.यदि सूर्य के साथ राहु कुम्भ राशि या नवमांश में हो जातक को पितासुख कम मिलता है। पिता के साथ संबंध अच्छे नहीं रहते।
6. गुलिक अकेला ही "महापुरुष" जैसे योग को भी निर्बल करने मे सक्षम है।
गुलिक दोष हेतु उपचार
अरिष्ट की निवृत्ति एवं इष्ट की प्राप्ति के लिए भारतीय ज्योतिष में अनेक प्रकार के उपाय एवं उपचार बताये गये हैं। गुलिक के उपचार के लिए महर्षि पराशर लिखते हैं -
1. ‘दीपो शिवालये भक्त्या गोघृतेन प्रदापयेत’ अर्थात् भगवान शिव के मंदिर में सायं गो घृत का दीपक जलाएं।
2. गुलिक दोष की शान्ति के लिए गर्ग-पराशरादि मुनियों के द्वारा बताई गई शास्त्रीय पद्धति पर आधारित हमारा त्रिदिवसीय गुलिक शान्ति पूजन कराएँ । गुलिक शान्ति पूजन कराने के लिए हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान से सम्पर्क करें ।
3. अन्य उपायों में सूर्य तथा विष्णोपासना भी गुलिक प्रदत्त दोषों को शांत करती है।
4. यदि गुलिकेश या गुलिक नवांशेश की दशा के दौरान कोई लम्बे समय तक चलने वाला रोग हो तो उसके लिए मेरे शोध पर आधारित "रोगविनाशक हनुमन्प्रयोग" नामक एक वर्षीय साधना करें।
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- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
Mob.- +91 9341014225.
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