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Friday 30 August 2019

हरितालिका(तीज) व्रत निर्णय



तीज (हरितालिका) व्रत निर्णय
     तीज को हम सब हरितालिका व्रत के रूप में जानते हैं । यह पर्व भारतीय संस्कृति के आधारभूत मातृशक्ति के द्वारा संपादित किया जाता है । हरितालिका व्रत इस वर्ष कुछ पंचांगकारों ने 1 सितंबर 2019 रविवार को पालन करने का निर्देश किया है, जबकि कुछ पंचांगकार 2 सितंबर 2019 सोमवार को संपन्न करने का निर्देश देते हैं ।
     वस्तुतः यह व्रत भाद्रपद मास के  शुक्ल पक्ष के  तृतीय और हस्त नक्षत्र के संयोग के दिन  संपन्न किया जाता है । यह संयोग  प्रदोष काल में हो  तो उत्तम माना जाता है।  इस वर्ष  समग्र दिक्सिद्ध पंचांगकारों ने 1 सितम्बर को व्रत पालन करने का निर्देश दिए हैं। फिरभी जनमानस को संशय होना स्वाभाविक है। हरितालिका व्रत के निर्णय के लिए एक श्लोक सर्वजन विदित है कि:- भाद्रे मासि सिते पक्षे तृतीया हस्तसंयुता। तदनुष्ठानमात्रेण सर्वपापै: प्रमुच्यते ।। यह सिद्धान्त वचन 1 को ही दिखाई दे रहा है।
इस व्रत को 1 सितम्बर 2019 रविवार को पालन करने के पक्ष में मत :-
        1. तृतीया तिथि और हस्तनक्षत्र का संयोग प्रदोष काल में रविवार को ही प्राप्त हो रहा है ।
        2. इस पर्व का पूजनोत्सव सायं काल में सम्पन्न किया जाता है। अतः सायंकाल में तृतीया हस्त का संयोग रविवार को बन रहा है।
       3. ज्योतिष शास्त्र में प्रत्यक्ष प्रमाण की सर्वाधिक मान्यता है। प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रं चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिनौ ।। अतः समस्त दृक्सिद्ध पंचांग समग्र भारत में एक तन्त्र से 1 सितम्बर को हरितालिका व्रत पालन करने का निर्देश दे रहे हैं जब कि कुछ पंचाग 2 सितम्बर 2019 सोमवार को करने के पक्ष में हैं।
      यदि सोमवार को यह व्रत किया जाए तो व्रत करने से पूर्व माताएं कुछ फलाहार तथा जल सेवन  के अनन्तर स्नानादि करके व्रत प्रारम्भ करती हैं जो तृतीया तिथि में होगा। भारत की धर्मपरायण मातायें जो तृतीया में जल तक ग्रहण नहीं करतीं क्या वो तृतीया तिथि में फलाहार ग्रहण कर सकती है ?
     निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा रहा है कि इस व्रत को 1 सितम्बर 2019 रविवार को ही सम्पन्न करना चाहिए।


।। हरि: ॐ।।
प्रो.मदनमोहनपाठक
आचार्य एवं अध्यक्ष ज्योतिषविभाग
सम्पादक:- श्रीजगन्नाथपञ्चाङ्ग
राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, लखनऊ परिसर,
गोमतीनगर लखनऊ उ.प्र.

Sunday 25 August 2019

जन्मदिन व पुण्यतिथि अंग्रेजी तारीख से मनाएँ या हिन्दी तिथि से?


प्रश्न- सादर प्रणाम_/\_ आप से एक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, किन्हीं के पुण्यतिथि/जन्मदिन मनाने हेतु अंग्रेजी तारीख उत्तम होता है या हमारे हिन्दी पंचाग की तिथि?

उत्तर- हमारे शास्त्रों में 9 प्रकार के कालमानों का वर्णन है, जिनमें सामान्य जनों के दैनिक व्यवहार हेतु सौरमान व चान्द्रमान प्रचलन में है। जिसे आपने हिन्दी तिथि के रुप से अभिव्यक्त करना चाहा है वो दरअसल चान्द्रमान है। आजकल जिसे अंग्रेजी तारीख के रुप में प्रचलित किया गया है, वो दरअसल भारतीय सौरमान ही है । जिसे अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से नया नामकरणीक जामा पहनाकर मामूली फेरबदल के साथ अपना बताते हुए प्रस्तुत किया और प्रचारित किया ।
ये बिल्कुल वैसा ही जैसे बहुत सारी कम्पनियाँ पोड़क्टस् के सारे सारे पार्टस् तो विदेशों में ही बनवाते हैं लेकिन उनको भारत में मँगा कर एसेम्बल करते हैं और उसमें मेड़ इन इण्ड़िया का मोहर लगाकर हमलोगों को मूर्ख बनाते हैं। आज भी नेपाल, उत्तराखण्ड़, हिमाचल आदि क्षेत्रों में लोग सौरमास भारतीय रीति से ही प्रयोग करते हैं, जैसे मीनगते, मेषगते आदि । हमारे जो पंचांग हैं, वो सौरचान्द्र पंचांग होते हैं । अधिमास और क्षयमास के रुप में हमारे ऋषिमुनियों ने चान्द्रसौरमानों का बहुत ही अद्भुत संयुक्त रुप हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है, जो हमारे प्रचलन में हमेशा से है।
अब यहाँ यह ध्यातव्य है कि व्रत,पर्व, त्यौहार आदि के लिए चान्द्रमास की प्रधानता रहती है। जबकि वय, आयु, तथा कुछ मुहूर्त आदि में सौरमास की प्रधानता रहती है। इसलिए अपना जन्मदिन अथवा किसी की पुण्यतिथि आदि सौरदिन (अंग्रेजी दिनांक) को मनाना युक्तियुक्त है ।
अब इस सन्दर्भ में आपको कुछ प्रमाणों की अपेक्षा हो सकती है। तो एक महत्वपूर्ण बात आपको बता दूँ कि दशाआदि के लिए जो वर्षमान माने गए हैं वो सौरमान के अनुसार ही कहे जाते हैं। पुनश्च ताजिक शास्त्रों में जो वर्षकुण्ड़ली बनाई जाती है वो भी सौरमान के अनुसार ही बनाई जाती है।
शुक्ल यजुर्वेद की एक ऋचा है जीवेम शरदः शतम् जिसका  अर्थ है हम सौ शरद ऋतुओं तक जियें । अब यहाँ यह प्रश्न उठना तो स्वाभाविक है कि सौ वर्षों तक जियें ऐसा न कह कर  सौ शरद ऋतुओं तक जियें ऐसा क्यों कहा? ऐसा इसलिए कहा क्योंकि नौ प्रकार के कालमानों में से किस कालमान के अनुसार सौ वर्ष जियें यह प्रश्न उत्पन्न हो जाता। शरदः शब्द का प्रयोग यह स्पष्ट कर देता है कि सौरमान के अनुसार सौ वर्षों तक जियें। शरदः शब्द का प्रयोग द्विअर्थी है जो वर्ष के साथ-साथ सौरमान को भी अभिव्यञ्जित कर रहा है। कैसे???? आधुनिक वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार आप सब जानते हैं कि ऋतुओं का कारण सूर्य है, ये बात हम हाई स्कूल से ही पढ़ते आ रहे हैं, वेद संहिताओं में तथा ज्योतिष् शास्त्र में तो सूर्य को ऋतुओं का स्वामी कहा ही गया है। इसलिए जीवेम शरदः शतम् कहने से सौरमान के अनुसार सौ वर्षों तक जियें ऐसा अर्थ परिलक्षित हो रहा है। यहाँ पर एक जिज्ञासा और हो सकती है कि ऋतुएँ तो छः हैं फिर शरद का उल्लेख क्यों? इसका भी उत्तर दिया जा सकता है लेकिन वो इस लेख में प्रस्तुत प्रश्न के लिए आवश्यक नहीं है। यथास्थान इसका उत्तर प्रस्तुत करेंगे
इस प्रश्न के संबंध में विशेष जानकारी के लिए आप मेरे लेख- संवत्सर मिमांसा और खरमास रहस्य को भी पढ़ें ।

- पं. ब्रजेश पाठक "ज्यौतिषाचार्य"