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Tuesday, 23 August 2022

दाम्पत्य सुख बढ़ाने वाला अद्भुत् मन्त्र

 दाम्पत्य सुख बढ़ाने वाला अद्भुत् मन्त्र


यदि आप भी पति-पत्नी के बीच कलह से परेशान हैं, वैमनस्य बढ़ रहा है, विचार नहीं मिल रहे हैं अथवा तलाक की नौबत आ रही है या जन्मकुंड़ली में दाम्पत्य सुख का योग  कम है, यदि जीवनसाथी अल्पायु है अथवा जीवनसाथी कुमार्ग का आश्रय ले रहा है तो आपको इस अद्भुत मन्त्र का जप अवश्य ही करना चाहिए। 

यह मन्त्रजप पति या पत्नी अथवा दोनों मिलकर भी कर सकते हैं। इसका जप बहुत सरल है लेकिन इसका प्रभाव स्थायी, दूरगामी और चमत्कृत करने वाला है। 


श्रीवत्सधारिन् श्रीकान्त श्रीधामन् श्रीपतेऽव्यय ।

गार्हस्थ्यं  मा  प्रणाशं  मे  यातु  धर्मार्थकामदम् ।।

अर्थ - हे श्रीवत्सचिन्ह धारण करने वाले ! हे लक्ष्मीपति ! हे लक्ष्मीनिवास ! हे लक्ष्मी के स्वामी ! हे अव्यय ! (कभी विनाश को प्राप्त न होने वाले) मेरे गृहस्थाश्रम का नाश कभी न हो । यह गृहस्थाश्रम मुझे धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि कराने वाला बन जाए। 





सन्दर्भ - आप इसकी महिमा का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यह श्लोक मात्र एक स्थान पर नहीं बल्कि कई पुराणों और संहिताओं में उद्धृत है। आइए कुछ सन्दर्भ देखते हैं - 

इस श्लोक का वर्णन भविष्य पुराण के ब्रह्मपर्व में प्राप्त होता है।  पुनश्च मत्स्यपुराण के 71वें अध्याय के पाँचवें श्लोक में भी यह प्राप्त होता है। पुनश्च अग्निपुराण के 177 वें अध्याय श्लो. 4-5 में यह उद्धृत है। धुरन्धर संहिता सप्तम पटल श्लोक 50 में भी यह श्लोक प्रस्तुत है। साथ ही कुछ भेद के साथ लक्ष्मीनारायण संहिता प्रथम खण्ड  अध्याय 267 में भी यह उद्धृत है। 


प्रयोग विधि

* सामान्य समस्या में इस श्लोक का प्रतिदिन एकमाला जप करें ।


* विकट समस्या में उक्त मंत्र का ब्राह्मणों के द्वारा 10 हजार जप करा लें ।


* उत्कट परिस्थिति में एक लाख जप कराएँ और नियमित एक या दस माला स्वयं भी जप करें। 


मैंने अपने कई परिचितों को इसका प्रयोग कराया है और वे इससे बहुत लाभान्वित हुए हैं। इसलिए पूर्णतः आश्वस्त होकर व्यक्तिगत स्तर पर परीक्षित प्रमाणित श्लोक जनकल्याण की भावना से उजागर कर रहा हूँ।


- ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य

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