दक्ष की 60 कन्याओं का विवाह - एक रोचक जानकारी
दक्ष के कन्या संतति के संबंध में अलग अलग कल्पों के अनुसार अलग अलग पुराणों में अलग अलग कथा मिलती है जिसमें उनकी संख्या भिन्न-भिन्न बताई गई है। शिवमहापुराण और श्रीमद्भागवत्महापुराण के अनुसार छठे मन्वन्तर में दक्षप्रजापति ने दशप्रचेतस के पुत्र के रूप में जन्म लिया और असिक्नी नामक पत्नी से उनको 60 पुत्रियाँ हुईं। जिनमें से 10 का विवाह धर्म के साथ 17 का विवाह कश्यपों के साथ 27 का विवाह चन्द्रमा के साथ 2 का विवाह कृशाश्व के साथ 2 का विवाह आंगिरस के साथ और 2 का विवाह भूत के साथ हुआ। 10+17+27+2+2+2 = 60 कन्याएँ। जिन 27 कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ उन्हें ही हम 27 नक्षत्रों के नाम से जानते हैं। इसमें ये भी है कि चन्द्रमा का रोहिणी नक्षत्र से विशेष लगाव था। जिस कारण बाकी कन्याएँ दक्ष प्रजापति से इस बात की शिकायत करती हैं और दक्ष क्रोधित होकर चन्द्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दे देते हैं। फिर शिवजी चन्द्रमा की रक्षा करते हैं और उनके क्षय की अवधि 15 दिन की कर देते हैं जिसे हम कृष्णपक्ष के नाम से जानते हैं। साथ ही शिव जी ने उन्हें पूर्णस्वरूप प्राप्त होने का वरदान भी देते हैं। जिससे शुक्लपक्ष में चन्द्रमा बढ़ते बढ़ते पूर्णिमा को अपने परमरूप को प्राप्त कर लेते हैं। रोहिणी के साथ चन्द्रमा के विशेष लगाव के पीछे का रहस्य ये है कि चन्द्रमा सभी नक्षत्रों में से रोहिणी नक्षत्र के योगतारे के सबसे नजदीक से गुजरता है कभी कभी तो अतिक्रमण भी कर देता है। योगतारा उसे कहते हैं जो किसी नक्षत्र का प्रधान तारा हो। चन्द्रमा जिस चमकदार तारे के सबसे नजदीक से होकर गुजरता है उसे उस नक्षत्र का योगतारा कहा जाता है। आशा है खगोलविज्ञान की ये रहस्यमयी जानकारी आपको रोमांचक लगी होगी।
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