चन्द्र+राहु/केतु हो और शराभाव हो तो इसको चन्द्रग्रहण_दुर्योग और सूर्य+राहु/केतु हो और शराभाव हो तो इसको सूर्यग्रहण_दुर्योग कहा जाता है।
लेकिन यदि केवल चन्द्र+राहु/केतु हो इसे सपात_चन्द्र_दोष कहा जाता है। केवल सूर्य+राहु/केतु हो तो इसे सपात_सूर्य_दोष कहा जाता है।
ग्रहण दोष ज्यादा खतरनाक दुष्प्रभाव रखता है जबकि सपात दोष ग्रहण दोष की अपेक्षा कम हानिकर होता है।
शर सिद्धांत ज्योतिष् का तकनीकी शब्द है। कदम्बप्रोत वृत्त में ग्रहबिम्ब और ग्रहस्थान का अन्तर शर कहलाता है। शर के अभाव को शराभाव कहते हैं । हर बार चन्द्र+राहु/केतु रहने पर चन्द्रग्रहण और सूर्य+राहु/केतु रहने पर सूर्यग्रहण नहीं होता। जब इसके साथ साथ शराभाव भी हो तभी ग्रहण दिखाई देता है। अगर शराभाव की बात न रहे तो हर पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण और हर अमावस्या को सूर्यग्रहण लगेगा।
सपात_सूर्य_चन्द्र_दोष_अथवा_ग्रहण_दोष_शान्ति
कुंडली में राहु/केतु + सूर्य/चन्द्र योग रहने पर अशुभ फलों की आशंका बढ़ जाती है। इसे सपात सूर्य या सपात चन्द्र दोष कहा जाता है। जातक में निर्णय क्षमता की कमी, मन दुविधाग्रस्त रहना जैसे अशुभ फल दिखाई देते हैं। यदि राहु/केतु तथा सूर्य/चन्द्र के राशि अंशों में सन्निकटता हो अथवा ग्रहण के दौरान जन्म हो तो यह अशुभ फल बहुत विकट रूप में उभर कर सामने आते हैं। ग्रहण योग में जन्म होने पर आकस्मिक दुर्घटना, नेत्र दोष, दुर्भाग्य, विस्मरणता आदि फल उत्कट रूप से मिलते हैं।
शान्ति_उपाय
* यदि ग्रहण के दौरान जन्म हो तो वृहत्पाराशर होराशास्त्रानुसार ग्रहण शान्ति अवश्य कराएँ। इसके अलावा अग्रीम उपाय नियमित करें।
* प्रतिदिन त्र्यम्बक मन्त्र का सम्पुट लगाकर रुद्रसूक्त का पाठ करें।
* जो वेदमन्त्र पढ़ने के अधिकारी न हों वे मत्स्यपुराणोक्त *ग्रहणदोषोपशमन* स्तोत्र का पाठ करें।
* सपात सूर्य या सूर्य ग्रहण योग रहने पर अपने सौर जन्मदिवस पर उपवास रखें, फलाहार करें और दोपहर से पूर्व गणेश-कलश-नवग्रह-विष्णुपूजनादि करके दूब घास को घी में ड़ुबोकर *त्र्यम्बक मन्त्र* से 108, *सविता पश्चात्तात सविता पुरस्तात् सवितोत्तरात्। सवितोत्तरात् सविता नः सुवतु सर्वतातिं। सविता नो रासतां दीर्घमायु:।* मन्त्र से 108 घी आहुति, *ॐ भूर्भूवः स्वः* से घी की 108 आहुति, तथा जिस नक्षत्र में सूर्य हो उस नक्षत्र देवता के मन्त्र से खीर की 108 आहुतियाँ दें इसके पश्चात् सूर्य और राहु/केतु के वैदिक मन्त्र से साकल्य की 108 आहुतियाँ प्रदान करें। पूर्णाहुति करें। आरती पुष्पाञ्जली, प्रदक्षिणा, विसर्जन और प्रसाद वितरण करें।
* सपात चन्द्र दोष या चन्द्र-ग्रहण दोष रहने पर अपने चान्द्र जन्मतिथि पर उपवास रखें, फलाहार करें और दोपहर से पूर्व गणेश-कलश-नवग्रह-विष्णुपूजनादि करके दूब घास को घी में ड़ुबोकर त्र्यम्बक मन्त्र से 108, *आप्यस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिरंशुभि: । भवा नः सम्प्रथस्तमः सखाष्वृधे ।* मन्त्र से घी की 108 आहुति, *ॐ भूर्भूवः स्वः* से घी की 108 आहुति, तथा जिस नक्षत्र में चन्द्र हो उस नक्षत्र देवता के मन्त्र से खीर की 108 आहुतियाँ दें इसके पश्चात् चन्द्र और राहु/केतु के वैदिक मन्त्र से साकल्य की 108 आहुतियाँ प्रदान करें। पूर्णाहुति करें। आरती पुष्पाञ्जली, प्रदक्षिणा, विसर्जन और प्रसाद वितरण करें।
यदि सपात चन्द्र/सूर्य दोष में जन्म हो तो दोष कम होता है इसलिए ग्रहण शान्ति की अनिवार्यता नहीं रहती। लेकिन उसके अलावा दो दैनिक पाठ और सपातसूर्य रहने पर सौर जन्मदिवस और सपात चन्द्र दोष रहने पर चान्द्र जन्मतिथि पर करणीय पूजा विधान जो बताया गया है उसे अवश्य करना चाहिए। इससे ग्रहण दोषजनक अशुभ फलों में कमी होकर सौभाग्य की वृद्धि होती है।
- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
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