Search This Blog

Friday 19 June 2020

सूर्यग्रहण 21 जून की सम्पूर्ण जानकारी....

 सूर्यग्रहण 21 जून की सम्पूर्ण जानकारी....




इस लेख को अधिक से अधिक साझा करें....

आप सब को ज्ञात ही होगा कि आषाढ़ कृष्ण अमावस्या दिन रविवार तदनुसार 21 जून 2020 को भारतवर्ष में सूर्य ग्रहण लगने वाला है। यह ग्रहण बहुत ज्यादा खास है, क्योंकि इस प्रकार का ग्रहण दशकों बाद लगता है और जैसा ग्रहण इस बार लग रहा है वैसा ग्रहण पुनः इस दशक में भारतवर्ष में दिखाई नहीं पड़ेगा, इसलिए यह ग्रहण बहुत ज्यादा ऐतिहासिक है । अगला सूर्यग्रहण जो भारत से होकर गुजरेगा वह 21 मई 2031 को होगा | तो आइए आज इस ग्रहण की विशेषताओं के बारे में जानते हैं साथ ही ग्रहण संबंधी कृत्याकृत्य सूतक तथा अन्य वैज्ञानिक और धर्मशास्त्रीय जानकारियां भी प्राप्त करेंगे।
21 जून 2020 को लगने वाला सूर्य ग्रहण दो प्रकार का होगा -
1. कंकण सूर्य ग्रहण (Annular Eclipse) और
2. आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Eclipse) ।
यह आपके क्षेत्र के लोकेशन पर निर्भर करेगा कि आप Annular Eclipse देख पायेंगे या Partial Eclipse।


 भारत में यह ग्रहण कहाँ कहाँ दिखाई देगा -

मुख्य रूप से कंकण सूर्यग्रहण भारतवर्ष के उत्तरवर्ती इलाकों जैसे राजस्थान, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश और उत्तराखंड इत्यादि स्थानों में दिखलाई पड़ेगा, वहीं भारतवर्ष के दक्षिणी क्षेत्र में आंशिक सूर्यग्रहण ही दिखलाई पड़ेगा।

वलयाकार सूर्यग्रहण भारत में कहाँ-कहाँ दिखेगा ?

21 जून को उत्तर भारत के केवल चार राज्यों- राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखण्ड के हिस्से ही इस वलयाकार सूर्य-ग्रहण को देख सकेंगे | जबकि आंशिक सूर्यग्रहण पूरे भारतवर्ष में दिखाई पडेगा | भारत में वलयाकार सूर्यग्रहण की शुरुआत राजस्थान के पश्चिमी छोर पर स्थित घरसाना नामक स्थान से होगी तथा वलयाकार सूर्यग्रहण की समाप्ति जोशीमठ नामक स्थान से होगी | इनके मध्य स्थित स्थानों यथा राजस्थान के अनूपगढ़, श्रीविजयनगर, सूरतगढ़, एलेनाबाद आदि स्थानों, हरियाणा के सिरसा, रतिया, जाखल, पिहोवा, कुरुक्षेत्र, लाडवा, यमुनानगर आदि स्थानों, उत्तर प्रदेश के बेहट नामक स्थान तथा उत्तराखण्ड के देहरादून, चम्बा, टिहरी, अगस्त्यमुनि, चमोली, गोपेश्वर, पीपलकोटी, तपोवन आदि स्थानों से ही वलयाकार सूर्यग्रहण देखा जा सकेगा |

आंशिक सूर्यग्रहण भारत में कहाँ  कहाँ दिखेगा ?

आंशिक सूर्यग्रहण अलग-अलग आकर में भारतवर्ष के सभी स्थानों से देखा जा सकेगा | अपने स्थानभेद के अनुसार सूर्यग्रहण का समय सभी स्थानों के लिए अलग अलग होगा |

विश्व में यह ग्रहण कहाँ कहाँ दिखेगा -

यह कंकण सूर्यग्रहण विश्व में मध्य-अफ्रीका, कांगो, इथियोपिया, यमन, सऊदी अरबिया, ओमान, पाकिस्तान, चीन, ताइवान, दक्षिण-प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर और भारतवर्ष के संपूर्ण क्षेत्र में दिखलाई पड़ेगा। खण्डसूर्य ग्रहण के रूप में इसका प्रारम्भ दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी समुद्री सीमा से सूर्योदय के समय होगा | यहाँ खण्डग्रहण का मध्य तथा मोक्ष दृश्य होगा | मध्य अफ्रीका से फिलीपिन्स द्वीप समूह के सुदूर पूर्वोत्तर क्षेत्र में खण्डसूर्यग्रहण का स्पर्श मध्य तथा मोक्ष दृश्य होगा | खण्डसूर्यग्रहण का स्पर्श तथा मोक्ष पापुआ न्यूगिनि तथा प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में दृश्य होगा | कंकणाकृति सूर्यग्रहण का प्रारम्भ अफ्रीका के कांगो क्षेत्र में सूर्योदय के समय होगा जो कि मध्य अफ्रीका, अरब क्षेत्र, उत्तरी भारत तथा एशिया आदि देशों में दिखाई देगा | प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में सूर्यास्त के समय कंकणाकृति सूर्यग्रहण का मोक्ष होगा |


इसे भी पढ़ें - 


ग्रहण का मान -

भारतवर्ष के उत्तरी क्षेत्र में यह सूर्य ग्रहण 69% से 98.97% तक दिखलाई पड़ेगा वहीं दक्षिणी क्षेत्रों में सूर्य ग्रहण 23% से 50.25% के आसपास दिखलाई पड़ेगा । दिल्ली में 93.77%, मुम्बई में 62.10%, कलकत्ता में 65.52% और चेन्नई में 34.23% ग्रहण ग्रास नजर आएगा |
इस ग्रहण की वलयाकारिता अवधि बहुत कम है | उत्तर भारत के अमलोहा (हरियाणा) तथा तलवार खुर्द (हरियाणा) में इस सूर्य ग्रहण की कुण्डलाकार या वलयाकार आकृति सबसे लम्बे समय तक यानि अधिकतम 33 सेकंड तक दिखलाई देगी | यह अपने आप में खगोल शास्त्रियों और ज्योतिष जिज्ञासुओं के लिए बहुत ही रोमांचक और ऐतिहासिक खगोलीय घटना होगी। विज्ञान प्रसार नेटवर्क(VIPNET) तथा ज्योतिर्विद्या परिसंस्था पुणे के वैज्ञानिकों की पूरी टीम इस खगोलीय घटना की साक्षी बनने के लिए हरियाणा जाने वाली थी | परन्तु इस वैश्विक आपदा के कारण इस योजना को विराम देना पड़ा | इस ग्रहण को सबलोग अपने अपने स्थानों से ही देखेंगे |

ग्रहण का समय -

आप सबको पता ही है और मैंने ऊपर बताया भी है की सूर्यग्रहण का समय स्थानभेद से अलग-अलग से होता है ! ऐसा क्यों होता है, इस पर हम इसी लेख में आगे चर्चा करेंगे | भारतवर्ष में खण्ड सूर्यग्रहण की शुरुआत 09:16 a.m से होगी तथा खण्ड सूर्यग्रहण की समाप्ति 03:14 p.m पर होगी | इसी समय के बीच में अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर वलयाकार या खण्ड सूर्यग्रहण की दृश्यता रहेगी |


राँची के लिए ग्रहण का समय-

राँची में वलयाकार सूर्यग्रहण दृश्य नहीं है | राँची में आप खण्ड सूर्यग्रहण ही देख पाएँगे | राँची में ग्रहण का समय निम्नलिखित रहेगा-
सूर्य-ग्रहण - 21 जून 2020
ग्रहण प्रारम्भ : 10:36 AM
ग्रहण मध्य : 12:25 AM
ग्रहण समाप्ति: 14:09 AM
राँची के लिए सूतक प्रारम्भ: 20 जून रात्रि 10:35p.m से |


आप निम्नलिखित वेबसाइट पर जाकर अपने स्थान का सही ग्रहण-समय जान सकते हैं-
https://www.timeanddate.com/eclipse/in/india/ranchi



ग्रहण समाप्ति कब ? 3 बजे के आस पास या शाम 7 बजे के आस पास ?

बहुत सारे लोग इस प्रश्न पर भ्रमित हैं क्योंकि पंचांग में ग्रहण समाप्ति केवल 03:05pm के आस-पास दिया है। लेकिन इन्टरनेट आदि में ग्रहण समाप्ति का समय 6:39pm के आस पास दिया है। ऐसे में लोग भ्रमित हैं किस समय को ग्रहण समाप्ति का समय माना जाए? मेरे what's app और मैसेंजर पर अनेकों लोगों के प्रश्न भरे पड़े हैं। आप सबको इस प्रश्न का एक साथ ही उत्तर देना चाहूँगा कि धरती पर ग्रहण का प्रारम्भ दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी समुद्री सीमा में सूर्योदय के समय से हो रहा है और ग्रहण की समाप्ति प्रशान्त महासागर के समुद्री क्षेत्र में सूर्यास्त के समय पर हो रहा है। यह वैश्विक सन्दर्भ में ग्रहण का प्रारम्भ और अन्त समय है। लेकिन धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार ग्रहण दृश्यफल को धारण करता है। अर्थात् जिस स्थान पर ग्रहण दिखेगा वहीं उसके नियमानुशासन लागू होंगे और जब तक दिखेगा तब तक ही लागू रहेंगे। भारतवर्ष में ग्रहण का स्पर्श 09:16 am के आसपास और मोक्ष 03:14 pm के आस पास होगा। इसलिए हम भारतवासियों के लिए 03:14 pm बजे ग्रहण समाप्त हो जाएगा। 03:15 बजे से ग्रहण संबंधी स्नान-दान के पश्चात् हमलोग अपने दैनिक रूटिन को फोलो कर सकते हैं ।

चन्द्र ग्रहण की तरह सूर्यग्रहण भी पूरी पृथ्वी पर एक साथ क्यों नहीं दिखता ?

इस प्रश्न के उत्तर को समझने के लिए हमें ग्रहण के कुछ बारीक तथ्यों को ठीक से समझना पड़ेगा। इसके लिए आइए सर्वप्रथम हम यह जाने कि ग्रहण क्या है?

ग्रहण क्या है

किसी आकाशीय पिंड का किसी अन्य आकाशीय पिंड से ढ़क जाना ग्रहण कहलाता है। हम पृथ्वीवासी यहां से हर वर्ष सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण देखते हैं।
सूर्य ग्रहण में चंद्रमा छादक और चंद्र ग्रहण में पृथ्वी की छाया छादिका होती है। चंद्रमा द्वारा किसी अन्य ग्रह को ढकने की प्रक्रिया चंद्र समागम या Occultation कहलाती है।
ग्रहण तभी लगता है जब छाद्य(सूर्य/चन्द्रमा) और छादक(चन्द्र/भूच्छाया) एक सरल रेखा में हों अर्थात् ज्योतिषीय भाषा में छाद्य छादक के पूर्वापर और याम्योत्तर अंतर का अभाव हो जाए तथा छाद्य पात(राहु/केतु) के सन्निकट हो।
सूर्य को एक पात से गुजरने के पश्चात उसी पात पर पुनः आने में 346.62 दिन लगते हैं। इसे ही ग्रहण वर्ष कहा जाता है। पातों की संख्या दो होने के कारण इनके आधे दिन अर्थात 173.31 दिनों में सूर्य किसी न किसी पात पर आता है। एक ग्रहण से दूसरे ग्रहण की संभावना 176.68 दिनों के बाद ही बनती है।

चन्द्र ग्रहण  कैसे होता है

पूर्णिमा(पूर्वापर अन्तर) के दिन शराभाव (चन्द्रग्रहण में शराभाव याम्योत्तर अन्तर होता है।) होने पर चन्द्रग्रहण होता है। #शर क्या है? शर को इंग्लिश में Celestial Latitude कहते हैं। शर सिद्धांत ज्योतिष् का तकनीकी शब्द है। कदम्बप्रोत वृत्त में ग्रहबिम्ब और ग्रहस्थान का अन्तर शर कहलाता है। शर के अभाव को शराभाव कहते हैं । हर बार चन्द्र+राहु/केतु रहने पर पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण नहीं होता, बल्कि इनके साथ-साथ जब शराभाव होता है तभी चन्द्रग्रहण होता है। अगर शराभाव की बात न होती तो हर पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण क्यों नहीं लगता?
चलिए इसी क्रम में लगे हाथों शर निकालने का सूत्र भी बता देता हूँ। #शरानयनम्- स्पष्ट चन्द्र में पात को घटाकर जो शेष बचे उसकी जीवा निकालकर उसे चन्द्रमा के परम विक्षेप (२७०' कला) से गुणा करके त्रिज्या (३४३८ कला) से भाग देने पर लब्धि कलादि स्पष्टशर प्राप्त होता है।
चंद्रग्रहण के संबंध में एक अति #महत्त्वपूर्ण बात आपको बताता हुँ। ऊपर यह बताया जा चुका है कि जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण होता है। चंद्रमा अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत नजदीक है। और चन्द्रमा का भ्रमण वृत्त पृथ्वी के वृत्त पर स्थित है। चन्द्रमा पर पड़ने वाली भूच्छाया से हमारा सीधा संबंध है क्योंकि हम स्वयं पृथ्वी पर निवास करते हैं। इसलिए चंद्रमा पर पढ़ने वाली पृथ्वी की छाया पूरी पृथ्वी से देखने पर एक समान ही दिखाई पड़ती है। अर्थात चंद्रग्रहण #सार्वभौमिक होता है, और सरल शब्दों में कहूं तो जिस दिन चंद्रग्रहण होगा उस दिन पूरी पृथ्वी पर जहां-जहां रात होगी सभी स्थानों पर समान रूप से चंद्रग्रहण दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण में ऐसा नहीं होता, सूर्यग्रहण सार्वभौमिक नहीं है। अब आइए सूर्य ग्रहण को ठीक से समझते हैं।

 सूर्यग्रहण_कैसे_होता_है?

अमावस्या(पूर्वापरान्तराभाव) के दिन लम्बन और नति (सूर्यग्रहण में याम्योत्तर अन्तर लम्बन और नति संस्कार से ज्ञात होता है।) का अभाव रहने पर सूर्य ग्रहण होता है। लम्बन को अंग्रेजी में Parallax कहते हैं। भूपृष्ठीय ग्रह भूकेंद्रीय ग्रह की तुलना में जितना लंबित होता है वही लंबन कहलाता है। शरों के अंतर को नति कहते हैं। लंबन और नति का मान अक्षांश भेद से बदल जाता है, साथ ही सूर्य हमसे बहुत ज्यादा दूरी पर स्थित है। सूर्य बिंब को चंद्र बिंब द्वारा ढक लिए जाने पर सूर्यग्रहण होता है। चंद्र बिंब से हमारा सीधा संबंध नहीं है और चंद्रमा तथा सूर्य के भ्रमण वृत्तों के बीच बहुत दूरी है, चंद्र का बिंब सूर्य बिंब से छोटा भी है। इन सभी कारणों से पूरी पृथ्वी से सूर्य ग्रहण समान रूप से दिखाई नहीं देता, बल्कि सूर्य ग्रहण का समय पूरी पृथ्वी के लिए अलग-अलग होता है और उसका समय भी स्थानभेद से बदलता रहता है। अर्थात् सूर्यग्रहण चंद्रग्रहण की भांति #सार्वभौमिक नहीं होता। सूर्यग्रहण मात्र 10000 किलोमीटर लंबाई और 250 किलोमीटर चौड़ाई के क्षेत्र तक में ही एक बार में दिखाई देता है।
इसी क्रम में आइए सूर्यग्रहण से जुड़ी अत्यंत #महत्वपूर्ण और #रोचक जानकारी आपको बताता हूँ। ऐसा नहीं है की केवल चंद्र बिंब की छाया पढ़ने पर ही सूर्य ग्रहण होता है बल्कि अन्य आंतरिक ग्रहों अर्थात बुध और शुक्र बिंब की छाया पढ़ने पर भी सूर्य ग्रहण होता है। परंतु इनका बिंब पृथ्वी से बहुत छोटा दिखाई पड़ने के कारण हम इसे ग्रहण नहीं कहते, बल्कि इसे बुध का #पारगमन और शुक्र का #पारगमन नाम से जानते हैं। बुध और शुक्र का पारगमन सदी की बहुत महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है, यह बहुत कम ही देखने को मिलती है। 2012 में #शुक्र का पारगमन हुआ था जिसे #मैंने अपने गुरु जी आदरणीय श्री #वैद्यनाथ मिश्र गुरुजी के आशीर्वाद से उनके और कुछ खगोल वैज्ञानिकों के साथ देखा था। इस सदी में अब शुक्र का पारगमन दिखाई नहीं देगा।

इस_ग्रहण_की_विशेषता -

1. यह इस दशक का अन्तिम कंकण सूर्यग्रहण (Annular Eclipse) है।
2. ऐसा कंकण सूर्यग्रहण इस दशक में अब भारतवर्ष में नहीं दिखाई देगा।
3. वैज्ञानिकों ने इस सूर्य ग्रहण को रिंग ऑफ फायर नाम दिया है।
4. सूर्य ग्रहण का सम्पूर्ण मान 5 घंटे 58 मिनट होगा।
5. इसका मैग्निट्यूड़ 0.994 होगा।
6. विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य का 23% से 99% भाग चन्द्रच्छाया द्वारा ग्रसित नजर आएगा, चन्द्रमा अपने शीघ्रोच्च स्थान के नजदीक होगा।
7. यह सूर्यग्रहण सारोस चक्र में 137वें क्रमांक का सूर्यग्रहण है।
8. भारत में दृश्य कंकण सू्र्यग्रहण 55 वर्ष पूर्व 23 नवम्बर 1965 के बाद 26 दिसम्बर 2019 को हुआ था और अब अभी हो रहा है ।
9. इस वर्ष मिथुन राशि के मृगशिरा नक्षत्र में 4 ग्रहों की युति के साथ सूर्यग्रहण की घटना बहुत ऐतिहासिक है |
10. इस वर्ष का यह ग्रहण चूड़ामणि योग वाला होने से धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से बहुत ज्यादा महत्त्व वाला है |

 ग्रहण_सूतक-

यह सूर्यग्रहण पुरे भारत में दिखाई देगा !
इस दौरान जप -तप और दान का विशेष महत्व होगा !
धर्मशास्त्रों के अनुसार चन्द्रग्रहण में ग्रहण से 9 घण्टे पहले और सूर्यग्रहण में ग्रहण से 12 घण्टे पहले ग्रहण सूतक लगता है। इसमें शिशु, अतिवृद्ध और गम्भीर रोगी को छोड़कर अन्य लोगों के लिए भोजन और मल-मूत्र त्याग वर्जित है।
कहा भी गया है-
सूर्यग्रहेतुनाश्नीयात्पूर्वंयामचतुष्टयम्
चन्द्रग्रहेतुयामास्त्रीन्_बालवृद्धातुरैर्विना।।

सभी सनातनियों को इस धर्मशास्त्रीय आदेश का पालन करते हुए, सूतक के समय से ही ग्रहण के सभी नियमों का पालन करना चाहिए।

 विभिन्न_राशियों_पर_ग्रहण_का_प्रभाव-

मुहूर्तचिन्तामणि ग्रन्थ के अनुसार इस ग्रहण का 12 राशियों पर जो प्रभाव होगा उसे वर्णित किया जा रहा है -
1. मेष- लाभ ।
2. वृष- विघ्न ।
3. मिथुन- दुर्घटना ।
4. कर्क- हानि ।
5. सिंह- शोभावृद्धि ।
6. कन्या- मनोव्यथा ।
7. तुला- चिन्ता ।
8. वृश्चिक- सुख ।
9. धनु- दम्पति की अस्वस्थता ।
10. मकर- मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट ।
11. कुम्भ- मानहानि ।
12. मीन- सुख ।

* मिथुन राशि में ही सूर्यग्रहण लग रहा है इसलिए मिथुन राशि वालों को सबसे ज्यादा सचेत रहने की जरुरत है | उसमें भी अगर आपका जन्म मृगशिरा नक्षत्र में हुआ है तब तो ये बहुत विनाशकारी है, अतः शान्ति उपाय करने और सावधान रहने की विशेष आवश्यकता है |
जिन राशियों के लिए अनिष्ट फल कहा गया है, उन्हें ग्रहण नहीं देखना चाहिए ।
अनिष्टप्रद_ग्रहण_फलों_के #निवारण के लिए स्वर्ण निर्मित सर्प कांसे के बर्तन में तील, वस्त्र एवं दक्षिणा के साथ श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करना चाहिए । अथवा अपनी शक्ति के अनुसार सोने या चाँदी का ग्रहबिम्ब बनाकर ग्रहण जनित अशुभ फल निवारण हेतु दान करना चाहिए। ग्रहण दोष निवारण के लिए विशेषकर गौ, भूमि अथवा सुवर्ण का दान दैवज्ञ के लिए करना चाहिए।
दान करते समय ये श्लोक पढ़ें-
तमोमयमहाभीमसोमसूर्यविमर्दन,
हेमनागप्रदानेनममशान्तिप्रदोभव।
विधुन्तुदनमस्तुभ्यंसिंहाकानन्दनाच्युताम्,
दानेनानेननागस्यरक्षमां_वेधनाद्भयात्।।
इस प्रकार दान करने से निश्चय ही ग्रहण जनित अशुभ से अशुभ फलों का भी शमन हो जाता है और उसके दुष्प्रभावों से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है।

ग्रहण के समय क्या करें क्या न करें?

1. चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है।
2. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी लें। ऐसा करने से वे मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर ही भोजन करना चाहिए।
4. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। इसलिए घर में रखे सभी अनाज और सूखे अथवा कच्चे खाद्य पदार्थों में ग्रहण सुतक से पूर्व ही तुलसी या कुश रख देना चाहिए। जबकि पके हुए अन्न का अवश्य त्याग कर देना चाहिए। उसे किसी पशु या जीव-जन्तु को खिलाकर, पुनः नया भोजन बनाना चाहिए।
5. ग्रहण वेध के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्थात् सूतक काल में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक तो बिलकुल भी अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
6.ग्रहण के समय एकान्त मे नदी के तट पर या तीर्थो मे गंगा आदि पवित्र स्थल मे रहकर जप पाठ सर्वोत्तम माना गया है ।
7. ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद तीर्थ में स्नान का विशेष फल है। ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए।
8. ग्रहण समाप्ति पर स्नान के पश्चात् ग्रह के सम्पूर्ण बिम्ब का दर्शन करें, प्रणाम करें और अर्ध्य दें।उसके बाद सदक्षिणा अन्नदान अवश्य करें।
9. ग्रहण समाप्ति स्नान के पश्चात सोना आदि दिव्य धातुओं का दान बहुत फलदायी माना जाता है और कठिन पापों को भी नष्ट कर देता है। इस समय किया गया कोई भी दान अक्षय होकर कई गुना फल प्रदान करता है।
10. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।
11. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
12. ग्रहण काल मे सोना मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन – ये सब कार्य वर्जित हैं।
13. ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।
14. ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)
15. गर्भवती महिलाओं तथा नवप्रसुताओं को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। सुतक के समय से ही ग्रहण के यथाशक्ति नियमों का अनुशासन पूर्वक पालन करना चाहिए।उनके लिए बेहतर यही होगा कि घर से बाहर न निकलें और अपने कमरे में एक तुलसी का गमला रखें।
16. ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएँ श्रीमद्भागवद् पुराणोक्त गर्भरक्षामन्त्र-
पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते ।
नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥
अभिद्रवति मामीश शरस्तप्तायसो विभो ।
कामं दहतु मां नाथ मा मे गर्भो निपात्यताम् ॥
का अनवरत मन ही मन पाठ करती रहें।
17. भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। इसी प्रकार गंगा स्नान का फल भी चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना होता है।
18. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
19. ग्रहण के दौरान भगवान के विग्रह को स्पर्श न करे।
20. ग्रहण के समय ईष्टमन्त्रों की सरलता से सिद्धि प्राप्त हो जाती है, अतः अपने गुरु से अपने अभिष्ट मन्त्र लेकर उनके सानिध्य में ग्रहण के दौरान मन्त्र-सिद्धि भी कर सकते हैं। शाबर मन्त्र ग्रहण के दौरान गंगातट पर 10,000 जपने से सिद्ध हो जाते हैं।
21. अपने राशि पर पड़ने वाले ग्रहण के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ग्रहण के दौरान अपने राशिस्वामि का मन्त्र या सूर्य नारायण अथवा चन्द्रदेव के मन्त्र का जप करना बहुत प्रभावी होगा |
22. रविवार के दिन सूर्यसंक्रान्ति और सूर्य अथवा चन्द्रग्रहण में रविवार होने पर उस दिन पुत्रवान गृहस्थ को पारण एवं उपवास नहीं करना चाहिए।
23. सूर्य पूराण में आया है की रविवार को सूर्य ग्रहण होने पर चूड़ामणि योग होता है | चूड़ामणि योग में होने वाला ग्रहण बहुत महत्त्व का है | इस ग्रहण में किए गए स्नानदानादि का फल अन्य ग्रहणों की अपेक्षा करोडगुना ज्यादा मिलता है |
कहा गया है-
अन्यवारे यदा भनोरिन्दोर्वा ग्रहणं भवेत् |
                            तत्फलं कोटिगुणितं ज्ञेयं चूडामणौ ग्रहे ||         - सूर्य-पुराण


ग्रहण को कैसे देखें?

इस लेख को अधिक से अधिक साझा करें।

ज्योतिषियों, खगोलशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के अलावा सामान्य जनमानस में भी ग्रहण को देखने की विशेष जिज्ञासा रहती है। खासकर छात्रों में यह उत्कण्ठा विशेषरूप से देखने को मिलती है। तो आइए जानते हैं कैसे हम 21 जून को लगने वाले सूर्यग्रहण का आनन्द ले सकते हैं।
1. ग्रहण को देखने के लिए पर्याप्त नेत्र सुरक्षा का ध्यान रखें साथ ही वैज्ञानिकों के द्वारा निर्देशित सूर्य ग्रहण चश्मा का ही प्रयोग करें ।
2. ग्रहण को कभी भी खुली आंखों से ना देखें ।
3. टकटकी लगाकर ग्रहण न देखें, पलकें झपकातें रहें।
4. खुले मैदान में साफ आसमान के नीचे खड़े होकर आप ग्रहण देख सकते हैं।
5. गणित ज्योतिष् के अध्येता और एस्ट्रोनामि के विद्यार्थी और खगोल वैज्ञानिक ग्रहण को विशेष तौर पर आब्जर्व करते हैं।
6. पिन होल कैमरों या अन्य किसी साधन की मदद से किसी परदे पर सूर्य की छाया लेकर आसानी से सूर्यग्रहण देखा जा सकता है |

- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
B.H.U, वाराणसी।

Wednesday 6 May 2020

ईश्वर साक्षात्कार के बाद मुक्ति कब ???






ईश्वर साक्षात्कार के बाद मुक्ति कब ???



कुछ समय पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे बहुत जबरदस्त प्रश्न पूछा था आज उसका सटीक शास्त्रीय उत्तर आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ।

#प्रश्न- ईश्वर(परमब्रह्म) सच्चिदानन्द(त्रिकालाबाधित), अखण्ड(सजातीय-विजातीय-स्वगतभेदशून्य), सर्वदा विद्यमान, प्रकाशरुप, चैतन्यस्वरुप, आनन्दघन, सर्वशक्तिमान परमात्मा जो जीवों के लिए एकमात्र लक्ष्य हैं। जिनके दर्शन मात्र से सारा अज्ञान समाप्त हो जाता है, जिनके दर्शन के बाद कुछ भी देखना बाकी नहीं रह जाता।
शास्त्रों में भी कहा गया है-

#भिद्यते_हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते_सर्वसंशयाः।
#क्षीयन्ते_चास्य_कर्माणि_तस्मिन_दृष्टे_परावरे।।
अर्थात- उस कारण कार्यरुप ब्रह्म का साक्षात्कार होने पर साधक की हृदय-ग्रन्थि खुल जाती है, सम्पूर्ण सन्देह दूर हो जाते हैं और उसके सञ्चितादि कर्म नष्ट हो जाते हैं।
(मुण्डकोपनिषद् २/२/८)

यदि उपरोक्त सभी बातें सत्य हैं तो उन दिव्याऽतिदिव्य ईश्वर के दर्शन के बाद सद्य ही साधक मोक्ष क्यों नहीं प्राप्त कर लेता???
ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ मुमुक्षु (मोक्ष की इच्छा रखने वाला) को भी ईश्वर साक्षात्कार के बाद तुरंत ही मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ जबकि उनकी तपश्चर्या का एकमात्र लक्ष्य मोक्ष ही था।

#उत्तर- उपरोक्त सभी बातें शत प्रतिशत सत्य हैं।
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें मोक्ष और कर्मभेदों की प्रवृत्ति को समझना होगा। मोक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है मुक्त होना, छूटकारा पा लेना। यहाँ मोक्ष एक पारिभाषिक शब्द है -जिसका अर्थ है जीवनमुक्त हो जाना; शरीर छोड़ना जीवनमुक्ति(मोक्ष) का लक्षण नहीं है, जबकि सांसारिक मनुष्य इसे ही मोक्ष का लक्षण मानते हैं। #वेदान्तसार नामक ग्रंथ के ३९वीं कारिका के प्रथम परिच्छेद में जीवनमुक्त व्यक्ति का लक्षण बताते हुए आचार्य सदानन्द यति कहते हैं-

जीवनमुक्तोनाम स्वस्वरूपाखण्डब्रह्मज्ञानेन तद्ज्ञानबाधनद्वारा
स्वस्वरूपाखण्डब्रह्मणिसाक्षात्कृतेऽज्ञानतत्तत्कार्यसञ्चितकर्मसंशयविपर्ययादीनामपिबाधितत्वादखिलबाधरहितोब्रह्मनिष्ठः।
अर्थात- जब आत्मा और ब्रह्म की एकता का ज्ञान हो जाता है, तब उस ज्ञान से आत्मविषयक सम्पूर्ण अज्ञान नष्ट हो जाता है और अद्वितीय ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाता है। इस दशा में मूल #अज्ञान और उसके #कार्यरुप स्थूल-सूक्ष्म दोनों प्रपञ्च #सञ्चित कर्म अर्थात ज्ञानोत्पत्ति के पूर्व अनारब्ध फलवाले कर्म, #संशय अर्थात देह से अतिरिक्त ब्रह्मस्वरूप आत्मा है या नहीं अथवा ब्रह्मात्मज्ञान से मोक्ष होगा या नहीं इस प्रकार की विचिकित्सा। #विपर्यय देहादिकों में आत्माभिमानरूप, आदि शब्द से बाह्य प्रपञ्च में सत्यत्व बुद्धि ये सब जिसके नष्ट हो जाते हैं उस ब्रह्मनिष्ठ को जीवनमुक्त कहते हैं।

अब यहाँ एक और प्रश्न #जीवनमुक्त_को_शरीरमुक्ति_कब_मिलती_है? 

इसका जवाब मिल जाए तो उपर्युक्त प्रश्नसंबंधी सभी शंकाएँ निर्मूल हो जाएंगी।
इसके लिए हमें कर्मभेद और उनकी प्रवृत्ति को समझना होगा। लेकिन उससे पहले हमें एक बात अच्छी तरह जानना और स्वीकार कर लेना चाहिए कि यह सम्पूर्ण जगत् ईश्वर के बनाए हुए नियमों पर चल रहा है और स्वयं ईश्वर भी इन नियमो को नहीं तोडते।

अब कर्मभेद और उनकी प्रवृत्ति को समझते हैं-
कर्म के तीन भेद हैं-
१)सञ्चित कर्म
२)क्रियमाण कर्म, और
३)प्रारब्ध कर्म

१)सञ्चित कर्म-सञ्चित कर्म वे हैं जिनका फल-भोग मिलना अभी प्रारम्भ नहीं हुआ है, आगे प्रारम्भ होने वाला है।

२)क्रियमाण कर्म- क्रियमाण कर्म वे हैं, जो वर्तमान में किए जा रहे हैं।

३)प्रारब्ध कर्म-प्रारब्ध कर्म वे हैं जिनका फल-भोग मिलना प्रारम्भ हो गया है।

         ब्रह्मसाक्षात्कार या ब्रह्मज्ञान(अहं ब्रह्माऽस्मि कि अनुभूति) होने पर सञ्चित तथा क्रियमाण कर्म तो नष्ट हो जाते हैं परन्तु  ईश्वर की बनायी व्यवस्था के अनुसार प्रारब्ध कर्मों को तो भोगना ही पड़ता है। कहा गया है #प्रारब्ध_कर्मणां_भोगादेव_क्षयः अर्थात प्रारब्ध कर्म भोगने से ही नष्ट होते हैं।
प्रारब्ध कर्म की समाप्ति होते ही शरीरमुक्ति भी उस ब्रह्मवेत्ता को प्राप्त हो जाती है।

© पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
२२/०४/२०१७

सौरमास व चान्द्रमास_गणना


सौरमास_व_चान्द्रमास_गणना....

मास की गणना भारतवर्ष में दो तरह से प्रचलित है।
एक चान्द्रमास जिसके दिनों को तिथि कहा जाता है। ये 15-15 दिनों शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष से मिलकर लगभग 30 दिनों का होता है। शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष के तिथियों का नाम 1-14 तक समान ही है शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है। इस तरह तिथियों की संख्या कहीं कहीं नाम के आधार पर 16 मानी गई है।
भारतवर्ष में अधिकांश व्रत त्योहार चान्द्रमास के आधार पर ही मनाए जाते हैं। धर्मकार्य अनुष्ठान आदि के लिए चान्द्रमास ही प्रशस्त है। चान्द्रमास भारतवर्ष के बंगाल, उड़िसा आदि क्षेत्रों में आज भी दैनिक व्यवहार में प्रचलित है।

दूसरा है सौरमास ये भी लगभग 30 दिनों का होता है। एक राशी में 30अंश होते हैं, और सूर्य को 1अंश चलने में लगभग एक दिन लगता है। इसप्रकार लगभग 30 दिनों का एक सौरमास स्पष्ट हो जाता है।
इस मास का नाम तथा सूर्य के गत अंश के आधार पर दर्शाया जाता है। राशियों में पहली राशी मेष है, सूर्य मेष राशी में वैशाख महीने में आता है उस दिन भारतवर्ष में वैशाखी पर्व भी मनाया जाता है इसलिए सौरमास की गणना वैशाख से करते हैं अर्थात् वैशाख मास पहला सौरमास होता है। यह मास गणना उत्तर भारत के उत्तराखंड, उत्तरांचल, आसाम, नेपाल आदि क्षेत्रों में दैनिक जीवन में जनसामान्य द्वारा आज भी व्यवहार किया जाता है।
जैसे किसी का जन्म माघ 18गते में हुआ है तो वैशाख में मेष राशी इस तरह गणना करते हुए आगे बढ़ें तो माघ में मकर राशी मिलेगी। इसका अर्थ हुआ कि सौरमास के आधार पर जब सूर्य मकर राशि में थे उस समय 18 अंश को पार कर चुकने के पश्चात् वर्तमान 19वें अंश में सूर्य गोचर रहते जातक का जन्म हुआ है।

पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
B.H.U., वाराणसी।

Tuesday 5 May 2020

ग्रहों में परस्पर बलवृद्धि


ग्रहों में परस्पर बलवृद्धि





जिज्ञासु के प्रश्न- जय श्री राम ! कृपा करके कौन सा ग्रह किस ग्रह के साथ कैसा फल प्रदान करता है,तथा उसका फल कब विपरिणाम होता है ,यह भी बताएँ ।
मेरा उत्तर- यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कई बार इस विषय पर ज्योतिर्विद भी संशय में पद जाते हैं | फलादेश में कुशलता पाने के लिए इनको जानना बहुत जरुरी है |
इस प्रश्न का बहुत ही सटीक उत्तर हमें महानतम् ज्योतिर्विद् श्री वैद्यनाथ दीक्षित जी द्वारा रचित ग्रन्थ “जातक पारिजात” में देखने को मिलता है-

अर्केण मन्दः, शनिना महिसुतः, कुजेन जीवो गुरुणा निशाकरः ।
सोमेन शुक्रोऽसुरमन्त्रिणा बुधो बुधेन चन्द्रः खलु वर्द्धते सदा ॥
जा.पा.अ.2श्लो.61

अर्थात्- सूर्य के साथ शनि हो तो शनि का बल बढ़ता है। शनि के साथ रहने पर मंगल का, मंगल के साथ रहने पर गुरु का, गुरु के साथ रहने पर चन्द्रमा का, चंद्रमा के साथ रहने पर शुक्र का, शुक्र से बुध का व बुध से चन्द्रमा का बल बढ़ता है।





भावमञ्जरी” नामक अपने ग्रन्थ में ज्योतिर्विद् मुकुन्द दैवज्ञ पर्वतीय जी ने भी “जातक पारिजात” के इस सूत्र का समर्थन किया है |

यमः पतङ्गेन यमेन भूजनिरार्य्योऽसृजा वाक्पतिना हिमद्युतिः ।
कवि कलेशेन सितेन सोमजः सुधाकरः सोमसुतेन वर्द्धते ।।
भावमञ्जरी, प्र.प्र.श्लो.12

अर्थात्- सूर्य के साथ रहने पर शनि का बल बढ़ता है । इसी प्रकार शनि से मंगल का, मंगल से गुरु का, गुरु से चन्द्रमा का, चन्द्रमा से शुक्र का, शुक्र से बुध का तथा बुध से चन्द्रमा का बल बढ़ता है ।


इसे भी पढ़ें- सपात दोष तथा ग्रहण दोष


समीक्षा-


1. सूर्य-शनि का योग मन्दार्क योग के नाम से प्रसिद्ध है । यह अशुभ योगों में परिगणित होता है।
2. शुभग्रहों के षष्ठ-सप्तम-अष्टम् भावों में सहावस्थान से अधियोग बनते हैं।
3. गुरु चन्द्रमा से गजकेसरी योग बनता है।
3. शनि-मंगल से द्वन्द्व योग बनता है, जो कष्टदायक ही बताया गया है।
4. मंगल गुरु का योगफल शास्त्रों में अच्छा बताया गया है।
5. चन्द्र शुक्र का योगफल मिश्रित बताया गया है।
6. बुध शुक्र के योग को लक्ष्मी योग कहा जाता है ये योग बहुत शुभ है ।
7. चन्द्र बुध का योगफल बहुत शुभ बताया ।


निष्कर्ष-


1. यहाँ बताए गए ग्रह योग अच्छे नहीं होते बल्कि इन ग्रहयोगों से उक्त ग्रह बलवान होते हैं, यही भाव है ।
2. बलवान होने के पश्चात वे पाराशरीय नियमानुसार अपने शुभाशुभ भावजन्य या दशाजन्य फल जातक को प्रदान करते हैं ।
3. इस श्लोक के सन्दर्भ में सिर्फ ग्रहयुति नहीं बल्कि ग्रहों के चतुर्विध संबंधों को ग्रहण करना चाहिए।


आपको ये भी पढना चाहिए- वक्री ग्रह रहस्य

प्रसंगानुसार कुछ अनमोल ध्यातव्य सूत्र-


1. सूर्य-बुध का योग बुधादित्य योग के नाम से प्रसिद्ध है जो राजयोग की श्रेणी में गिना जाता है । क्योंकि बुध को अस्त दोष सबसे कम लगता है ।
2. गुरु के साथ राहु-केतु का योग गुरु चण्ड़ाल योग बनाता है, ये बहुत अशुभ योग है ।
3. मंगल के साथ राहु-केतु का योग अंगारक योग कहा जाता है, ये बहुत अशुभ योग माना जाता है।
4. शनि के साथ चंद्र का योग विष योग कहलाता है, ये भी बहुत अशुभ योग है ।
5. चन्द्र व सूर्य का योग दर्शयोग कहलाता है, ये सबसे ज्यादा अशुभ है, पूरी कुंडली को निर्बल कर देता है।
6. दो या दो से अधिक पाप ग्रह जिस राशि व भाव में हों उस अंग में रोग, घाव या आपरेशन का योग बनाते हैं।
7. सूर्य के साथ चन्द्रमा, पाँचवें भाव में स्थित वृहस्पति, चतुर्थ में बुध, सप्तम में मार्गी शनि, षष्ठ में शुक्र व द्वितीय भाव में मंगल ग्रह निष्फल होता है।
8. सप्तम में शुक्र, पंचम में अशुभ राशिस्थ गुरु व चतुर्थ में बुध यदि अकेले हों तो अरिष्ट फल ही करते हैं।
9. नवम में सूर्य, चतुर्थ में हीनबली चन्द्रमा, जातक पंचम में गुरु, तृतीय में मंगल व सप्तम में शुक्र अकेले हों तो दुःखप्रद ही होते हैं।
10. चर राशि से 11वें भाव में, स्थिर राशि से नवम भाव में और द्विस्वभाव राशि से सप्तम भाव में स्थित ग्रह या भावेश अत्यंत कष्टकारक होते हैं।
11. बाइसवें द्रेष्काण का स्वामी परम अनिष्टकारक होता है।
12. लाभ भाव में सभी ग्रह, षष्ठ भाव में सूर्य, चतुर्थ भाव में पक्षबली चन्द्रमा, त्रिकोण भावों में शुभ राशियों में स्थित गुरु, लग्न में शुक्र व तृतीय भाव में स्थित शनि व उच्च राशि में स्थित ग्रह कुछ न कुछ शुभफल अवश्य करते हैं। यदि इनके साथ कोई शुभ या कारक ग्रहयुति हो तो कहना ही क्या है !
13. 6.8.12 भावों में स्थित ग्रह या राहु-केतु के साथ रहने वाले ग्रह या नीच व शत्रुराशि वाले ग्रह जो शुभफल देना हो वो तो देते ही हैं परन्तु अपना अशुभ फल अवश्य ही देते हैं ।
14. ग्रह यदि लग्नकुंड़ली में अच्छा(उच्च, स्वगृही आदि) हो परन्तु नवमांश कुंडली में शुभराशि में न हो तो शुभफल नहीं कर पाता, अशुभ जरूर कर देता है ।
15. कुंडली देखने से पहले लग्न, सूर्य व चन्द्रमा की ठीक से समीक्षा कर लेनी चाहिए। इनके कमजोर रहने पर अच्छे से अच्छे राजयोग व महापुरुष योग भी अपना पूरा प्रभाव नहीं दिखा पाते ।


-    पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"