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Sunday 26 December 2021

चलित कुंडली का रहस्य




जिज्ञासु के प्रश्न और ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य जी का उत्तर -


प्रश्न - जय श्री राम ! लग्न कुंडली में ग्रह जिस भाव में होंगे और चलित कुंडली में भाव परिवर्तन कर दें तो  उस ग्रह को किस भाव में मानेंगे ?

उत्तर - चलित वाले भाव में मानेंगे ।


प्रश्न - चन्द्रमा लग्न कुंडली में जिस राशि में होते है उसे हम अपनी राशि मानते हैं, अब यदि चलित कुंडली में चन्द्रमा दूसरी राशि में चले जाएँ तो फिर राशि लग्न कुंडली वाली मानेंगे या चलित कुंडली वाली । 

उत्तर - चलित में राशि नहीं बदलता सिर्फ भाव बदलता है ।


प्रश्न - मेरे चलित कुंडली में चंद्रमा मकर राशि से धनु में आ गए तो मेरी राशि मकर होगी या धनु।

उत्तर - ऐसा है प्रिय ! मैंने पूर्व प्रश्न के उत्तर में ही स्पष्ट पंक्ति कही कि चलित कुंडली में ग्रह की राशि नहीं बदलती बल्कि सिर्फ भाव बदलता है । आपकी लग्नकुंडली में अगर चन्द्रमा मकर राशि में है तो चलित कुंडली में चलित होकर वह धनु राशि में कभी नहीं आएगा बल्कि लग्नकुंडली में चन्द्रमा जिस भाव में है उस भाव से पिछले भाव में आएगा । राशिवृत्त और भाववृत्त दोनों अलग-अलग होते हैं । आप दोनों ही वृत्तों को एक मानकर चल रहे हैं, इसलिए भ्रम हो रहा है । लग्नकुंडली में भावचक्र-राशिचक्र और ग्रह कुलमिलाकर तीन पदार्थ होते हैं । भावचक्र सभी कुंडलियों में स्थिर रहता है, राशिचक्र जन्मलग्न से प्रारम्भ होकर भिन्न-भिन्न होकर 12 प्रकार का होता है, तथा ग्रह अपनी अपनी जन्मकालिक राशियों में होते हैं । जिस प्रकार साईकल के पहिए में टायर और टीव दोनों साथ जुडे हुए होने के कारण एक ही दिखाई देते हैं परन्तु उनका स्वतंत्र अस्तित्व होता है, टीव के पंक्चर होने पर हम टायर की मरम्मत नहीं कराते, टीव के खराब होने पर हम टायर नहीं बदलते, दोनों के एक दिखाई पडने पर भी हम उन्हें अलग-अलग ही मानते हैं, उसी प्रकार राशिवृत्त और भाववृत्त एक दूसरे से आच्छादित या आवृत्त होने के कारण एक नजर आते हुए भी अलग अलग स्वतंत्र अस्तित्व वाले अवयव हैं । 

इस विषय को ठीक प्रकार से विस्तार से समझने के लिए आपको मेरे ग्रन्थ फलित राजेन्द्र में वर्णित भाव परिचय वाले प्रकरण को पढ़ना चाहिए। चलित कुंडली में जब ग्रह अगले या पिछले भाव में जाता है तो वह राशि नहीं बदलता बल्कि उसी राशि में रहते हुए भाव परिवर्तन कर लेता है । मान लिया जाए कि मीन लग्न की कुंडली है  और दशम भाव धनु राशि में कोई ग्रह स्थित है, अब यदि चलित कुंडली में वह ग्रह ग्यारहवें भाव में चला गया तो उसे ग्यारहवें भाव में मानेंगे न कि मकर राशि में, वह ग्रह धनु राशि में ही रहेगा पर उसका भाव ग्यारहवाँ भाव माना जाएगा । वह ग्रह अपना राशिफल धनु राशि का ही प्रदान करेगा लेकिन जब भावफल की बारी आएगी तो वह दशम भाव का नहीं बल्कि एकादश भाव का फल प्रदान करेगा। फलित ग्रन्थों में (फलित राजेन्द्र में भी) ग्रहों का राशिफल एवं भावफल अलग-अलग बताया गया है।   भाववृत्त एवं राशिवृत्त के अन्तर को गम्भीरता पूर्वक समझिए एवं मस्तिष्क में बिठाइए ।  


प्रश्न - आचार्य जी एक जिज्ञासा और है, आपने सपात चन्द्र दोष बताया था तीसरे भाव में शुक्र,चन्द्र, राहु,बुध की युति होने से । लेकिन चलित में चन्द्र,शुक्र दुसरे भाव में चले गए और चतुर्थ के सूर्य तीसर् भाव में राहु व बुध के साथ हो गये तो अब सपात चन्द्र दोष का उपाय करें या सपात सूर्य दोष का उपाय करें ?

उत्तर - हा....हा....हा... । वही ढ़ाक के तीन बात । बारम्बार कह रहा हूँ कि चलित कुंडली में सिर्फ भाव बदलता है, राशि कभी नहीं बदलती । इस बात को आप ठीक से मन मस्तिष्क में जमा नहीं पा रहे हैं। आप जिस दोष की बात कर रहे हैं वह दोष ग्रहों के एक ही राशि में रहने पर होता है, न कि एक ही भाव में रहने पर । ग्रहों की मुख्य गोचरीय स्थिति राशियों में ही मानी गई है । इसलिए उक्त प्रश्न में सपात चन्द्र दोष माना जाएगा ।  सपात सूर्य दोष कभी नहीं माना जा सकता क्योंकि ग्रहों की राशियाँ नहीं बदल रही हैं सिर्फ भाव बदल रहा है । आप उक्त प्रश्न से संबंधित जन्मवर्ष का जब पंचांग देखेंगे तो उसमें चन्द्रमा और राहु ही एक राशि में वर्णित मिलेंगे न कि सूर्य और राहु। तो... एक राशि में युति होने पर ही दोष माना जाता है।  उक्त प्रश्न में सूर्य अपनी राशि नहीं बदल रहा है अपितु भाव बदल रहा है, ऐसे ही चन्द्रमा और शुक्र भी भाव बदल रहे हैं राशि नहीं बदल रहे । अगर एक ही राशि में सूर्य-चन्द्र-राहु हो तो सपात सूर्य दोष और सपात चन्द्र दोष दोनों माना जाएगा। लेकिन अगर एक राशि में चन्द्रमा राहु ही रहें तो सपात चन्द्र दोष होगा भले ही राहु चन्द्रमा चलित कुंडली में भाव परिवर्तन कर लेें । इसी प्रकार एक ही राशि में सूर्य राहु रहने पर सपात सूर्य दोष मानेंगे भले ही चलित कुंडली में सूर्य या राहु या दोनों ही ग्रह अपना भाव परिवर्तन कर लें । 


प्रश्न - चलित कुंडली में ग्रह अपनी राशि नहीं बदलते, फिर चलित कुंडली बनाते समय ग्रहों को अगली राशि में क्यों लिखा जाता है ? दूसरी बात हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं होता, कोई ग्रह चलित होकर अगले भाव में जाएगा और हम उसे अगले भाव लिखेंगे तो वह आटोमेटिक ही अगली राशि में होगा क्योंकि अगले भाव में तो अगली राशि लिखी हुई होगी न । अब इसका समाधान करें आप ।

उत्तर - आप जिस विधि से चलित कुंडली चक्र भरते हैं, वो पद्धति ही गलत है । दरअसल चलित चक्र में राशियाँ नहीं भरी जाती, केवल भाव भरा जाता है । ज्यादातर लोग लग्नकुंडली के समान ही चलित कुंडली में भी लग्नराशि से प्रारम्भ करके 12 राशियाँ भर देते हैं जबकि यह पद्धति गलत है । चलित चक्र में लग्न कुंडली की तरह तीन अवयव(राशिचक्र, भावचक्र और ग्रह) नहीं होते बल्कि सिर्फ दो ही अवयव(भावचक्र एवं ग्रह) होते हैं। दरअसल चलित कुंडली बनाया ही इसलिए जाता है ताकि ग्रहों की वास्तविक भावस्थिति को जाना जा सके क्योंकि लग्नकुंडली में राशिवृत्त और भाववृत्त के परस्पर आवृत्त होने के कारण लग्नकुंड़ली से हम केवल ग्रहों की वास्तविक राशिस्थिति जान सकते हैं, वास्तविक भावस्थिति नहीं जान सकते। क्योंकि अगर कोई ग्रह वृष राशि में है और वृष राशि लग्नकुंडली के चतुर्थ भाव में लिखी है तो हमें ग्रह को चतुर्थ भाव में ही दर्शाना होगा, भले ही वह चलित होकर पञ्चम या तृतीय भाव में या उनकी संधियों में चला गया हो क्योंकि अगर हम लग्नकुंडली में ग्रहों को वास्तविक भाव में लिख दें तो उनकी वास्तविक राशि भी बदल जाएगी । इसलिए ग्रहों के वास्तविक भावस्थिति को जानने के लिए केवल ग्रह और भाववृत्त वाले चलित कुंडली बनाने की आवश्यकता होती है। अन्यथा तो लग्नकुंडली से ही सारा कार्य हो सकता है, अगर ग्रहों के चलित होने पर उनकी राशि भी बदलनी है तो चलित कुंडली की आवश्यकता ही क्या है ?

चलित कुंडली बनाते समय भावों को दर्शाने के लिए आप संख्या का प्रयोग कर सकते हैं और न भी करें तो भाव तो स्थिर होते ही हैं । मैं चलित चक्र में भाव को दर्शाने के लिए रोमन संख्या (यह ऐच्छिक है) का प्रयोग करता हूँ। इस पोस्ट के साथ संलग्न चित्र में लग्नकुंडली एवं चलित कुंडली का सही प्रारुप दर्शाया गया है। 


प्रश्न - यदि ग्रह को अगले भाव की जगह अगली राशि में माना जाए तो क्या दिक्कत है ?

उत्तर - ऐसा करने पर बहुत विसंगति उत्पन्न हो जाएगी। फलित राजेन्द्र ग्रन्थ के चौथे दिन वाले प्रकरण में मैेंने ग्रहों का राशिभोग बताया है । सूर्य को एक राशि गमन करने में 1 माह, चन्द्रमा को 2.25 दिन, मंगल को 45 दिन, बुध को 22 दिन, गुरु को 13 महीने, शुक्र को 26 दिन, शनि को 2.5 वर्ष तथा राहु-केतु को 1.5 वर्ष का समय लगता है। गौर करिए - शनि को एक राशि से दूसरे राशि में जाने में 2.5 वर्ष लगते हैं, यदि किसी की चलित कुंडली में शनि चलित हो जाए तो क्या  2.5 वर्ष बिताए बिना ही हम उसे अगली राशि में मान लें ???? चूँकि ग्रहों के राशि परिवर्तन का प्रभाव समस्त चराचर जगत में पड़ता है, इसलिए किसी कुंडली में शनि चलित हो जाए तो मकर राशि के शनि को हमें कुम्भ में मानना होगा वो भी पूरी दुनिया के लिए.... और हो तो ये भी सकता है कि किसी कुंडली में शनि चलित होकर पीछे धनु में आ गया हो । जिसकी कुंडली में पूर्व चलित हुआ है वो दावा करेगा कि शनि को धनु में मानना चाहिए और जिसकी कुंडली शनि अग्रिम चलित हुआ है वो दावा करेगा कि शनि को कुम्भ में मानना चाहिए जबकि वास्तव में शनि मकर राशि में है । ऐसी विसंगतियाँ सभी ग्रहों के साथ होंगी । जो कि कथमपि संभव है ही नहीं । ज्योतिष् शास्त्र बहुत गम्भीर शास्त्र है, इस शास्त्र का सम्यक परिशीलन पूर्वक गम्भीरता से अध्ययन करना चाहिए ।


© ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य