सौरमास_व_चान्द्रमास_गणना....
मास की गणना भारतवर्ष में दो तरह से प्रचलित है।
एक चान्द्रमास जिसके दिनों को तिथि कहा जाता है। ये 15-15 दिनों शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष से मिलकर लगभग 30 दिनों का होता है। शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष के तिथियों का नाम 1-14 तक समान ही है शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है। इस तरह तिथियों की संख्या कहीं कहीं नाम के आधार पर 16 मानी गई है।
भारतवर्ष में अधिकांश व्रत त्योहार चान्द्रमास के आधार पर ही मनाए जाते हैं। धर्मकार्य अनुष्ठान आदि के लिए चान्द्रमास ही प्रशस्त है। चान्द्रमास भारतवर्ष के बंगाल, उड़िसा आदि क्षेत्रों में आज भी दैनिक व्यवहार में प्रचलित है।
दूसरा है सौरमास ये भी लगभग 30 दिनों का होता है। एक राशी में 30अंश होते हैं, और सूर्य को 1अंश चलने में लगभग एक दिन लगता है। इसप्रकार लगभग 30 दिनों का एक सौरमास स्पष्ट हो जाता है।
इस मास का नाम तथा सूर्य के गत अंश के आधार पर दर्शाया जाता है। राशियों में पहली राशी मेष है, सूर्य मेष राशी में वैशाख महीने में आता है उस दिन भारतवर्ष में वैशाखी पर्व भी मनाया जाता है इसलिए सौरमास की गणना वैशाख से करते हैं अर्थात् वैशाख मास पहला सौरमास होता है। यह मास गणना उत्तर भारत के उत्तराखंड, उत्तरांचल, आसाम, नेपाल आदि क्षेत्रों में दैनिक जीवन में जनसामान्य द्वारा आज भी व्यवहार किया जाता है।
जैसे किसी का जन्म माघ 18गते में हुआ है तो वैशाख में मेष राशी इस तरह गणना करते हुए आगे बढ़ें तो माघ में मकर राशी मिलेगी। इसका अर्थ हुआ कि सौरमास के आधार पर जब सूर्य मकर राशि में थे उस समय 18 अंश को पार कर चुकने के पश्चात् वर्तमान 19वें अंश में सूर्य गोचर रहते जातक का जन्म हुआ है।
पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
B.H.U., वाराणसी।
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