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Wednesday 27 February 2019

शिवरात्रि में प्रहर पूजा

प्रदोष में चार पहर की पूजा के लिए समय गणना-

4 मार्च 2019 को फाल्गुन कृष्ण प्रदोष शिवरात्रि व्रत है। इस दिन कई लोग शिवजी की प्रहर पूजा करते हैं इसे यामपूजा भी कहा जाता है । रात्रि के चारों प्रहर भगवान शिवजी का अपने कामनीय द्रव्यानुकुल पदार्थ से शिवजी का भव्य रुद्राभिषेक और पूजन किया जाता है। शिव पार्वती का श्रृंगार किया जाता है।
पारण चौथे प्रहर के अन्त में करें, प्रहर पूजन के पश्चात् आरती करके प्रसाद ग्रहण करें,और पारण करें। अथवा प्रातः सूर्योदय के बाद पश्चात पारण करें।
शिवरात्रि में रात्रि जागरण और प्रहर पूजन का सर्वाधिक महत्व है।
अब प्रश्न है कि हम सही प्रहर की गणना कैसे करें ताकि चारों प्रहर का ससमय पूजन किया जा सके। तो इसके लिए मैं बहुत सरल सूत्र आपको दे रहा हूँ-

1. सूर्यास्त-सूर्योदय=दिनमान- *समय 24घन्टे में लेना है
2. 24 घन्टे-दिनमान=रात्रिमान
3. रात्रिमान/4= प्रहर काल
4. सूर्यास्त+प्रहर काल= प्रथम प्रहर
5. प्रथम प्रहर+प्रहर काल= द्वितीय प्रहर
6. द्वितीय प्रहर+प्रहर काल= तृतीय प्रहर
7. तृतीय प्रहर+प्रहर काल= चतुर्थ प्रहर

उदाहरण-
वाराणसी का सूर्योदय- 6:13
वाराणसी का सूर्यास्त- 17:47
सूत्रानुसार-
1. 17:47-6:13 = 11:34
2. 24:00-11:34 = 12:26
3. 12:26/4 = 03:06:30
4. 17:47+3:06:30 = 20:53:30 तक प्रथम प्रहर
5. 20:53:30+3:06:30 = 24:00:00 तक द्वितीय प्रहर
6. 24:00:00+3:06:30 = 27:06:30 तक तृतीय प्रहर
7. 27:06:30+3:06:30 = 30:13:00 तक चतुर्थ प्रहर
इस प्रकार अपने स्थान के सूर्योदय-सूर्यास्त के हिसाब से गणना कर या मोटे तौर पर वाराणसी की गणना के आधार पर आप प्रहर पूजा कर सकते हैं।
वैसे तो सूर्योदय सूर्यास्त सभी पंचागों में दिया रहता है। बहुत सारे पंचांग ऐप भी हैं जिनसे सूर्योदय सूर्यास्त का ज्ञान हो जाता है। फिर भी अपने स्थान का सूर्योदय जानने के लिए आप इस website का भी प्रयोग कर सकते हैं।

https://www.timeanddate.com/sun/

- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"

महाशिवरात्रि व्रत निर्णय

 देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ! नमोऽस्तुते,
कर्तुमिच्छाम्यहम् देव शिवरात्रि व्रतं तव ।
तवप्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति,

कामाद्या शत्रवो माम् वै पीड़ां कुर्वन्तु नैव हि।।

अर्थात्- देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ आपको नमस्कार है। मैं आपके शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ। देवेश्वर आपका यह व्रत बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो, और काम क्रोध आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें।


महाशिवरात्रि व्रत 4 मार्च को प्रशस्त है।
महाशिवरात्रि जन्माष्टमि आदि व्रत निशीथ व्यापिनि तिथ्याधारित होते हैं। निशीथ व्यापिनि का अर्थ सम्पूर्ण रात्रि में व्याप्त होना नहीं बल्कि रात्रि में व्याप्त होना है। मध्य रात्रि तक व्याप्त तिथि श्रेष्ठ निशीथ व्यापिनि मानी जाती है।
महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन कृष्ण निशीथ व्यापिनि चतुर्दशी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
आइए इसका गणित समझते हैं-
आंठवें मुहूर्त तक व्याप्त तिथि निशिथ व्यापिनि कहलाती है।
एक मुहूर्त 2 घटी का का होता है, अतः 8 मुहूर्त में 8x2=16घटी,
1 घटी में 0.4 घंटे, अतः 16 घटी में 16x0.4= 6 घंटा 24 मिनट,
4 मार्च को सूर्यास्त 17:49 + 6:24=24:13 मिनट पर रात्रि का आठवाँ मुहूर्त रहेगा। 

चतुर्दशी अगले दिन सायं 06:38 तक है। तो निश्चित ही यह चतुर्दशी निशिथ व्यापिनि है।
निशीथ व्यापिनी शिवरात्रि सर्वप्रथम प्रशस्त है।

भवेद्यत्र त्रयोदश्यां भूतव्याप्ता महानिशा ।
शिवरात्रि व्रतं तत्र कुर्याज्जागरणं तथा ।।


दो दिन यदि निशीथ व्याप्ति हो तो प्रदोषव्याप्ति से निर्णय करना चाहिए।
इसवर्ष 4 मार्च को एक ही निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के प्राप्त होने से निर्विवाद रूप से पूरे भारतवर्ष में 4 मार्च को ही शिवरात्री मनाई जाएगी।
वैसे चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव होने से प्रतिमास चतुर्दशी तिथि को मासशिवरात्रि व्रत प्राप्त होता है। लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्राप्त होने वाले शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है। क्योंकि पुराणों के अनुसार इसी शिवरात्रि को शिव-पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार इसी शिवरात्री को करोड़ों सूर्य के समान कान्तिवाले आदिदेव शिवलिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे।
इसदिन व्रत रहकर रात्रिजागरण, नाम संकीर्तन, रुद्राभिषेक, शिवविवाह, शिव-पार्वती श्रृंगार आदि करना चाहिए। इस व्रत में रात्रि जागरण महत्वपूर्ण है।
शास्त्रों में शिवरात्रि की रात्रि को जागरण करने और प्रहर पूजन करने का विधान प्राप्त होता है।
शिवरात्रि को चारों प्रहर शिवपूजन करने वाले भक्त की सभी लौकिक इच्छाओं की पूर्ति भगवान करते हैं, और मृत्यु के उपरांत वह शिवसायुज्य को प्राप्त करता है।


- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"

उमानंदा- (शिवरात्रि विशेष)


“उमानंदा” जो गुवाहाटी के पास ब्रहमपुत्र के बीचो बीच एक छोटे से द्वीप की चोटी पर स्थिति है. शिवरात्री के दिन यहाँ हज़ारों के संख्या में श्रद्धालु आते हैं और पूजा अर्चना करते है।मंदिर तक पहुँचने के लिए सब से पहले आप को 15 से 20 मिनट तक यात्रा नौका से तय करनी होगी।ऊपर कांसे के पतरी पर भगवन शिव की खुदी हुई तस्वीर लगी हुई है. यहाँ से आप मुख्य गर्भ ग्रह में प्रवेश करते हैं. गर्भ ग्रह के अंदर अखंड दीप जल रहा है जिस में रोजाना एक लीटर तेल जलता है. यह दीप उस दिन से जल रहा है जब से इस मंदिर का निर्माण हुआ था।इतिहास बताता है कि अहोम राजा गदाधर सिंह ने इस मंदिर को वर्ष 1694 में बनवाया था. वर्ष 1897 के विनाशकारी भूकंप के दौरान मूल मंदिर छतिग्रस्त हो गया था. बाद में एक स्थानीय व्यापारी ने फिर से मंदिर का निर्माण करवाया।उमा का अर्थ है माँ यानी पार्वती और आनंद भगवान शिव का ही एक नाम है. इस मंदिर से नीलाचल पहाड़ी भी दिखाई देती है जहां स्थित है माँ कामाख्या देवी का मंदिर. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव यहाँ ध्यान कर रहे थे तब माता पार्वती नीलाचल पहाड़ी पर उन की प्रतीक्षा कर रही थी. इस लिए इस मंदिर का नाम पड़ा गया उमानंदा।उस पहाड़ी को “भस्मांचल ” के नाम से भी जाना जाता है. कालिका पुराण में इस बात का वर्णन किया गया है की सृष्टी के आरम्भ में जब भगवान शिव इस पहाड़ी पर ध्यान कर रहे थे, तब ही कामदेव ने उनका ध्यान बाधित किया था, शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी जिस से कामदेव जलकर भस्म हो गए और इसलिए इस पहाड़ी का नाम भस्मांचल पड़ा।

सिद्धान्त ज्योतिष के महत्वपूर्ण ग्रन्थ

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Sunday 24 February 2019

चित्रा और चन्द्रमा : एक रोचक जानकारी



मित्रों, 22/02/2019 को रात्री 10 बजे के बाद आकाश में बहुत ही खूबसूरत नजारा देखने को मिला ।
ये नजारा था, फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी के खूबसूरत चन्द्रमा और देदिप्यमान चित्रा नक्षत्र के युति का ।
वाह.... क्या अलौकिक और दिव्य छटा थी।
जानदार..... शानदार.... अद्भुत..... ।

मित्रों ज्योतिष् शास्त्र में वर्णित क्रान्तिवृत्तीय 27 नक्षत्रों में अश्विनी से आरम्भ करके गणना करने पर चित्रा नक्षत्र 14वें नम्बर पर आता है। यह सभी नक्षत्रों के मध्य में स्थित है, और इसकी चमकदार आभा इसकी मध्यस्थता को और भी अधिक पुष्ट करती है।
चित्रा नक्षत्र को ज्यौतिष शास्त्र में सबसे विशिष्ट स्थान प्राप्त है। ज्यौतिष का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है अयनांश.... जिनमें चित्रापक्षीय अयनांश को वैज्ञानिक और सबसे ज्यादा उपयुक्त अयनांश माना जाता है। यही नहीं हमारे 12 महीनों में से पहले महीने का नाम इसलिए चैत्र रखा गया था क्योंकि इस महीने की पूर्णिमा तिथि को चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में होता था।
चित्रा नक्षत्र कन्या और तुला राशि के अन्तर्गत आता है। चित्रा नक्षत्र के प्रथम दो चरण कन्या राशि में तथा अन्तिम दो चरण तुला राशि में हैं। इसका गणितीय विस्तार 5 राशि 23 अंश 20 कला से लेकर 6 राशि 6 अंश 40 कला है। इसका वास्तविक खगोलीय रेखांश 5 राशि 29 अंश 59 कला 4 विकला है । यह क्रान्तिवृत्त से 2 अंश 3 कला 15 विकला और विषुवत रेखा(नाड़ी वृत्त) से 11 अंश 8 कला 45 विकला दक्षिण में स्थित है।  यह पृथ्वी से लगभग 260 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है और सूर्य से 2000 गुना ज्यादा चमकदार है। चित्रा(spica) वास्तव में एक द्वितारा है जो पृथ्वी से एक तारे जैसा प्रतीत होता है। यह पृथ्वी से दिखाई देने वाला आसमान का 15वाँ सबसे चमकीला सितारा है।
इसलिए तो वेंकटेश केतकर "केतकीग्रहगणितम्" में कहते हैं-
चित्रा सदा तिष्ठति रोचमाना.....
प्र.अ.श्लो-३


इस तारे को "स्पाइका" या "अल्फा वर्जिनिस" के नाम से भी जाना जाता है।
वैसे तो वर्ष के ग्यारह महीने(17 सितम्बर से 16 अक्टूबर को छोड़कर) अलग अलग स्थितियों में आप इस नक्षत्र को देख सकते हैं। लेकिन इसको देखने का सही समय है फरवरी से अप्रैल के बीच। इस दौरान यह लगभग मध्यरात्रि के आगे-पीछे आकाशमध्य के आसपास दिखाई पड़ता है।
लेकिन आपको बता दूँ कि इसकी शोभा इसे अकेले देखने में नहीं है, बल्कि चन्द्रमा के साथ देखने में है। अलौकिक... भव्य... दर्शनीय... और खगोलीय पिण्ड़ों की सबसे खुबसूरत युति। यह खूबसूरती तब और बढ़ जाती है जब चन्द्रमा भी चमकदार आभा के साथ होता है।
वसन्त ऋतु में मन्द-सुगन्धित हवाएँ चल रही हों, आकाश साफ और प्रदूषण रहित (Dark Night Sky) हो चन्द्रमा पक्षबली हो उस समय यह खूबसूरत नजारा आपको बेसुध कर देता है।
अहा.... इस नजारे का वर्णन शब्दों में हो ही नहीं सकता, यह तो अद्भुत अनुभूति है।
चित्रा और चन्द्रमा की युति खगोल की सबसे खूबसूरत युति मानी जाती है। इसकी खूबसूरती और ऐतिहासिकता का अन्दाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब हमलोगों को वर-वधू की कोई परफेक्ट, खूबसूरत और प्यारी जोडी नजर आती है, तो हमलोग कहते हैं "क्या राम सीता की जोड़ी लग रही है"। हम राम-सीता की जोड़ी को सबसे विशिष्ट सौन्दर्य और लालित्य से पूर्ण जोड़ी मानते हैं, इसलिए हम किसी खूबसूरत दम्पति की उपमा राम-सीता की जोड़ी से देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि महर्षि वाल्मीकि रामायण लिखते समय दुनिया की सबसे खूबसूरत और अलौकिक राम-सीता की जोड़ी की खूबसूरती को बताने के लिए उपमान के रूप में चन्द्रमा और चित्रा नक्षत्र की युति का आश्रय लेते हैं | देखिये वाल्मीकि रामायण की पंक्ति-

सः रामः पर्णशालायामासीनः सह सीतया ।
विरराज महाबाहुश्चित्रया चन्द्रमा इव ।।

अरण्यकाण्ड़ अ. १७/४
अर्थात्- कुटिया में सीता जी के साथ बैठे हुए महाबाहु श्रीरामचन्द्र जी ऐसे शोभायमान हैं जैसे चित्रा नक्षत्र के साथ चन्द्रमा सुशोभित होता है।

हमारे शास्त्रों में चित्रा-चन्द्रमा युति के वैशिष्य को बताने वाले और भी उदाहरण ढूँढे जा सकते हैं।
आगे 22 मार्च, 18 अप्रैल और 16 मई को आप आकाश में इस युति का निरीक्षण कर सकते हैं। हाँलाकि 22 फरवरी वाला दृश्य तो नहीं होगा फिर भी यह नजारा आप मुदित जरूर करेगा।

नित नवीन ज्ञानप्रद विशिष्ट जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें।
आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके बताएँ और इस पोस्ट को शेयर जरूर करें ताकि अधिक से अधिक लोग इस ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

© पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"
B.H.U., वाराणसी।
Mob.- 7004022856.

Friday 22 February 2019

दो चिताएँ


गणेश भगवान के चमत्कारिक बारह नाम करते हैं सभी संकटों का नाश-

विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश जी को सभी मंगलकार्यों में सर्वप्रथम स्मरण करने का विधान है। इसलिए आज मैं लेकर आया हूँ भगवान गणेश जी के वो बारह नाम जिनको पढ़ने या सुनने मात्र से विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, यात्रा, संग्राम और संकट में उपस्थित होने वाले विघ्न शान्त हो जाते हैं।
आप आपात स्थिति में इन बारह नामों का 10 बार पाठ करें और भगवान श्रीगणेश जी को श्रद्धा से प्रणाम करें वो तुरन्त ही आपके विघ्नों का नाश कर आपको सुखी करेंगें।
।।प्रेम से बोलिए गणेश भगवान की जय।।
गणेश जी के बारह नाम
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥