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Saturday 22 October 2022

सूर्यग्रहण 25 अक्टूबर की सम्पूर्ण जानकारी

खण्डग्रास ग्रस्तास्त सूर्यग्रहण

   (Partial Solar Eclipse)


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आप सब को ज्ञात ही होगा कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या दिन मंगलवार तदनुसार 25 अक्टूबर 2022 को भारतवर्ष में सूर्य ग्रहण लगने वाला है। आइए आज इस ग्रहण की विशेषताओं के बारे में जानते हैं साथ ही ग्रहण संबंधी कृत्याकृत्य सूतक तथा अन्य वैज्ञानिक और धर्मशास्त्रीय जानकारियां भी प्राप्त करेंगे।




 25 अक्टूबर 2022 को लगने वाला सूर्य ग्रहण खण्डग्रास सूर्यग्रहण (Partial Eclipse) है।


भारत में यह ग्रहण कहाँ कहाँ दिखाई देगा ?

25 अक्टूबर 2022 को लगने वाला खण्डग्रास सूर्यग्रहण भारत में ग्रस्तास्त सूर्यग्रहण के रूप में दिखाई देगा। यह भारत के अधिकांश भागों से देखा जा सकेगा किन्तु अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पूर्वोत्तर के कुछ भागों जैसे - आइजोल, डिब्रुगढ़, इम्फाल, ईटानगर, कोहिमा, शिवसागर, सिलचर, तमेलांग आदि क्षेत्रों में ग्रहण नहीं देखा जा सकेगा। अन्य सभी स्थानों के लोग स्थानभेद से अपने अपने समयानुसार ग्रहण को देख सकेंगे।


विश्व में यह ग्रहण कहाँ कहाँ दिखेगा ?

यह सूर्यग्रहण विश्व में यूरोप, मध्य-पूर्व उत्तरी अफ्रिका, पश्चिमी एशिया, उत्तरी अटलांटिक महासागर, उत्तर हिन्द महासागर  और भारतवर्ष के अधिकांश क्षेत्र में दिखलाई पड़ेगा। 


भारतीय समयानुसार ग्रहण का समय 

आप सबको पता ही है और मैंने ऊपर बताया भी है की सूर्यग्रहण का समय स्थानभेद से अलग-अलग होता है ! ऐसा क्यों होता है, इस पर हम इसी लेख में आगे चर्चा करेंगे। खण्ड सूर्यग्रहण की शुरुआत 02:29 PM से होगी तथा खण्ड सूर्यग्रहण की समाप्ति 06:32 PM पर होगी, ग्रहण का मध्य 04:30 PM पर होगा। इसी समय के बीच में अलग-अलग स्थानों में अलग अलग समय पर खण्ड सूर्यग्रहण की दृश्यता रहेगी।


दिल्ली के लिए ग्रहण का समय  

दिल्ली में आप खण्ड सूर्यग्रहण  देख पाएँगे। दिल्ली में ग्रहण का समय निम्नलिखित रहेगा- 

सूर्य-ग्रहण - 25 अक्टूबर 2022

ग्रहण प्रारम्भ (स्पर्श) : 04:29 PM

ग्रहण मध्य :  05:31 PM

ग्रहण समाप्ति (मोक्ष) : 06:32 PM


* ग्रहण लगे हुए ही 05:42 PM पर सूर्यास्त हो जाएगा।

* दिल्ली के लिए सूतक का प्रारम्भ : 25 अक्टूबर सुबह 04:29 AM से होगा।


आप निम्नलिखित वेबसाइट पर जाकर अपने स्थान का सही ग्रहण-समय जान सकते हैं-

अपने शहर में ग्रहण का समय जानने के लिए यहाँ क्लिक करें


दीपावली_निर्णय 

इस वर्ष सूर्य ग्रहण कार्तिक अमावस्या को पड़ रहा है तथा दीपावली भी कार्तिक अमावस्या के दिन ही मनाई जाती है अतः दीपावली निर्णय और दीपावली संबंधी समस्त शंकाओं के निवारण के लिए यह पोस्ट पढ़ें - 

फेसबुक पर दीपावली निर्णय पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

वेबसाइट पर दीपावली निर्णय पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।


ग्रहण_संबंधी_महत्वपूर्ण_तकनीकी_जानकारियाँ

सूर्य स्पष्ट - 06/07°/49'/46"

चन्द्र स्पष्ट - 06/07°/49'/46"

राहु स्पष्ट - 00/19°/11'/41"

कान्ति - 0.863

सूर्य क्रान्ति - 12°10' दक्षिणा

चन्द्र क्रान्ति - 11°14' दक्षिणा

व्यगु - 316°38'

भुज - 11°42'

चन्द्र शर - 01°03' उत्तर

सूर्य गति - 61' 43"

चन्द्र गति - 813' 05"


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चन्द्रग्रहण की तरह सूर्यग्रहण भी पूरी पृथ्वी पर एक साथ क्यों नहीं दिखता ?

इस प्रश्न के उत्तर को समझने के लिए हमें ग्रहण के कुछ बारीक तथ्यों को ठीक से समझना पड़ेगा। इसके लिए आइए सर्वप्रथम हम यह जाने कि ग्रहण क्या है?

ग्रहण क्या है ? - किसी आकाशीय पिंड का किसी अन्य आकाशीय पिंड से ढ़क जाना ग्रहण कहलाता है। हम पृथ्वीवासी यहां से हर वर्ष सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण देखते हैं।

सूर्य ग्रहण में चंद्रमा छादक और चंद्र ग्रहण में पृथ्वी की छाया छादिका होती है। चंद्रमा द्वारा किसी अन्य ग्रह को ढकने की प्रक्रिया चंद्र समागम या Occultation कहलाती है। 

ग्रहण तभी लगता है जब छाद्य(सूर्य/चन्द्रमा) और छादक(चन्द्र/भूच्छाया) एक सरल रेखा में हों अर्थात् ज्योतिषीय भाषा में छाद्य छादक के पूर्वापर और याम्योत्तर अंतर का अभाव हो जाए तथा छाद्य पात(राहु/केतु) के सन्निकट हो। 

सूर्य को एक पात से गुजरने के पश्चात उसी पात पर पुनः आने में 346.62 दिन लगते हैं। इसे ही ग्रहण वर्ष कहा जाता है। पातों की संख्या दो होने के कारण इनके आधे दिन अर्थात 173.31 दिनों में सूर्य किसी न किसी पात पर आता है। एक ग्रहण से दूसरे ग्रहण की संभावना 176.68 दिनों के बाद ही बनती है।

चन्द्र ग्रहण कैसे होता है ?  पूर्णिमा (पूर्वापर अन्तर) के दिन शराभाव (चन्द्रग्रहण में शराभाव याम्योत्तर अन्तर होता है।) होने पर चन्द्रग्रहण होता है। #शर क्या है? शर को इंग्लिश में Celestial Latitude कहते हैं। शर सिद्धांत ज्योतिष् का  तकनीकी शब्द है। कदम्बप्रोत वृत्त में ग्रहबिम्ब और ग्रहस्थान का अन्तर शर कहलाता है। शर के अभाव को शराभाव कहते हैं । हर बार चन्द्र+राहु/केतु रहने पर पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण नहीं होता, बल्कि इनके साथ-साथ जब शराभाव होता है तभी चन्द्रग्रहण होता है। अगर शराभाव की बात न होती तो हर पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण क्यों नहीं लगता?

चलिए इसी क्रम में लगे हाथों शर निकालने का सूत्र भी बता देता हूँ। शरानयनम्- स्पष्ट चन्द्र में पात को घटाकर जो शेष बचे उसकी जीवा निकालकर उसे चन्द्रमा के परम विक्षेप (२७०' कला) से गुणा करके त्रिज्या (३४३८ कला) से भाग देने पर लब्धि  कलादि  स्पष्टशर प्राप्त होता है।

                    चंद्रग्रहण के संबंध में एक अति #महत्त्वपूर्ण बात आपको बताता हुँ। ऊपर यह बताया जा चुका है कि जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण होता है। चंद्रमा अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत नजदीक है। और चन्द्रमा का भ्रमण वृत्त पृथ्वी के वृत्त पर स्थित है। चन्द्रमा पर पड़ने वाली भूच्छाया से हमारा सीधा संबंध है क्योंकि हम स्वयं पृथ्वी पर निवास करते हैं। इसलिए चंद्रमा पर पढ़ने वाली पृथ्वी की छाया पूरी पृथ्वी से देखने पर एक समान ही दिखाई पड़ती है। अर्थात चंद्रग्रहण #सार्वभौमिक होता है, और सरल शब्दों में कहूं तो जिस दिन चंद्रग्रहण होगा उस दिन पूरी पृथ्वी पर जहां-जहां रात होगी सभी स्थानों पर समान रूप से चंद्रग्रहण दिखाई देगा।

सूर्य ग्रहण में ऐसा नहीं होता, सूर्यग्रहण सार्वभौमिक नहीं है। अब आइए सूर्य ग्रहण को ठीक से समझते हैं।


सूर्यग्रहण कैसे होता है? 

अमावस्या(पूर्वापरान्तराभाव) के दिन लम्बन और नति (सूर्यग्रहण में याम्योत्तर अन्तर लम्बन और नति संस्कार से ज्ञात होता है।) का अभाव रहने पर सूर्य ग्रहण होता है। लम्बन को अंग्रेजी में Parallax कहते हैं। भूपृष्ठीय ग्रह भूकेंद्रीय ग्रह की तुलना में जितना लंबित होता है वही लंबन कहलाता है। शरों के अंतर को नति कहते हैं। लंबन और नति का मान अक्षांश भेद से बदल जाता है, साथ ही सूर्य हमसे बहुत ज्यादा दूरी पर स्थित है। सूर्य बिंब को चंद्र बिंब द्वारा ढक लिए जाने पर सूर्यग्रहण होता है। चंद्र बिंब से हमारा सीधा संबंध नहीं है और चंद्रमा तथा सूर्य के भ्रमण वृत्तों के बीच बहुत दूरी है, चंद्र का बिंब सूर्य बिंब से छोटा भी है। इन सभी कारणों से पूरी पृथ्वी से सूर्य ग्रहण समान रूप से दिखाई नहीं देता, बल्कि सूर्य ग्रहण का समय पूरी पृथ्वी के लिए अलग-अलग होता है और उसका समय भी स्थानभेद से बदलता रहता है। अर्थात् सूर्यग्रहण चंद्रग्रहण की भांति #सार्वभौमिक नहीं होता। सूर्यग्रहण मात्र 10000 किलोमीटर लंबाई और 250 किलोमीटर चौड़ाई के क्षेत्र तक में ही एक बार में दिखाई देता है।

           इसी क्रम में आइए सूर्यग्रहण से जुड़ी अत्यंत #महत्वपूर्ण और #रोचक जानकारी आपको बताता हूँ। ऐसा नहीं है की केवल चंद्र बिंब की छाया पढ़ने पर ही सूर्य ग्रहण होता है बल्कि अन्य आंतरिक ग्रहों अर्थात बुध और शुक्र बिंब की छाया पढ़ने पर भी सूर्य ग्रहण होता है। परंतु इनका बिंब पृथ्वी से बहुत छोटा दिखाई पड़ने के कारण हम इसे ग्रहण नहीं कहते, बल्कि इसे बुध का पारगमन और शुक्र का पारगमन नाम से जानते हैं। बुध और शुक्र का पारगमन सदी की बहुत महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है, यह बहुत कम ही देखने को मिलती है। 2012 में  शुक्र का पारगमन हुआ था जिसे मैंने अपने गुरु जी आदरणीय श्री वैद्यनाथ मिश्र गुरुजी के आशीर्वाद से उनके और कुछ खगोल वैज्ञानिकों के साथ देखा था। इस सदी में अब शुक्र का पारगमन दिखाई नहीं देगा।


इस ग्रहण की विशेषता -

1. यह इस वर्ष का पहला  सूर्यग्रहण है।

2. सूर्य ग्रहण का सम्पूर्ण मान 04 घंटे 04 मिनट होगा। 

3. इसका मैग्निट्यूड़ 0.862 होगा। 

4. विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य का अधिकतम 86.2% तक का भाग चन्द्रच्छाया द्वारा ग्रसित नजर आएगा, चन्द्रमा अपने शीघ्रोच्च स्थान के नजदीक होगा।

5. यह सूर्यग्रहण सारोस चक्र में 124वें क्रमांक का सूर्यग्रहण है।

6. इस वर्ष तुला राशि के स्वाति नक्षत्र में 4 ग्रहों (सूर्य-चन्द्रमा-शुक्र-केतु) की युति के साथ सूर्यग्रहण की घटना  ऐतिहासिक है।


ग्रहण सूतक - 

यह सूर्यग्रहण पुरे भारत में दिखाई देगा !

इस दौरान जप -तप और दान का विशेष महत्व होगा !

धर्मशास्त्रों के अनुसार चन्द्रग्रहण में ग्रहण से 9 घण्टे पहले और सूर्यग्रहण में ग्रहण से 12 घण्टे पहले ग्रहण सूतक लगता है। इसमें शिशु, अतिवृद्ध और गम्भीर रोगी को छोड़कर अन्य लोगों के लिए भोजन और मल-मूत्र त्याग वर्जित है। 

कहा भी गया है-

सूर्यग्रहेतुनाश्नीयात्पूर्वंयामचतुष्टयम्।
चन्द्रग्रहेतुयामास्त्रीन्_बालवृद्धातुरैर्विना।।

सभी सनातनियों को इस धर्मशास्त्रीय आदेश का पालन करते हुए, सूतक के समय से ही ग्रहण के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। 


विभिन्न राशियों पर ग्रहण का प्रभाव -

ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार इस ग्रहण का 12 राशियों पर जो प्रभाव होगा उसे वर्णित किया जा रहा है -

1. मेष- स्त्रीपीड़ा ।

2. वृष- सुख । 

3. मिथुन- चिन्ता । 

4. कर्क- व्यथा ।

5. सिंह- श्रीः ।

6. कन्या- क्षति । 

7. तुला- घात ।

8. वृश्चिक- हानि ।

9. धनु- लाभ ।

10. मकर- सुख ।

11. कुम्भ- मानहानि ।

12. मीन- मृत्युतुल्य कष्ट।


* तुला राशि में ही सूर्यग्रहण लग रहा है इसलिए तुला राशि वालों को सबसे ज्यादा सचेत रहने की जरुरत है। उसमें भी अगर आपका जन्म स्वाती नक्षत्र में हुआ है तब तो ये बहुत विनाशकारी है, अतः शान्ति उपाय करने और सावधान रहने की विशेष आवश्यकता है।


          जिन राशियों के लिए अनिष्ट फल कहा गया है, उन्हें ग्रहण नहीं देखना चाहिए ।


 अनिष्टप्रद_ग्रहण_फलों_के निवारण के लिए स्वर्ण निर्मित सर्प कांसे के बर्तन में तील, वस्त्र एवं दक्षिणा के साथ श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करना चाहिए । अथवा अपनी शक्ति के अनुसार सोने या चाँदी का ग्रहबिम्ब बनाकर ग्रहण जनित अशुभ फल निवारण हेतु दान करना चाहिए। ग्रहण दोष निवारण के लिए विशेषकर गौ, भूमि अथवा सुवर्ण का दान दैवज्ञ के लिए करना चाहिए।

दान करते समय ये श्लोक पढ़ें-

तमोमयमहाभीमसोमसूर्यविमर्दन,
हेमनागप्रदानेनममशान्तिप्रदोभव।
विधुन्तुदनमस्तुभ्यंसिंहाकानन्दनाच्युताम्,
दानेनानेननागस्यरक्षमां वेधनाद्भयात्।।

                       इस प्रकार दान करने से निश्चय ही ग्रहण जनित अशुभ से अशुभ फलों का भी शमन हो जाता है और उसके दुष्प्रभावों  से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है।


ग्रहण  के समय क्या करें क्या न करें?


1. चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। 

2. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी लें। ऐसा करने से वे मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। 

3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर ही भोजन करना चाहिए। 

4. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। इसलिए घर में रखे सभी अनाज और सूखे अथवा कच्चे खाद्य पदार्थों में ग्रहण सुतक से पूर्व ही तुलसी या कुश रख देना चाहिए। जबकि पके हुए अन्न का अवश्य त्याग कर देना चाहिए। उसे किसी पशु या जीव-जन्तु को खिलाकर, पुनः नया भोजन बनाना चाहिए। 

5. ग्रहण वेध के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्थात् सूतक काल में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक तो बिलकुल भी अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।

6.ग्रहण के समय एकान्त मे नदी के तट पर या तीर्थो मे गंगा आदि पवित्र स्थल मे रहकर जप पाठ सर्वोत्तम माना गया है ।

7. ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद तीर्थ में स्नान का विशेष फल है। ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए। 

8. ग्रहण समाप्ति पर स्नान के पश्चात् ग्रह के सम्पूर्ण बिम्ब का दर्शन करें, प्रणाम करें और अर्ध्य दें।उसके बाद सदक्षिणा अन्नदान अवश्य करें। 

9. ग्रहण समाप्ति स्नान के पश्चात सोना आदि दिव्य धातुओं का दान बहुत फलदायी माना जाता है और कठिन पापों को भी नष्ट कर देता है। इस समय किया गया कोई भी दान अक्षय होकर कई गुना फल प्रदान करता है।

10. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। 

11. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

12. ग्रहण काल मे सोना मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन  ये सब कार्य वर्जित हैं।

13. ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। 

14. ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)

15. गर्भवती महिलाओं तथा नवप्रसुताओं को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। सुतक के समय से ही ग्रहण के यथाशक्ति नियमों का अनुशासन पूर्वक पालन करना चाहिए।उनके लिए बेहतर यही होगा कि घर से बाहर न निकलें और अपने कमरे में एक तुलसी का गमला रखें।

16. ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएँ श्रीमद्भागवद् पुराणोक्त गर्भरक्षामन्त्र- 

पाहि पाहि महायोगिन् देवदेव जगत्पते ।
नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥
अभिद्रवति मामीश शरस्तप्तायसो विभो ।
कामं दहतु मां नाथ मा मे गर्भो निपात्यताम् ॥

          का अनवरत मन ही मन पाठ करती रहें।

17. भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। इसी प्रकार गंगा स्नान का फल भी चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना  होता है। 

18. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। 

19. ग्रहण के दौरान भगवान के विग्रह को स्पर्श न करे।

20. ग्रहण के समय ईष्टमन्त्रों की सरलता से सिद्धि प्राप्त हो जाती है, अतः अपने गुरु से अपने अभिष्ट मन्त्र लेकर उनके सानिध्य में ग्रहण के दौरान मन्त्र-सिद्धि भी कर सकते हैं। शाबर मन्त्र ग्रहण के दौरान गंगातट पर 10,000 जपने से सिद्ध हो जाते हैं।

21. अपने राशि पर पड़ने वाले ग्रहण के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ग्रहण के दौरान अपने राशिस्वामि का मन्त्र या सूर्य नारायण अथवा चन्द्रदेव के मन्त्र का जप करना बहुत प्रभावी होगा।

 

ग्रहण को कैसे देखें?


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ज्योतिषियों, खगोलशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के अलावा सामान्य जनमानस में भी ग्रहण को देखने की विशेष जिज्ञासा रहती है। खासकर छात्रों में यह उत्कण्ठा विशेषरूप से देखने को मिलती है। तो आइए जानते हैं कैसे हम 25 अक्टूबर को लगने वाले सूर्यग्रहण का आनन्द ले सकते हैं।

1. ग्रहण को देखने के लिए पर्याप्त नेत्र सुरक्षा का ध्यान रखें साथ ही वैज्ञानिकों के द्वारा निर्देशित सूर्य ग्रहण चश्मा का ही प्रयोग करें ।

2. ग्रहण को कभी भी खुली आंखों से ना देखें ।

3. टकटकी लगाकर ग्रहण न देखें, पलकें झपकातें रहें। 

4. खुले मैदान में साफ आसमान के नीचे खड़े होकर आप ग्रहण देख सकते हैं।

5. गणित ज्योतिष् के अध्येता और एस्ट्रोनामि के विद्यार्थी और खगोल वैज्ञानिक ग्रहण को विशेष तौर पर आब्जर्व करते हैं। 

6. पिन होल कैमरों या अन्य किसी साधन की मदद से किसी परदे पर सूर्य की छाया लेकर आसानी से सूर्यग्रहण देखा जा सकता है | 


- ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य 

श्री ला.ब.शा.विद्यापीठ, दिल्ली ।

Friday 21 October 2022

दीपावली_क्यों_है_सबसे_खास ?

दीपावली के बारे में वो सबकुछ जो आपको जानना चाहिए....


आइये आज जानते हैं दीपावली का महत्त्व और उसकी विशेषता जो उसे सभी पर्वों से अलग करती है। "दीपानाम् आवली: दीपावली:" यहाँ षष्ठी-तत्पुरुष समास है, जिसका अर्थ है दीपों का समूह। इस दिन पूरा देश दीपों की जगमगाहट से चमकता रहता है । यह पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है । जो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुरु होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक चलता है ।

१. धनत्रयोदशी (धनतेरस ) ।

२. नरक चतुर्दशी (नरक चौदश) ।

३. दीपावली ।

४.गोवर्धन पूजा ।

५. यम द्वितीया (भैया दूज) ।




आइये क्रमश: इनके बारे में जानते हैं और इनके महत्त्व को समझते हैं.........।


१. #धनत्रयोदशी(धनतेरस) :- यहाँ जो धन शब्द आया है उसे भ्रम के कारण लोग रुपया-पैसा-समृद्धि समझ लेते हैं। लेकिन वास्तव में यह शब्द आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरी के लिए आया है। पुराणों के अनुसार समुद्र-मंथन के समय 14 रत्नों में से एक 14वें रत्न के रूप में अमृत कलश लिए हुवे भगवान धन्वन्तरी का प्रादुर्भाव हुआ था। यह धनत्रयोदशी पर्व उनकी ही जयंती के रूप में आदिकाल से मनाया जाता रहा है। शास्त्रों में कहा गया है "शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्" अर्थात सर्वप्रथम शरीर की ही रक्षा की जानी चाहिए। इसलिए तो आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरी के पुजन के साथ हमारा प्रकाश पर्व प्रारंभ होता है।

इस दिन अकालमृत्यु के नाश के लिए घर के मुख्य द्वार पर आटे का दीपक जलाकर यम हेेतु  दीपदान किया जाता है ।

पद्मपुराण में कहा गया है :-

कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके ।

यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ।।

 

दीपदान करते समय निर्णय-सिन्धु में उल्लेखित निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए - 

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह।

त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतां मम ।।


साथ ही इस दिन औषधीय वृक्षों जैसे तुलसी, नीम, पीपल, बेल आदि के समक्ष  दीप भी जलाया जाता है । आयुर्वेद के जानकर वैद्य-जन आज के दिन औषधि निर्माण और संरक्षण का कार्य भी करते हैं ।

 भगवान धन्वन्तरी के प्राकट्य के समय उनके हाथ में स्वर्ण-कलश था इसलिए आज के दिन सोने-चाँदी के बर्तन आदि की खरीदारी की प्रथा भी चल पड़ी। 

 आज के दिन कुबेर पूजन भी किया जाता है और उनसे व्यापार वृद्धि की प्रार्थना की जाती है। आज के दिन से ही व्यापारी लोग अपना हिसाब खाता अर्थात बही-खाता लिखना शुरू करते हैं।


२. #नरक_चतुर्दशी(नरक चौदस) :- आज के दिन की महिमा बहुत है।

आज के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मार कर उसके कैद से १६००० स्त्रियों को मुक्त कराया था।

सतयुग के राजा रन्तिदेव ने नरक यातना से बचने के लिए घोर तपस्या की थी और आज के ही दिन यमराज उसकी तपस्या से प्रसन्न हुवे थे।

कुरुक्षेत्र में भीष्म-पितामह ने आज के ही दिन बाणों की शैया ग्रहण की थी।

स्कन्दपुराण में अकाल मृत्यु से बचने के लिए आज के दिन यमराज को तिल तेल का दीपदान करने का विधान किया गया है। आज के दिन यमराज के निमित्त घर के बाहर 16 छोटे दीपों के साथ एक बड़ी चौमुखी दीप जलाई जाती है। दीपकों को जलाने से पहले उनका पूजन भी कर लेना चाहिए। चौमुखी दीपक घर के बाहर यम के लिए दीपदान करना चाहिए और बाकि 16 दीपक घर के विभिन्न भागों में पितरों के स्वागत में जलाकर रखनी चाहिए। इस दिन मंदिरों में जाकर भी ब्रह्मा, विष्णु, महेश के लिए दीपदान करना चाहिए ऐसा निर्णय-सिन्धु में बताया है। निर्णय सिन्धु में नरक निवारण चतुर्दशी के दिन तैलाभ्यङ्ग स्नान करने तथा यमतर्पण करने का निर्देश और विधान भी प्राप्त होता है।


३. #दीपावली :- कार्तिक कृष्ण अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। इसके बारे में पुराणों में बहुत सी कथा मिलती है । विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र-मंथन के समय आज के ही दिन लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ था।

जनमानस में 14 वर्ष के बनवास के बाद राम जी के अयोध्या लौटने की ख़ुशी में यह पर्व मानाने की परंपरा है।

आज के ही दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था।

सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी दीपावली के ही दिन हुआ था।

आज के दिन धूमधाम से भगवती लक्ष्मी व भगवान गणेश जी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है और मिठाई बांटी जाती है। व्यापारी वर्ग इस दिन विशेष पूजन करते हैं । #सिंह लग्न में भगवती का पूजन करना बहुत ही प्रभावशाली और समृद्धिदायक होता है क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान सिंह लग्न में ही भगवती लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था।

 इस दिन पुरे घर को साफ और पवित्र कर के दीपक जलाया जाता है। नए वस्त्र पहने जाते हैं, घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है।

आज की दिन महानिशा पूजन अर्थात् काली पूजन करने का भी विधान है इनका पूजन मध्यरात्रि से शुरू किया जाता है।

आज का दिन साधकों के लिए वरदान साबित होता है। आज के दिन की गई साधना सिद्धी प्रदान करने वाली होती है। दीपावली पर्व अभिचार कर्म के लिए भी सबसे ज्यादा उपयुक्त है।


४. #गोवर्धन_पूजा :- यह पर्व दीपावली के दुसरे दिन मनाया जाता है। इस पर्व को पुराणों में अन्नकूट भी कहा गया है। आज के दिन ही भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर गाय और ग्वालों की रक्षा की थी। आज के दिन मुख्यरूप से गौ आदि पशुओं का पूजन करने और उनको मक्के का पाखर (मक्के को उबाल कर बनाया गया पशु आहार) खिलाने का विधान है। आज के दिन के सम्बन्ध में अलग अलग जगहों पर कई लोकाचार प्रचलित हैं। जिनके अनुसार लोग अपने अपने तरीकों से इस पर्व को पुरे हर्षोल्लास के साथ मानते हैं।


५. #यम_द्वितीया(भैया दूज) :- यह पर्व मुख्य रूप से भैया दूज के नाम से प्रचलित है। आज के दिन बहनें अपने भाई के शत्रुओं के नाश की कामना से और जीवन भर मधुर सम्बन्ध बने रहने की कामना से गाय के गोबर से एक पूजन मंडल तैयार करती हैं और उसमे चना कुटती हैं। वह चना अपने भाइयों को खिलाती हैं उन्हें अपने लोक परंपरा के अनुसार  गलियां देती हैं उन्हें उनके कमियों से अवगत कराती हैं और फिर गाली देने के पश्चाताप स्वरुप बेर के कांटे अपने जीभ में चुभाती हैं। भाई आज के दिन फल, फूल, मिठाई और दक्षिणा देकर  पैर छूकर अपने बहन का आशीर्वाद लेता है जीवन भर स्नेह बनाये रखने का भरोसा दिलाता है। यह पर्व भाई बहन के स्नेह का बहुत महान पर्व है।


- ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य 

मो.-9341014225.

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दीपावली निर्णय

 दीपावली_पर्व_विचार_2022


दीपावली पञ्चदिवसात्मक त्यौहार है। यह धनत्रयोदशी से प्रारम्भ होता है और यमद्वितीया पर पूर्ण होता है। धनत्रयोदशी, नरकचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, यम द्वितीया (भैया दूज) ये सारे दीपावली पर्व के ही अंग हैं। आज की इस परिचर्चा में हम इन सभी पर्वों के पूजन मुहूर्त पर विचार करेंगे। इस वर्ष इस पञ्चदिवसात्मक पर्व के मध्य में सूर्यग्रहण होने से भी कई तरह की भ्रान्तियाँ उत्पन्न हो रही हैं। जनसामान्य को बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। साथ ही लोगों के पास इस संबंध में जानकारी के जो भी स्रोत हैं उनमें भी एकवाक्यता नहीं है। इसलिए सभी परिस्थितियों का सम्यक विचार विमर्श करने के बाद कई सारे पञ्चाङ्ग तथा धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन करने के पश्चात् कई विद्वानों एवं अपने गुरुजनों से चर्चा करने के पश्चात् मैं शास्त्रोचित निर्णय आप सबों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ, इससे शास्त्र मर्यादा की रक्षा होगी, आपके भ्रम का निवारण होगा एवं शुभ मुहूर्त में इस त्यौहार को मनाकर आप अधिकाधिक पुण्यशाली बनेंगे। 





आइए इन पाँचों पर्व पर क्रमशः विचार करते हैं -


धनत्रयोदशी (धनतेरस) मुहूर्त


धनत्रयोदशी के संबंध में दो मत प्राप्त होते हैं, कुछ पञ्चाङ्गों में 22  अक्टूबर को तो कुछ पञ्चाङ्गों में 23 अक्टूबर को धनत्रयोदशी बताया गया है। मैंने हृषिकेश पञ्चाङ्ग, महावीर पञ्चाङ्ग, जगन्नाथ पञ्चाङ्ग, विद्यापीठ पञ्चाङ्ग, राष्ट्रीय राजधानी पञ्चाङ्ग आदि कई पञ्चाङ्ग मंगाए हैं। ज्यादातर पञ्चाङ्गों में धनत्रयोदशी  का पूजन 22 अक्टूबर को बताया गया है। धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु ग्रन्थों में धनत्रयोदशी पर्व निर्णय संबंधी बातें प्राप्त नहीं होतीं केवल यमदीपदान की विधि और मन्त्र का उल्लेख मिलता है। मेरी जानकारी के अनुसार धनत्रयोदशी प्रदोष व्रत है, प्रदोष के संबंध में सायंकालीन या रात्रिव्यापिनी त्रयोदशी का ज्यादा महत्व है। निर्णयसिन्धु में धनत्रयोदशी के दिन यमदीपदान का जो विधान मिलता है उसमें निशामुखे शब्द का प्रयोग है जो रात्रि के प्रारम्भ में दीपदान करने का आदेश करता है, जब तक सूर्य है तब तक दिन है सूर्य के अस्त होने के बाद ही रात्रि का प्रारम्भ होता है। 22 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 2 मिनट के बाद से त्रयोदशी प्रारम्भ है और शाम 5:43 पर सूर्यास्त होना है। इस प्रकार 22 अक्टूबर को रातभर त्रयोदशी प्राप्त होती है (कुबेर पूजन भी लोग रात्रि में ही करते हैं)। जबकि 23 अक्टूबर को सूर्यास्त के बाद मात्र 20 मिनट ही त्रयोदशी प्राप्त होगी। ज्यादातर पञ्चाङ्गों में धनत्रयोदशी 22 अक्टूबर को ही वर्णित है। मेरा भी यही अभिमत है कि धनत्रयोदशी 22 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 2 मिनट के बाद से मनाना चाहिए। 


नरक_चतुर्दशी


नरक चतुर्दशी के संबंध में कोई ज्यादा मतवैभिन्य नहीं है। इग्गे दुग्गे पंचांग में ही 24 को नरक निवारण चतुर्दशी दर्शाया गया है। ज्यादातर पंचांगों नें 23 को ही नरक निवारण चतुर्दशी बताया है।  मेरे मत में भी 23 अक्टूबर को ही नरक निवारण चतुर्दशी चतुर्दशी मनाना उचित है। निर्णय सिन्धु में नरक चतुर्दशी के दिन तैलाभ्यंग स्नान, ब्रह्मा-विष्णु-महेश दीपदान, नरक दीपदान, यम तर्पण आदि करने का निर्देश और निधान दिया है। ये सब प्रकरण वहीं से देखना उचित है अथवा मुझे समय मिला तो इस पर अलग से पोस्ट लिखूँगा।


दीपावली_निर्णय


इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 25 अक्टूबर को सूर्य-ग्रहण लगने वाला है, इस वजह से जनसामान्य में बहुत शंका है कि दीपावली कैसे मनाई जाएगी??? कब मनाई जाएगी, ग्रहण के कारण क्या क्या व्यवधान होंगे? क्या सावधानी रखनी होगी आदि। यह पोस्ट इन सभी शंकाओं का निराकरण करेगी। आइए इनको सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं।


प्रश्न - 25 अक्टूबर को ग्रहण के बाद दीपावली पूजन करने में क्या समस्या है?

उत्तर - यह तो सत्य है कि कार्तिक अमावस्या 25 अक्टूबर को ग्रहण है और ग्रहण का मोक्ष शाम 6:23pm पर है। कुछ लोग कह रहे हैं जब ग्रहण साढ़े बजे खत्म हो ही रही है तो ग्रहण के बाद दीपावली पूजन करने में क्या दिक्कत है??? हे नारायण इसमें बहुत बड़ी समस्या है और समस्या ये है कि ग्रहण के पीछे का तकनीकी सिद्धांत आपको ज्ञात नहीं है। आपने पढ़ा है अमावस्या में सूर्यग्रहण होता है ये जो बात है न ये बात सटीक नहीं है। सूर्यग्रहण अमावस्या में नहीं बल्कि अमावस्यान्त में होता है। इसलिए भास्कराचार्य द्वितीय ने सिद्धांत शिरोमणि के सूर्यग्रहणाधिकार में लिखा है दर्शान्तकालेऽपि समौ रवीन्दू... दर्श कहते हैं अमावस्या को दर्शान्तकाल अर्थात् अमावस्यान्त काल। सूर्यग्रहण का आधा भाग अर्थात् स्पर्श अमावस्या में होता है, मध्य अमावस्यान्त काल में होता है और मोक्ष प्रतिपदा में होता है। 25 अक्टूबर को 6:32pm पर ग्रहण का मोक्ष हो रहा है तो उस समय प्रतिपदा लग चुकी होगी। देखिए जगन्नाथपञ्चाङ्गम् में 04:30pm पर अमावस्या का समापन दर्शाया गया है। देख लीजिए सभी पंचांगों में ग्रहण का मध्य 04:30pm दर्शाया गया है। उसके बाद से प्रतिपदा शुरु हो जाएगी। जब रात्रि में अमावस्या रहेगी ही नहीं सूर्यास्त से बहुत पहले ही अमावस्या समाप्त हो रही है तो ग्रहण के बाद पूजन होगा कैसे ??? इसलिए ग्रहण के बाद पूजन करने का ख्याल तो मन से निकाल ही दीजिए।


प्रश्न - 25 अक्टूबर को जब दीपावली पूजन नहीं होगा तो कब करें दीपावली पूजन ???

उत्तर - सभी पञ्चाङ्गों ने एकमत से 24 अक्टूबर को दीपावली पर्व मनाने का निर्देश दिया है। 24 अक्टूबर को सूर्यास्त के आसपास  ही अमावस्या प्रारम्भ होने तथा रात्रिकालीन अमावस्या प्राप्त होने से मेरे मत से भी 24 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत है।


प्रश्न - ग्रहण के कारण क्या विसंगतियाँ उत्पन्न होंगी और दीपावली पूजन के दौरान क्या सावधानी बरतनी चाहिए।

उत्तर - सबसे बड़ी सावधानी ये बरतनी है कि पूजन, प्रसाद वितरण आदि सूतक से पहले पहले समाप्त कर लेना है। सूर्यग्रहण में 12 घंटे पूर्व ही सूतक लग जाता है अतः 24-25 की रात्रि 02:29 से ही सूतक लग जाएगा।  गोधूली काल से ही दीपावली पूजन प्रारम्भ हो जाता है। अतः रात्रि 02:29 से पूर्व आपको मेष से लेकर सिंह तक पाँच लग्न मिलेंगे पूजन के लिए। कुछ लोगों का आग्रह होता है कि स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करें ताकि धन की स्थिरता बनी रहे उनके लिए दो स्थिर लग्न वृष लग्न और सिंह लग्न प्राप्त हो रहे हैं। हाँलाकि सिंह लग्न पूरा-पूरा नहीं मिलेगा फिर भी चूँकि लक्ष्मी जी का जन्म सिंह लग्न में हुआ है अतः व्यापारियों का विशेष आग्रह होता है सिंह लग्न में दीपावली पूजन करने का। ऐसे लोगों को संक्षिप्त रुप से अपना पूजन सिंह लग्न में सूतक शुरु होने से पूर्व पूरा करना होगा। 

मैं आप सबों की सुविधा के लिए पाँचों लग्नों का प्रारम्भ और अन्त समय जगन्नाथपञ्चाङ्गम् के अनुसार लिख रहा हूँ - 


* मेष लग्न - 04:48pm से 06:32 pm तक

* वृष लग्न - 06:32pm से 08:32pm तक

* मिथुन लग्न - 08:32pm से 10:43pm तक

* कर्क लग्न - 10:43pm से 01:01pm तक

* सिंह लग्न - 01:01am से 03:11am तक


पूजन के बाद सूतक शुरु होने से पहले ही आवाहित देवताओं का विसर्जन (कम से कम मंत्रात्मक विसर्जन) करना होगा। जो व्यापारीगण दीपावली पूजन के बाद एक दिन गद्दी पर या दुकान में पूजन स्थल पर लक्ष्मी-गणेश भगवान को विराजमान रखना चाहते हैं उन्हें भी कम से कम मन्त्रात्मक विसर्जन तो करना होगा। फिर आप अगले दिन ग्रहण समाप्ति के पश्चात् देवताओं का यथास्थान रख सकते हैं या उपयुक्त काल में जलप्रवाह कर सकते हैं।


गोवर्धन_पूजा


26 अक्टूबर 2022 को तदनुसार कार्तिकशुक्ल प्रतिपदा दिन बुधवार को सभी पञ्चाङ्गकारों ने एकमत से गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पूजा स्वीकार किया है।


भाई_दूज

भाई दूज या भ्रातृ द्वितीया 27 अक्टूबर 2022 तदनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया दिन गुरुवार को सभी पंचांगकारों ने एकरुपता के स्वीकार किया है। इनमें किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं है। 


यह पञ्चदिवसात्मक दीपावली पर्व आप सबों के लिए मङ्गलकारी हो इसी शुभकामना के साथ...


ब्रजेश_पाठक_ज्यौतिषाचार्य

संस्थापक

हरिहर ज्योतिर्विज्ञान संस्थान

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