Search This Blog

Wednesday, 27 February 2019

महाशिवरात्रि व्रत निर्णय

 देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ! नमोऽस्तुते,
कर्तुमिच्छाम्यहम् देव शिवरात्रि व्रतं तव ।
तवप्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति,

कामाद्या शत्रवो माम् वै पीड़ां कुर्वन्तु नैव हि।।

अर्थात्- देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ आपको नमस्कार है। मैं आपके शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ। देवेश्वर आपका यह व्रत बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो, और काम क्रोध आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें।


महाशिवरात्रि व्रत 4 मार्च को प्रशस्त है।
महाशिवरात्रि जन्माष्टमि आदि व्रत निशीथ व्यापिनि तिथ्याधारित होते हैं। निशीथ व्यापिनि का अर्थ सम्पूर्ण रात्रि में व्याप्त होना नहीं बल्कि रात्रि में व्याप्त होना है। मध्य रात्रि तक व्याप्त तिथि श्रेष्ठ निशीथ व्यापिनि मानी जाती है।
महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन कृष्ण निशीथ व्यापिनि चतुर्दशी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
आइए इसका गणित समझते हैं-
आंठवें मुहूर्त तक व्याप्त तिथि निशिथ व्यापिनि कहलाती है।
एक मुहूर्त 2 घटी का का होता है, अतः 8 मुहूर्त में 8x2=16घटी,
1 घटी में 0.4 घंटे, अतः 16 घटी में 16x0.4= 6 घंटा 24 मिनट,
4 मार्च को सूर्यास्त 17:49 + 6:24=24:13 मिनट पर रात्रि का आठवाँ मुहूर्त रहेगा। 

चतुर्दशी अगले दिन सायं 06:38 तक है। तो निश्चित ही यह चतुर्दशी निशिथ व्यापिनि है।
निशीथ व्यापिनी शिवरात्रि सर्वप्रथम प्रशस्त है।

भवेद्यत्र त्रयोदश्यां भूतव्याप्ता महानिशा ।
शिवरात्रि व्रतं तत्र कुर्याज्जागरणं तथा ।।


दो दिन यदि निशीथ व्याप्ति हो तो प्रदोषव्याप्ति से निर्णय करना चाहिए।
इसवर्ष 4 मार्च को एक ही निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के प्राप्त होने से निर्विवाद रूप से पूरे भारतवर्ष में 4 मार्च को ही शिवरात्री मनाई जाएगी।
वैसे चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव होने से प्रतिमास चतुर्दशी तिथि को मासशिवरात्रि व्रत प्राप्त होता है। लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्राप्त होने वाले शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है। क्योंकि पुराणों के अनुसार इसी शिवरात्रि को शिव-पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार इसी शिवरात्री को करोड़ों सूर्य के समान कान्तिवाले आदिदेव शिवलिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे।
इसदिन व्रत रहकर रात्रिजागरण, नाम संकीर्तन, रुद्राभिषेक, शिवविवाह, शिव-पार्वती श्रृंगार आदि करना चाहिए। इस व्रत में रात्रि जागरण महत्वपूर्ण है।
शास्त्रों में शिवरात्रि की रात्रि को जागरण करने और प्रहर पूजन करने का विधान प्राप्त होता है।
शिवरात्रि को चारों प्रहर शिवपूजन करने वाले भक्त की सभी लौकिक इच्छाओं की पूर्ति भगवान करते हैं, और मृत्यु के उपरांत वह शिवसायुज्य को प्राप्त करता है।


- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"

No comments:

Post a Comment